"ज्ञानेन्द्री": अवतरणों में अंतर
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([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Sense Organ) '''{{PAGENAME}}''' अधिकांश जीव जंतुओं के शरीर के आवश्यक अंग हैं। इस लेख में [[मानव शरीर]] से संबंधित उल्लेख है। बाह्म | ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Sense Organ) '''{{PAGENAME}}''' अधिकांश जीव जंतुओं के शरीर के आवश्यक अंग हैं। इस लेख में [[मानव शरीर]] से संबंधित उल्लेख है। बाह्म जगत् के ज्ञान की प्राप्ति विभिन्न प्रकार की संवेदनाओं के द्वारा ही संभव होती है। संवेदना का अनुभव तभी संभव है जब उससे संबन्धित संवेदीतन्त्रिकाओं को उचित उद्दीपन प्राप्त हो सके। उद्दीपनों के उत्पन हो जाने पर और उनके [[मस्तिष्क]] या [[स्पाइनल कॉर्ड]] में संचारित होने के बाद उनका विश्लेषण केन्द्रीय [[तन्त्रिका तन्त्र]] के द्वारा होता है और हम उस विशेष संवेदना का अनुभव मस्तिष्क के द्वारा अनुवादित होने पर ही करते हैं। शरीर [[ध्वनि]], [[प्रकाश]], गंध, [[दाब]] आदि के लिए संवेदनशील होता है। इनकी सांवेदनिक अंगों पर निर्भर करती है, जो शरीर के विभिन्न भागों में स्थित होते हैं। | ||
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विशिष्ट सांवेदनिक अंगों से तन्त्रिका तन्तुओं का सम्बन्ध रहता है। तन्त्रिका तन्तुओं का विशिष्ट सांवेदनिक अंगों में अन्त होने से पहले ये अपने न्यूरोलीमा तथा मायलिन आवरण का त्याग कर देते हैं। प्रत्येक संवेदी तन्त्रिका का अन्तिम भाग कुछ विशेष प्रकार का बना होता है, जिसे अन्तांग कहते हैं और ये अन्तांग ही संवेदन के विशेष अंग होते हैं। प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय से सम्बन्धित अनेक उपांग होते हैं, जो उद्दीपन को अन्तांग तक संचारित करते हैं। परन्तु, वास्तविक उद्दीपन अन्तांग में ही होता है और वहाँ से यह मस्तिष्क में पहुँचता है, जहाँ इसका विश्लेषण होता है और विशिष्ट संज्ञा का ज्ञान होता है। | विशिष्ट सांवेदनिक अंगों से तन्त्रिका तन्तुओं का सम्बन्ध रहता है। तन्त्रिका तन्तुओं का विशिष्ट सांवेदनिक अंगों में अन्त होने से पहले ये अपने न्यूरोलीमा तथा मायलिन आवरण का त्याग कर देते हैं। प्रत्येक संवेदी तन्त्रिका का अन्तिम भाग कुछ विशेष प्रकार का बना होता है, जिसे अन्तांग कहते हैं और ये अन्तांग ही संवेदन के विशेष अंग होते हैं। प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय से सम्बन्धित अनेक उपांग होते हैं, जो उद्दीपन को अन्तांग तक संचारित करते हैं। परन्तु, वास्तविक उद्दीपन अन्तांग में ही होता है और वहाँ से यह मस्तिष्क में पहुँचता है, जहाँ इसका विश्लेषण होता है और विशिष्ट संज्ञा का ज्ञान होता है। | ||
मानव शरीर में निम्न पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ होती है, जिनके द्वारा बाह्य | मानव शरीर में निम्न पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ होती है, जिनके द्वारा बाह्य जगत् का ज्ञान होता है। | ||
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13:55, 30 जून 2017 का अवतरण

