सत्यधृति | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- सत्यधृति (बहुविकल्पी) |
सत्यधृति का विवरण हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत में मिलता है। शरद्वान के द्वारा अहल्या में शतानन्द उत्पन्न हुए। शतानन्द के धनुर्वेद में पारंगत सत्यधृति ऋषि हुए।
- सत्यधृति की तपस्या से डर कर इंद्र ने इनका तप भंग करने के लिए एक अप्सरा उर्वशी को भेजा था, पर वह असफल रही।
- उर्वशी जाने के समय घास में पड़े दो नवजात शिशु मिले, जिन्हें महाराज शांतनु ने दया करके पाल-पोस कर बड़ा किया और दोनों में से लड़के का नाम 'कृप' और लड़की का नाम 'कृपी' रखा गया।
- विष्णुपुराणानुसर कृप और कृपी शरद्वान ऋषि के पौत्र, शतानन्द के पौत्र और सत्यधृति की संताने ठहरती हैं।
- ये उर्वशी अप्सरा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे, जिन्हें घास में छोड़ अप्सरा स्वर्ग चली गई थी और शांतनु ने इन्हें पाला था, आगे चलकर कृपी द्रोणाचार्य की पत्नी तथा अश्वत्थामा की माता हुई[1]।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 508-509 |
- ↑ विष्णु पुराण 4.19.62.68
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