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हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण

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सैंधव सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) जिस द्रुतगति से प्रकाश में आयी थी, उसी गति से ही यह विनष्ट भी हो गई। इसके पतन के लिए विद्वानों ने कई कारण बताएं हैं, जैसे- बाढ़, आर्यों का आक्रमण, जलवायु परिवर्तन, भू-तात्विक परिवर्तन, व्यापार में गतिरोध, प्रशासनिक शिथिलता, महामारी एवं साधनों का अधिक उपभोग आदि।

बाढ़

सिन्धु सभ्यता के पतन का प्रधान कारण बाढ़ ही माना जाता है। मार्शल ने मोहनजोदड़ो, मैके ने चन्हूदड़ों तथा एस.आर. राव ने लोथल के पतन का प्रमुख कारण बाढ़ माना है। मार्शल के अनुसार मोहनजोदड़ों में 7 बार बाढ़ आयी, क्योंकि इसकी खुदाई से इसके 7 स्तरों का पता चलता है। धीरे-धीरे लोग नगर छोड़कर अन्यत्र चले गए। परन्तु इससे उन नगरों के पतन के कारणों पर प्रकाश नहीं पड़ता जो नदियों के किनारे स्थित नहीं थे।

आर्य आक्रमण

व्हीलर, गार्डन चाइल्ड, मैके, पिगनट आदि विद्वानों ने सिन्धु सभ्यता के पतन का कारण आर्यों का आक्रमण माना है। अपने मत की पुष्टि में उन्होंने मोहनजोदड़ों से प्राप्त नर-कंकालों तथा ऋग्वेद के देवता इन्द्र का उल्लेख दुर्ग संहारक के रूप में किया है परन्तु अमेरिकी इतिहासकार केनेडी ने सिद्ध कर दिया है कि मोहनजोदड़ों के नर-कंकाल मलेरिया जैसी किसी बिमारी से ग्रसित थे। परवर्ती अनुसंधानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि व्हीलर की यह धारणा कि आर्य लोग हड़प्पाई सभ्यता का नाश करने वाले थे, मात्र एक मिथक थी। तथ्य यह है कि 5000 ई.पू. से 800 ई.पू. तक के समय में पश्चिमी या मध्य एशिया से सिन्धु या सरस्वती की घाटियों में किसी आक्रमण अथवा सामूहिक आप्रवास का कोई पुरातात्विक, जैविक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। इस अवधि में पाये गये सभी नर-कंकाल एक ही समूह के लोगों के थे। ऋग्वेद में दुर्ग संहारक के रूप में इन्द्र को अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता, क्योंकि ऋग्वेद की सही तिथि अभी निर्धारित नहीं की जा सकी है। अतः आर्यो के आक्रमण को पतन का प्रमुख कारण नहीं माना जा सकता।

जलवायु परिवर्तन

आरेल स्टाइन और अमलानन्द घोष आदि विद्वानों के अनुसार जंगलों की अत्यधिक कटाई के कारण जलवायु में परिवर्तन आया। राजस्थान के क्षेत्र में जहाँ पहले बहुत वर्षा होती थी, वहाँ वर्षा कम होने लगीं। अतः सभ्यता धीरे धीरे विनष्ट हो गई।

भू-तात्विक परिवर्तन

एम.आर. साहनी, आर. एल. राइक्स, जार्ज एफ.डेल्स. और एच.टी. लैम्ब्रिक सिन्धु सभ्यता के पतन में भू-तात्विक परिवर्तनों के प्रमुख कारण मानते हैं। भू-तात्विक परिवर्तनों के कारण नदियों के मार्ग बदल गए, जिससे लोगों में सिंचाई, पीने के पानी, आदि का अभाव हो गया। सारस्वत प्रदेश में तो इसका पतन मुख्य रूप से नदी धाराओं के बदलने अथवा स्थानान्तरण के कारण हुआ। इस कारण वे अपने अपने स्थानों को छोड़कर दूसरे स्थानों को चले गए।

विदेशी व्यापार में गतिरोध

सन 1995 ई. में डब्ल्यू. एफ. अल्ब्राइट ने यह मत व्यक्त किया कि मेसोपोटामिया के साक्ष्यों के अनुसार सैन्धव सभ्यता का अन्त लगभग 1750 ई.पू. में माना जा सकता है। 2000 ई.पू. के बाद सैन्धव सभ्यता में ग्रामीण संस्कृति के लक्षण प्रकट होने लगे थे, उससे पता चलता है कि उनका आर्थिक ढाँचा लड़खड़ाने लगा था।

प्रशासनिक शिथिलता

मार्शल के अनुसार सिन्धु सभ्यता के अन्तिम चरण में प्रशासनिक शिथिलता के लक्षण दृष्टिगोचर होने लगते हैं। अब मकान व्यवस्थित ढंग के नहीं थे तथा उनमें कच्ची ईंटों का प्रयोग भी अधिक होने लगा। अतः सभ्यता धीरे धीरे नष्ट हो गई।

महामारी

अमेरिकी इतिहासकार के.यू.आर. केनेडी का विचार है कि मलेरिया जैसी किसी महामारी से सैन्धव सभ्यता की जनसंख्या नष्ट हो गई।

साधनों का अतिशय उपभोग

एक आधुनिक मत यह है कि इस सभ्यता ने अपने साधनों का ज्यादा से ज्यादा व्यय कर डाला, जिससे उसकी जीवन शक्ति नष्ट हो गई। यह एक आकर्षक परिकल्पना है परन्तु इसकी जाँच के लिए विस्तृत अनुसंधान की आवश्यकता है।

अदृश्य गाज के कारण

रूसी विद्वान एम. दिमित्रियेव का मानना है कि सैन्धव सभ्यता का विनाश पर्यावरण में अचानक होने वाले किसी भौतिक रासायनिक विस्फोट ‘अदृश्य गाज’ के कारण हुआ। इस अदृश्य गाज से निकली हुई ऊर्जा तथा ताप आवश्यकता 150000°C के लगभग मानी जाती है। जिससे दूर दूर तक सब कुछ विनिष्ट हो गया। उन्होंने इस सम्बन्ध में महाभारत में उल्लिखित इसी प्रकार के दृष्टिकोण की ओर संकेत किया है जो मोहनजोदड़ों के समीप हुआ था। निष्कर्ष रूप से यही कहा जा सकता है कि उपर्युक्त सभी कारणों ने मिलकर सिन्धु सभ्यता को गर्त में मिला दिया, परन्तु विद्वानों में पतन का सर्वाधिक मान्य कारण बाढ़ है। हालांकि गुजरात में हाल ही में आए भूकम्पों ने इस सभ्यता के पतन के प्रमुख कारण पर पुनः विचार करने को विवश कर दिया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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