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उड़ीसा राज्य प्राचीन समय में 'कलिंग' के नाम से विख्यात था। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी (261 ई.पू.) में मौर्य सम्राट अशोक ने कलिंग विजय करने के लिए एक शक्तिशाली सेना भेजी थी, जिसका कलिंग के निवासियों ने जमकर सामना किया। सम्राट अशोक ने कलिंग तो जीता, परन्तु युद्ध के भीषण संहार से सम्राट का मन में वितृष्णा पैदा हो गई और अशोक की मृत्यु के बाद कलिंग फिर से स्वाधीन हो गया। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में खारवेल राजा के अधीन कलिंग एक शक्तिशाली साम्राज्य बन गया। खारवेल की मृत्यु के बाद उड़ीसा की ख्याति लुप्त हो गई। चौथी शताब्दी में विजय पर निकले समुद्रगुप्त ने उड़ीसा पर आक्रमण किया और इस प्रदेश के पांच राजाओं को पराजित किया। सन 610 में उड़ीसा पर शशांक नरेश का अधिकार हो गया। शशांक के निधन के बाद हर्षवर्धन ने उड़ीसा पर विजय प्राप्त की।

सातवीं शताब्दी में उड़ीसा पर गंग वंश का शासन रहा। सन 795 में महाशिवगुप्त यजाति द्वितीय ने उड़ीसा का शासन भार संभाला और उड़ीसा के इतिहास का सबसे गौरवशाली अध्याय शुरू हुआ। उन्होंने कलिंग, कनगोडा, उत्कल और कोशल को मिलाकर खारवेल की भाँति विशाल साम्राज्य की नींव रखी। गंग वंश के शासकों के समय में उड़ीसा राज्य की बहुत उन्नति हुई। इस राजवंश के शासक राजा नरसिंह देव ने कोणार्क का विश्व भर में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर बनवाया था। 16 वीं शताब्दी के लगभग मध्य से 1592 तक उड़ीसा पांच मुस्लिम राजाओं द्वारा शासित रहा। सन 1592 में अकबर ने उड़ीसा को अपने अधीन कर अपने शासन में शामिल कर लिया। मुग़लों के पतन के पश्चात उड़ीसा पर मराठों का अधिकार रहा। सन 1803 में ब्रिटिश राज से पहले उड़ीसा मराठा शासकों के अधीन रहा।

1 अप्रैल सन 1936 को उड़ीसा को स्वतंत्र प्रांत बनाया गया। स्वतंत्रता के बाद उड़ीसा तथा इसके आसपास की रियासतों ने भारत सरकार को अपनी सत्ता सौंप दी। रियासतों (गवर्नर के अधीन प्रांतों) के विलय संबंधी आदेश 1949 के अंतर्गत जनवरी 1949 में उड़ीसा की सभी रियासतों का उड़ीसा राज्य में सम्पूर्ण विलय हो गया। उड़ीसा के कलिंग, उत्कल और उद्र जैसे कई प्राचीन नाम हैं, परन्तु यह प्रदेश मुख्यत: भगवान जगन्नाथ की भूमि के लिए प्रसिद्ध है। भगवान जगन्नाथ उड़ीसा के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन से बहुत गहरे जुडे हुए हैं। विभिन्न समय में उड़ीसा के लोगों पर जैन, ईसाई और इस्लाम धर्मो का प्रभाव पडा।


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