अंग वीरशैव सिद्धांत
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अंग वीरशैव सिद्धांत मत के अनुसार परम शिव के दो रूपों की उत्पत्ति लिंग (शिव) और अंग (जीव) के रूप में बतलाई गई है। प्रथम तो उपास्य है और दूसरा उपासक। यह उत्पत्ति शक्ति के क्षोभ मात्र से होती है। इस अंग की शक्ति निवृत्ति उत्पन्न करने वाली भक्ति है। इस अंग के तीन प्रकार बताए गए हैं:- योगांग, भोगांग और त्यागांग। अंग के मलों का निराकरण भक्ति से ही संभव है जिसकी प्राप्ति परम शिव के अनुग्रह से होती है।[1][2]