(अंग्रेज़ी:Sense Organ) ज्ञानेन्द्री अधिकांश जीव जंतुओं के शरीर के आवश्यक अंग हैं। इस लेख में मानव शरीर से संबंधित उल्लेख है। बाह्म जगत् के ज्ञान की प्राप्ति विभिन्न प्रकार की संवेदनाओं के द्वारा ही संभव होती है। संवेदना का अनुभव तभी संभव है जब उससे संबन्धित संवेदीतन्त्रिकाओं को उचित उद्दीपन प्राप्त हो सके। उद्दीपनों के उत्पन हो जाने पर और उनके मस्तिष्क या स्पाइनल कॉर्ड में संचारित होने के बाद उनका विश्लेषण केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र के द्वारा होता है और हम उस विशेष संवेदना का अनुभव मस्तिष्क के द्वारा अनुवादित होने पर ही करते हैं। शरीर ध्वनि, प्रकाश, गंध, दाब आदि के लिए संवेदनशील होता है। इनकी सांवेदनिक अंगों पर निर्भर करती है, जो शरीर के विभिन्न भागों में स्थित होते हैं।
विशिष्ट सांवेदनिक
विशिष्ट सांवेदनिक अंगों से तन्त्रिका तन्तुओं का सम्बन्ध रहता है। तन्त्रिका तन्तुओं का विशिष्ट सांवेदनिक अंगों में अन्त होने से पहले ये अपने न्यूरोलीमा तथा मायलिन आवरण का त्याग कर देते हैं। प्रत्येक संवेदी तन्त्रिका का अन्तिम भाग कुछ विशेष प्रकार का बना होता है, जिसे अन्तांग कहते हैं और ये अन्तांग ही संवेदन के विशेष अंग होते हैं। प्रत्येक ज्ञानेन्द्रिय से सम्बन्धित अनेक उपांग होते हैं, जो उद्दीपन को अन्तांग तक संचारित करते हैं। परन्तु, वास्तविक उद्दीपन अन्तांग में ही होता है और वहाँ से यह मस्तिष्क में पहुँचता है, जहाँ इसका विश्लेषण होता है और विशिष्ट संज्ञा का ज्ञान होता है।
मानव शरीर में निम्न पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ होती है, जिनके द्वारा बाह्य जगत् का ज्ञान होता है।

Skin
त्वचा
त्वक् संवेदांग हमारी त्वचा में स्थित अनेक कायिक संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं के स्वतंत्र और शाखान्वित सिरों के रूप में होते हैं तन्त्रिका तन्तुओं के सिरे पूर्णतः नग्न अर्थात् पुटिका विहीन या पुटिका युक्त अर्थात् सेवंदी देहाणुओं के रूप में हो सकते हैं। कार्यों के आधार पर त्वक् संवेदांगों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभेदित किया जा सकता है।
जिह्वा

Tongue
जीभ पर स्वादग्राही अंकुरों में स्थित होती हैं। मुख ग्रासन गुहिका के फर्श पर मोटी, पेशीय, चलायमान जिह्वा स्थित होती है। इसका पिछला भाग फ्रेनलम लिग्वी तथा पेशियों के द्वारा मुखगुहा के तल, हॉयड उपकरण व जबड़े की अस्थियों से जुड़ा रहता है। जिह्वा पर अनेक जिह्वा अंकुर पाए जाते हैं। जीभ पर पाई जाने वाली स्वाद कलिकाएँ भोजन का स्वाद बनाती हैं। स्वादग्राही स्वाद कलिकाओं में स्थित होते हैं।
नाक
गन्ध ज्ञान के लिए नासिका के अन्दर करोटि के घ्राणकोशों में बन्द दो लम्बी नासा गुहाएँ पाई जाती हैं। ये नासा पट्टी द्वारा दो भागों में विभक्त रहती हैं। प्रत्येक नासा गुहा तीन भागों में बँटी रहती है-
- प्रकोष्ठ
- श्वाँसमार्ग
- घ्राण भाग
कान
मनुष्य में एक जोड़ी कर्ण सिर के पार्श्वों में स्थित होते हैं। ये सुनने तथा शरीर का सन्तुलन बनाए रखने का कार्य करते हैं। प्रत्येक कर्ण के तीन भाग होते हैं।

Internel Structure of ear
- बाह्य कर्ण
- मध्य कर्ण
- अन्तः कर्ण
आँख
आँख या नेत्रों के द्वारा हमें वस्तु का 'दृष्टिज्ञान' होता है। दृष्टि वह संवेदन है, जिस पर मनुष्य सर्वाधिक निर्भर करता है। दृष्टि एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें प्रकाश किरणों के प्रति संवेदिता, स्वरूप, दूरी, रंग आदि सभी का प्रत्यक्ष ज्ञान समाहित है। आँखें अत्यंत जटिल ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, जो दायीं-बायीं दोनों ओर एक-एक नेत्र कोटरीय गुहा में स्थित रहती है।
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