विष्णु के अवतार
हिन्दू मान्यता के अनुसार "ईश्वर का पृथ्वी पर अवतरण (जन्म लेना) अथवा उतरना ही 'अवतार' कहलाता है"। हिन्दुओं का विश्वास है कि ईश्वर यद्यपि सर्वव्यापी, सर्वदा सर्वत्र वर्तमान है, तथापि समय-समय पर आवश्यकतानुसार पृथ्वी पर विशिष्ट रूपों में स्वयं अपनी योगमाया से उत्पन्न होता है।
विष्णु के दस अवतार
हिन्दू धर्म में सर्वोच्च माने गये भगवान विष्णु के दस अवतारों का पुराणों में अत्यंन्त कलात्मक और कथात्मक चित्रण हुआ है। उनके दस अवतार निम्नलिखित हैं-
- मत्स्य अवतार
- वराह अवतार
- कूर्म अवतार
- नृसिंह अवतार
- वामन अवतार
- परशुराम अवतार
- राम अवतार
- कृष्ण अवतार
- बुद्ध अवतार
- कल्कि अवतार
'कल्कि अवतार' अभी होना शेष है। इनमें मुख्य गौण, पूर्ण और अंश रूपों के और भी अनेक भेद हैं। 'अवतार' का हेतु ईश्वर की इच्छा है। दुष्कृतों के विनाश और साधुओं के परित्राण के लिए अवतार होता है।[1] 'शतपथ ब्राह्मण' में कहा गया है कि कच्छप का रूप धारण कर प्रजापति ने शिशु को जन्म दिया। 'तैत्तिरीय ब्राह्मण' के मतानुसार प्रजापति ने शूकर के रूप में महासागर के अन्तस्तल से पृथ्वी को ऊपर उठाया। किन्तु बहुमत में कच्छप एवं वराह दोनों रूप विष्णु के हैं। यहाँ हम प्रथम बार अवतारवाद का दर्शन पाते हैं, जो समय पाकर एक सर्वस्वीकृत सिद्धान्त बन गया। सम्भवत: कच्छप एवं वराह ही प्रारम्भिक देवरूप थे, जिनकी पूजा बहुमत द्वारा की जाती थी।[2] विशेष रूप से मत्स्य, कच्छप, वराह एवं नृसिंह, ये चार अवतार भगवान विष्णु के प्रारम्भिक रूप के प्रतीक हैं। पाँचवें अवतार वामनरूप में विष्णु ने विश्व को तीन पगों में ही नाप लिया था। इसकी प्रशंसा ऋग्वेद एवं ब्राह्मणों में है, यद्यपि वामन नाम नहीं लिया गया है। भगवान विष्णु के आश्चर्य से भरे हुए कार्य स्वाभाविक रूप में नहीं, किन्तु अवतारों के रूप में ही हुए हैं। वे रूप धार्मिक विश्वास में महान् विष्णु से पृथक् नहीं समझे गये।
परम शक्त्ति के प्रतीक
पुराणों में विष्णु, शिव और ब्रह्मा को एक रूप ही स्वीकार किया गया है। ये त्रिदेव सृष्टी के जनक हैं, पालनहार हैं, और संहारकर्त्ता हैं। उपर्युक्त्त सभी अवतारों के साथ पुराणों में सुंदर-सुंदर कथानक जुड़े हैं, जो उनकी परम शक्त्ति के प्रतीक हैं और उन्हें प्रकट करते हैं।
- मत्स्यावतार में प्रलय काल के उपरान्त जीव की उत्पत्ति और बचाव का कथानक है।
- कूर्मावतार में डोलती पृथ्वी को विशाल कछुए की पीठ पर धारण करने का कथानक है।
- नृसिंहावतार में भक्त्त प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकशिपु के वध का कथानक है।
- वामनावतार में दैत्यराज बलि के गर्व हरण तथा तीनों लोकों को भगवान द्वारा तीन पगों में नापने का कथानक है।
- परशुरामावतार में क्षत्रियों के गर्व हरण का कथानक है।
- रामावतार में राक्षस राज रावण के अहंकार को नष्ट कर उसके वध का कथानक है।
- कृष्णावतार में कंस वध और महाभारत युद्ध में कौरवों के विनाश का कथानक है।
- बुद्धावतार में जीव हत्या में लिप्त संसार के दुखीजन को अहिंसा का महान् संदेश देने का कथानक है।
चौबीस अवतार
'सुखसागर' के अनुससार भगवन विष्णु के चौबीस अवतार हैं[3]-
- श्री सनकदि
- वराहावतार
- नारद मुनि
- नर-नरायण
- कपिल
- दत्तात्रेय
- यज्ञ
- ऋषभदेव
- पृथु
- मत्स्यावतार
- कूर्म अवतार
- धन्वन्तरि
- मोहिनी
- हयग्रीव
- नृसिंह
- वामन
- गजेन्द्रोधारावतर
- परशुराम
- वेदव्यास
- हन्सावतार
- राम
- कृष्ण
- बुद्ध
- कल्कि
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भगवदगीता-4|8
- ↑ जिसमें ब्राह्मणकुल भी सम्मिलित थे।
- ↑ विष्णु के चौबीस अवतार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 जून, 2013।
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