शिव दयाल साहब
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शिव दयाल साहब
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अन्य नाम | तुलसी राम (मूल नाम) |
जन्म | 24 अगस्त,1818 ई. |
जन्म भूमि | आगरा |
मृत्यु | 15 जून, 1878 |
मृत्यु स्थान | आगरा |
पति/पत्नी | नारायनी देवी |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | इन्होंने दो पुस्तकें लिखी थीं, एक गद्य में और एक छंद में। इन दोनों पुस्तकों का शीर्षक सार वचन है। |
भाषा | हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी, संस्कृत, अरबी और गुरुमुखी |
प्रसिद्धि | संत |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | शिव दयाल साहब 'राधा स्वामी सत्संग' के संस्थापक थे, जिसके अनुयायी हिन्दू और सिक्ख दोनों हैं। 1861 ई. में इन्होंने संत सतगुरु के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया था। |
शिव दयाल साहब (मूल नाम 'तुलसी राम', जन्म- 24 अगस्त,1818 ई., आगरा; मृत्यु- 15 जून, 1878 ई.) दीक्षित हिन्दू संप्रदाय 'राधा स्वामी सत्संग' के संस्थापक थे, जिसके अनुयायी हिन्दू और सिक्ख दोनों हैं। इन्हें राधास्वामी मत की शिक्षाओं को आरम्भ करने का श्रेय दिया जाता है। इनके द्वारा सिखायी गई यौगिक पद्धति "सुरत शब्द योग" के तौर पर जानी जाती है।
- शिव दयाल साहब जी का जन्म 24 अगस्त, 1818 ई. को आगरा, उत्तर प्रदेश में जन्माष्टमी के दिन हुआ था।
- इनके माता-पिता हाथरस के परम संत तुलसी साहब के अनुयायी थे।
- पाँच वर्ष की आयु में शिव दयाल को पाठशाला भेजा गया, जहाँ उन्होंने हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी और गुरुमुखी सीखी। उन्होंने अरबी और संस्कृत भाषा का भी कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त किया।
- एक धार्मिक वैष्णव परिवार में जन्में शिव दयाल साहूकार के रूप में स्थापित हुए थे।
- छोटी आयु में ही शिव दयाल का विवाह फरीदाबाद के इज़्ज़त राय की पुत्री नारायनी देवी से हुआ था, जो स्वभाव की बहुत विशाल हृदयी थीं। वे पति के प्रति बहुत समर्पित थीं।
- शिव दयाल जी स्कूल से ही बांदा में एक सरकारी कार्यालय के लिए फ़ारसी के विशेषज्ञ के तौर पर चुन लिए गए थे। लेकिन यह नौकरी उन्हें रास नहीं आई। उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और वल्लभगढ़ एस्टेट के ताल्लुका में फ़ारसी अध्यापक की नौकरी कर ली।
- सांसारिक उपलब्धियाँ उन्हें आकर्षित नहीं करती थीं और उन्होंने वह बढ़िया नौकरी भी छोड़ दी। अब शिव दयाल जी अपना समस्त समय धार्मिक कार्यों में लगाने के लिए घर लौट आए।
- 1861 में उन्होंने संत सतगुरु के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया और अनुयायियों के एक समूह का निर्देश देने लगे।
- शिव दयाल साहब ने दो पुस्तकें लिखीं, एक गद्य में और एक छंद में। इन दोनों पुस्तकों का शीर्षक सार वचन है।
- 15 जून, 1878 ई. में शिव दयाल साहब का स्वर्गवास आगरा में हुआ। उनकी अस्थियां आगरा के पास एक बग़ीचे[1] में स्थित समाधि में रखी गईं, जिसका नामकरण उनके नाम पर ही दयाल बाग़ किया गया है। यह इस संप्रदाय का प्रमुख मुख्यालय है।[2]
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