कर्नाटक का इतिहास
कर्नाटक राज्य का लगभग 2,000 वर्ष का लिखित इतिहास उपलब्ध है। कर्नाटक पर नंद, मौर्य और सातवाहन नामक राजाओं का शासन रहा। चौथी शताब्दी के मध्य से इसी क्षेत्र के राजवंशों 'बनवासी' के कदंब तथा गंगों का अधिकार रहा। श्रवणबेलगोला में 'गोमतेश्वर' की विशाल प्रतिमा गंग वंश के मंत्री 'चामुंडराया' ने बनवायी थी, जो विश्व प्रसिद्ध है। बादामी के चालुक्य वंश ने नर्मदा से कावेरी तक के विशाल भू-भाग पर राज किया और पुलकेशी द्वितीय (609-642 ई.) ने कन्नौज के शाक्तिशाली राजा हर्षवर्धन को हराया था। इस राजवंश ने बादामी, ऐहोल और पट्टदकल में अनेक सुंदर कलात्मक तथा कालजयी स्मारकों का निर्माण कराया था। इसमें कुछ मंदिर चट्टानों को तराशकर बनाए गए है। एहोल के मंदिर में वास्तुकला का विकास हुआ।
विभिन्न वंशों का अधिकार
चालुक्यों के स्थान पर बाद में मलखेड़ के राष्ट्रकूटों ने कन्नौज के वैभवशाली समय में भी अपनी सत्ता को बनाए रखा। इसी समय कन्नड़ साहित्य का विकास प्रारम्भ हुआ। भारत के प्रमुख जैन विद्वान् यहाँ के राजाओं के दरबार की शोभा थे। कल्याणी के चालुक्य राजा और उनके बाद हलेबिड के होयसाल शासकों ने कलात्मक मंदिरों का निर्माण करवाया। ललित कलाओं और साहित्य को बढावा दिया। विजयनगर साम्राज्य ने इन्हीं परपंराओं का पालन करते हुए कला, धर्म, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु और तमिल साहित्य को बढावा दिया। उनके समय में व्यापार का भी बहुत विस्तार हुआ। अजीमुद्दौला को 1801 ई. में गवर्नर-जनरल लॉर्ड वेलेजली द्वारा कर्नाटक का नाम मात्र के लिए नवाब बनाया गया और उसे पेंशन दी।
नये स्वतंत्र राज्य की स्थापना
कर्नाटक के नवाब 'सआदतुल्ला ख़ाँ' ने स्वतन्त्र कर्नाटक राज्य की स्थापना की थी। उसने अर्काट को अपनी राजधानी बनाया। सआदतुल्ला ख़ाँ ने अपने भतीजे 'दोस्त अली' को हैदराबाद के निज़ाम की अनुमति के बिना ही अपना उत्तराधिकारी बना दिया था। 1740 ई. में दोस्त अली की हत्या मराठों ने कर दी। इस प्रकार 'सफ़दर अली' इसका उत्तराधिकारी बना। 1740 ई. के बाद योग्य नवाबों के अभाव में यूरापीय कम्पनियों को यहाँ की राजनीति में हस्तक्षेप करने का अवसर मिल गया, जिससे स्वतंत्र कर्नाटक राज्य का अस्तित्व समाप्त हो गया।
अंग्रेज़ों का अधिकार
बहमनी सुल्तानों और बीजापुर के आदिलशाहों ने सारासानी शैली में विशाल भवनों का निर्माण कराया। उर्दू, फ़ारसी के साहित्य की रचना इसी समय में हुई। इसके बाद पुर्तग़ाली अपने साथ नई फ़सलें जैसे- तंबाकू, मक्का, मिर्च, मूँगफली, आलू आदि लेकर आये और इनकी खेती प्रारम्भ हुई। पेशवा और टीपू सुल्तान की पराजय के बाद कर्नाटक ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया। 19वीं शताब्दी में ईसाई मिशनरियों के कारण अंग्रेज़ी की शिक्षा, परिवहन, संचार और उद्योग में क्रान्तिकारी बदलाव आया और नगरों में मध्यम वर्ग का पनपना प्रारम्भ हुआ।
नाम परिवर्तन
मैसूर राजवंश ने यहाँ के विकास, औद्योगिकीकरण तथा सांस्कृतिक वृद्धि के लिए कई योजनाओं को अपनाया। आज़ादी की लड़ाई के समय कर्नाटक में एकता का अभियान चलाया गया। स्वतंत्रता मिलने पर 1953 में मैसूर राज्य का निर्माण हुआ, जिसमें कन्नड़ बहुल क्षेत्रों को साथ लेकर मैसूर राज्य का निर्माण 1956 में किया गया और इसे 1973 में कर्नाटक का नाम दिया गया। विजयनगर साम्राज्य के विघटन के दौरान अनेक हिन्दू जागीरदारों ने अपने स्वतन्त्र राज्य क़ायम कर लिये थे। इसी प्रकार का एक छोटा राज्य इक्केरी (बेदनूर) भी था, जो कि कर्नाटक के अंतर्गत आता है।
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