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'''सरला देवी''' का जन्म 1827 ई. में हुआ था। सरला देवी गुरुदेव [[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] की बड़ी बहिन थीं। स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने [[बंगाल]] के सुप्रसिद्ध पत्र 'भारती' का सम्पादन सँभाला। 1905 ई. के [[कांग्रेस]] के ऐतिहासिक बनारस अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया एवं पहली बार 'वंदेमातरम' का घोष किया था। तभी से यह नारा भारतीय क्रांतिकारियों का युद्धघोष बन गया।
 
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सरला देवी का जन्म 1827ई. में हुआ था। सरला देवी गुरुदेव [[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] की बड़ी बहिन थीं। स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने [[बंगाल]] के सुप्रसिद्ध पत्र 'भारती' का सम्पादन सँभाला। 1905 ई. के [[कांग्रेस]] के ऐतिहासिक बनारस अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया एवं पहली बार 'वंदेमातरम का घोष किया था। तभी से यह नारा भारतीय क्रांतिकारियों का युद्धघोष बन गया।
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सरला देवी ने लोकमान्य तिलक द्वारा [[महाराष्ट्र]] में आयोजित 'गणपति' एवं 'शिवाजी' उत्सवों की तरह बंगाल में भी दो उत्सवों की तरह बंगाल में भी दो उत्सव प्रारम्भ किए।
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उनका विवाह 1905 ई. में [[पंजाब]] के रामभुज दत्त चौधरी के साथ हुआ एवं उनका कार्यक्षेत्र पंजाब तक विस्तृत हो गया। पंजाब में उन्होंने [[उर्दू]] एवं [[अंग्रेजी]] के दो पत्रों का सम्पादन किया। 1919 ई. में [[रौलट एक्ट]] का विरोध करने पर उनके पति को आजीवन कारावास हो गया, परंतु जनजसामान्य में लोकप्रिय सरला देवी को गिरफ़तार करने का साहस अंग्रेज सरकार न कर सकी। पति की गिरफ़तारी के बाद वे गुप्त रूप से क्रांतिकारियों की मदद करती रहीं। डॉ. मजूमदार के अनुसार- "सरला देवी बीसवीं सदी के दूसरे एवं तीसरे दशकों में बंगाल और पंजाब के क्रांतिकारियों के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी बन गई थीं।" 1945 ई. में अस्वस्थता के कारण उनका निधन हो गया।
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सरला देवी का जन्म 1827 ई. में हुआ था। सरला देवी गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की बड़ी बहिन थीं। स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने बंगाल के सुप्रसिद्ध पत्र 'भारती' का सम्पादन सँभाला। 1905 ई. के कांग्रेस के ऐतिहासिक बनारस अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया एवं पहली बार 'वंदेमातरम' का घोष किया था। तभी से यह नारा भारतीय क्रांतिकारियों का युद्धघोष बन गया।

उत्सवों का आरम्भ

सरला देवी ने लोकमान्य तिलक द्वारा महाराष्ट्र में आयोजित 'गणपति' एवं 'शिवाजी' उत्सवों की तरह बंगाल में भी दो उत्सव प्रारम्भ किए।

विवाह

सरला देवी का विवाह 1905 ई. में पंजाब के रामभुज दत्त चौधरी के साथ हुआ एवं उनका कार्यक्षेत्र पंजाब तक विस्तृत हो गया।

सम्पादन

पंजाब में उन्होंने उर्दू एवं अंग्रेजी के दो पत्रों का सम्पादन किया।

क्रांतिकारियों की मदद

1919 ई. में रौलट एक्ट का विरोध करने पर उनके पति को आजीवन कारावास हो गया, परंतु जनजसामान्य में लोकप्रिय सरला देवी को गिरफ्तार करने का साहस अंग्रेज़ सरकार न कर सकी। पति की गिरफ्तारी के बाद वे गुप्त रूप से क्रांतिकारियों की मदद करती रहीं। डॉ. मजूमदार के अनुसार- "सरला देवी बीसवीं सदी के दूसरे एवं तीसरे दशकों में बंगाल और पंजाब के क्रांतिकारियों के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी बन गई थीं।"

निधन

1945 ई. में अस्वस्थता के कारण सरला देवी का निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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