शिमला सम्मेलन
शिमला सम्मेलन 25 जून, 1945 ई. को हुआ था। यह शिमला में होने वाला एक सर्वदलीय सम्मेलन था, जिसमें कुल 22 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रमुख नेता थे- जवाहरलाल नेहरू, मुहम्मद अली जिन्ना, इस्माइल ख़ाँ, सरदार वल्लभ भाई पटेल, अबुल कलाम आज़ाद, ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ, तारा सिंह आदि। ब्रिटिश भारत की प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों में से एक 'मुस्लिम लीग' की ज़िद के कारण यह सम्मेलन असफल हो गया।
मुस्लिम लीग का अड़ियल रवैया
'शिमला सम्मेलन' में कांग्रेस के प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व अबुल कलाम आज़ाद ने किया था। सम्मेलन के दौरान 'मुस्लिम लीग' द्वारा यह शर्त रखी गयी कि वायसराय की कार्यकारिणी परिषद में नियुक्त होने वाले सभी मुस्लिम सदस्यों का चयन वह स्वयं करेगी। 'मुस्लिम लीग' का यही अड़ियल रुख़ 25 जून से 14 जुलाई तक चलने वाले 'शिमला सम्मेलन' की असफलता का प्रमुख कारण बना।
सम्मेलन की असफलता
कांग्रेस मुहम्मद अली जिन्ना के इस प्रस्ताव से जरा भी सहमत नहीं थी, क्योंकि 'मुस्लिम लीग' एक राष्ट्रीय पार्टी थी और वह भी मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए समान रूप से दृढ़संकल्प थी। किन्तु कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भी कौंसिल के सदस्य नहीं हो सकते थे। अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधियों ने कांग्रेस द्वारा प्रस्तुत सदस्यों के नाम पर आपत्ति की और पृथक् नामांकन करने का अधिकार मांगा। अतः वेवेल योजना ने 14 जुलाई, 1945 ई. को 'शिमला सम्मेलन' की विफलता की घोषणा कर दी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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