साक्षी गोपाल मंदिर, पुरी
साक्षी गोपाल मंदिर | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- साक्षी गोपाल मंदिर (बहुविकल्पी) |
साक्षी गोपाल मंदिर उड़ीसा राज्य के पुरी ज़िले में स्थित हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। कालान्तर में यह विग्रह श्री जगन्नाथ पुरी में पधारे तथा वहाँ से 12 मील दूर सत्यवादीपुर में अब विराजमान हैं। अब सत्यवादीपुर को साक्षी गोपाल के नाम से ही जाना जाता है
मार्ग स्थिति
श्रीजगन्नाथ पुरी से 10 मील दूर साक्षी गोपाल स्टेशन है। पुरी या भुवनेश्वर से मोटर बसें भी यहाँ आती हैं। स्टेशन से मंदिर आधा मील है। मंदिर के समीप ही धर्मशाला है।
दर्शनीय स्थल
पुरी धाम की यात्रा साक्षी गोपाल के दर्शन करके ही पूरी मानी जाती है।
- स्नान स्थल– मंदिर के बाहर चंदन तालाब है। मंदिर के दोनों ओर राधाकुंड और श्यामकुंड नाम के सरोवर हैं। जिनमें स्नान किया जाता है।
- मुख्य मंदिर– यहाँ का मुख्य मंदिर साक्षी गोपाल मंदिर है। मंदिर में गोपाल जी की मूर्ति है। समीप ही श्रीराधिका जी का मंदिर है।
पौराणिक कथा
उत्कल[1] के एक धनी ब्राह्मण तीर्थ यात्रा को निकले, साथ में एक ग़रीब ब्राह्मण युवक को उन्होंने ले लिया। उस समय पैदल यात्रा करनी थी। युवक ने उन वृद्ध की बड़े प्रेम से सेवा की। वृन्दावन पहुँचने पर गोपाल जी के मंदिर में वृद्ध ने कहा- ‘लौटकर मैं अपनी पुत्री का तुमसे विवाह कर दूँगा।’ यात्रा से लौटने पर वृद्ध के पुत्रों ने अपनी बहिन का विवाह दरिद्र युवक से करना स्वीकार नहीं किया। उसका अपमान भी किया। उसने पंचायत एकत्र की। पंचों ने कहा- ‘इन्होंने किसके सामने कन्या देने को कहा था?’
युवक- ‘गोपालजी के सामने।’
पंचों को प्रत्यक्ष साक्षी चाहिए था। युवक फिर वृन्दावन गया। उसने रोकर गोपाल जी से प्रार्थना की। गोपालजी बोल उठे ‘तुम आगे आगे चलो। मैं पीछे आ रहा हूँ। जहाँ लौटकर देखोगे, वहीं रह जाऊँगा। तुम्हें मेरी नूपुर ध्वनि सुनाई देती रहेगी।’ युवक चल पड़ा। पुल अलसा नामक स्थान पर रेत में चरण गड़ने से नुपूर ध्वनि रुक गयी तो युवक ने लौटकर देखा। युवक के देखने पर गोपाल जी वहीं रह गये; किंतु युवक का काम हो गया।
कटक नरेश अपनी यात्रा में वह मूर्ति पुरी ले आये। जगन्नाथ जी में गोपालजी आये तो वह पूरे नैवेद्य का भोग पहले लगा लेने लगे। अतः जगन्नाथ जी के स्वप्नादेश के अनुसार राजा ने उन्हें यहाँ पुरी से पाँच कोस पर प्रतिष्ठित किया। गोपालजी आये तो श्रीराधा के बिना कैसे मन लगता। पुजारी श्रीबिल्वेश्वर महापात्र के घर में पुत्री रूप से श्रीराधा अवतीर्ण हुईं। उनका नाम लक्ष्मी रखा गया। लक्ष्मी के युवती होने पर अद्भुत घटनायें होने लगीं। कभी गोपाल जी की माला रात्रि में उस कन्या की शय्या पर मिलती और कभी उसके वस्त्र या आभूषण गोपाल जी के बंद मंदिर के भीतर मिलते। अंत में पंडितों ने यहाँ श्रीराधामूर्ति स्थापित करवाना निश्चित किया। मूर्ति बनी, स्थापना-दिवस आया, ठीक प्रतिष्ठा के समय पुजारी की कन्या का शरीर छूट गया। लोगों ने आश्चर्य से देखा कि जो श्रीराधामूर्ति बनी थी वह ठीक लक्ष्मी की मूर्ति के समान थी।
इस प्रकार साक्षी देने आने के कारण यहाँ गोपाल जी का नाम साक्षी गोपाल पड़ गया। यहाँ आकर अपनी नित्य अभिन्ना को भी इन्होंने अपने समीप बुला लिया[2]।