संस्कृति (पत्रिका)
'संस्कृति' पत्रिका हिन्दी की प्रसिद्ध अर्द्धवार्षिक पत्रिका है। इसका प्रकाशन तत्कालीन वैज्ञानिक अनुसंधान और सांस्कृतिक कार्य मंत्रालय (वर्तमान में संस्कृति मंत्रालय) के तत्वावधान में मार्च-अप्रैल, 1959 में विद्वान लेखक, मनीषी, चिंतक और विचारक डॉ. राजेन्द्र द्विवेदी के कुशल संपादन में प्रारंभ हुआ और परवान चढ़ा। 'संस्कृति' के सलाहकार/संपादकीय मंडल में डॉ. रामधारी सिंह 'दिनकर', महादेवी वर्मा, डॉ. नगेन्द्र, बरसाने लाल चतुर्वेदी, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन, डॉ. प्रभाकर माचवे, श्रीमती कपिला वात्स्यायन, किरीट जोशी जैसे लब्ध प्रतिष्ठित और ख्यातिप्राप्त विद्वान रहे, जिनके मार्गदर्शन में पत्रिका फली-फूली और वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ-साथ इसे सांस्कृतिक आधार मिला।
संपादन
'संस्कृति' पत्रिका डॉ. राजेन्द्र द्विवेदी, बदरी दत्त पांडे, बल्लभदत्त, कृष्ण गोपाल, डॉ. अरविंद मालवीय, गुरुदत्त, डॉ. ज्ञानवती दरबार, राजमणि तिवारी, ओम प्रकाश वर्मा, मदन शर्मा और डॉ. भगत सिंह जैसे विद्वानों के कुशल संपादन में पल्लवित और पुष्पित हुर्इ। इसका प्रकाशन 29 वर्षों तक निरंतर चलता रहा, लेकिन 1988 से इसका प्रकाशन बंद हो गया। जुलार्इ-सितम्बर, 1995 में इसे पुन: प्रकाशित करने का प्रयास किया गया लेकिन एक अंक प्रकाशित होने के बाद ही इसका प्रकाशन पुन: बंद हो गया।
'संस्कृति' पत्रिका प्रारंभ में त्रैमासिक प्रकाशित की जाती थी। ग्रीष्म, पावस, शरद और हेमंत ऋतुओं अर्थात् जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर माह में इसके अंकों का प्रकाशन किया जाता था। भारत सरकार मुद्रणालय के माध्यम से इसकी केवल 400 प्रतियाँ मुद्रित करवार्इ जाती थीं और यह समूल्य हुआ करती थी।
प्रकाशन
'संस्कृति' का प्रकाशन अक्तूबर, 2000 से पुन: प्रारंभ हुआ और यह छ:माही प्रकाशित की जाने लगी। वर्ष 2005 में पत्रिका के आकार, कलेवर और साज-सज्जा में निखार आया। सरकारी क्षेत्र में प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं में संपादन, कलेवर, साज-सज्जा आदि की दृष्टि से 'संस्कृति' सर्वश्रेष्ठ पत्रिका के रूप में प्रतिष्ठित हुर्इ, जिसकी मान्यता स्वरूप राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय द्वारा 2005-06 और 2006-07 के लिए इसे प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया। हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा भी वर्ष 2006-07 के लिए सर्वश्रेष्ठ संपादन हेतु इसे अव्यावसायिक पत्रिका की श्रेणी में प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया।
संस्कृति पत्रिका के प्रत्येक अंक की 3,000 प्रतियाँ मुद्रित करवार्इ जाती हैं। यह पत्रिका देश-विदेश के हिंदी के सुविख्यात विद्वानों, लेखकों, बुद्धिजीवियों, संस्कृति कर्मियों तथा देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों और पुस्तकालयों आदि को नि:शुल्क प्रेषित की जाती है। पत्रिका की यह प्रसार संख्या संभवत: देश की अन्य प्रमुख हिंदी पत्रिकाओं की प्रसार संख्या की तुलना में कहीं अधिक है।
'संस्कृति' में छपी रचनाएं हमेशा नवोन्मेशी रही हैं और यह पत्रिका प्रगतिशील और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की शोधपरक रचनाओं के लिए पहचानी जाती है। इसने अपना विशाल पाठकवर्ग तैयार किया है। अनुसंधानपरक तथा विचारोत्तेजक आलेख इस पत्रिका का महत्वपूर्ण तत्व हैं। पुरातत्व, मानव विज्ञान, मूर्त और अमूर्त विरासत, पुस्तकालय, संग्रहालय, लोक एवं जनजातीय कला, चित्रकला, मूर्तिकला, हस्तशिल्प, संगीत, नृत्य और नाटकसहित कला और संस्कृति के विभिन्न रूपों में रुचि रखने वालों और शोधार्थियों के बीच ‘संस्कृति’ अत्यंत लोकप्रिय है। यह पत्रिका शोधार्थियों के लिए संदर्भ ग्रंथ का कार्य करती है। अत: 1959 से 1988 तक और अक्तूबर, 2000 से अब तक प्रकाशित हुए अंकों को ‘’संस्कृति दीर्घा’’ के अंतर्गत उपलब्ध कराया गया है ताकि पाठक संस्कृति के पिछले अंकों से भी रू-ब-रू हो सकें।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृति पत्रिका - सांस्कृतिक विचारों और अभिव्यक्तियों की प्रतिनिधि अर्द्धवार्षिक हिंदी पत्रिका (हिन्दी) संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार। अभिगमन तिथि: 21 अगस्त, 2016।
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