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*यहाँ पुराने खंडहरों के बीच केवल एक प्राचीन जैनमंदिर ही काल-कवलित होने से बचा है। यह केवल एक सहस्न वर्ष प्राचीन है।  
 
*यहाँ पुराने खंडहरों के बीच केवल एक प्राचीन जैनमंदिर ही काल-कवलित होने से बचा है। यह केवल एक सहस्न वर्ष प्राचीन है।  
 
*जैसलमेर के शासक महारावल कहलाते थे।
 
*जैसलमेर के शासक महारावल कहलाते थे।
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05:37, 18 जून 2010 का अवतरण

जैसलमेर शहर, पश्चिमी राजस्थान राज्य, पश्चिमोत्तर भारत में स्थित है। पीले भूरे पत्थरों से निर्मित भवनों के लिए विख्यात जैसलमेर की स्थापना 1156 में राजपूतों (राजपूताना एतिहासिक क्षेत्र के योद्धा शासक) के सरदार रावल जैसल ने की थी।

विशेषता तथा महत्व

यह सारा नगर ही पीले सुन्दर पत्थर का बना हुआ है जो नगर की विशेषता है। यहाँ के मंदिर व प्राचीन भवन और प्रासाद भी इसी पीले पत्थर के बने हुए हैं और उन पर जाली का बारीक काम किया हुआ है। जैसलमेर पर्यटन का सबसे आकर्षक स्थल माना जाता है। भारत के मानचित्र में जैसलमेर ऐसे स्थल पर स्थित है जहाँ इतिहास में इसका विशिष्ट महत्व है। इस राज्य का भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा पर विस्तृत क्षेत्रफल होने के कारण यहाँ के शासकों ने अरबों तथा तुर्की के प्रारंभिक हमलों को न केवल सहन किया वरन दृढ़ता के साथ इन बाहरी आक्रमणों से उन्हें पीछे धकेलकर राजस्थान, गुजरात तथा मध्य भारत को सदियों तक सुरक्षित रखा। मेवाड़ और जैसलमेर राजस्थान के दो राजपूत राज्य है, जो अन्य राज्यों से प्राचीन माने जाते हैं, जहाँ एक ही वंश का लम्बे समय तक शासन रहा है। हालाँकि जैसलमेर राज्य की ख्याति मेवाड़ के इतिहास की तुलना में बहुत कम हुई है, इसका मुख्य कारण यह है कि मुगल-काल में जहाँ मेवाड़ के महाराणाओं की स्वाधीनता बनी रही वहीं अन्य शासक की भाँति जैसलमेर के महारावलों द्वारा मुग़लों से मेलजोल कर लिया जो अंत तक चलता रहा।

जैसलमेर आर्थिक क्षेत्र में भी यह राज्य एक साधारण आय वाला पिछड़ा क्षेत्र रहा है, जिसके कारण यहाँ के शासक कभी शक्तिशाली सैन्य बल संगठित नहीं कर सके। इसके विस्तृत भू-भाग को दबा कर इसके पड़ोसी राज्यों ने नए राज्यों का संगठन कर लिया जिनमें बीकानेर, खैरपुर, मीरपुर, बहावलपुर एवं शिकारपुर आदि राज्य हैं। जैसलमेर के इतिहास के साथ प्राचीन यदुवंश तथा मथुरा के राजा यदु वंश के वंशजों का सिंध, पंजाब, राजस्थान के भू-भाग में पलायन और कई राज्यों की स्थापना आदि के अनेकानेक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक प्रसंग जुड़े हुए हैं।

सामान्यत: लोगों की कल्पना में यह स्थान धूल व आँधियों से घिरा रेगिस्तान मात्र है। परंतु इतिहास एवं काल के थपेड़े खाते हुए भी यहाँ प्राचीन, संस्कृति, कला, परंपरा व इतिहास अपने मूल रुप में विधमान रहा तथा यहाँ के रेत के कण-कण में पिछले आठ सौ वर्षों के इतिहास की गाथाएँ भरी हुई हैं। जैसलमेर राज्य ने मूल भारतीय संस्कृति, लोक शैली, सामाजिक मान्यताएँ, निर्माणकला, संगीतकला, साहित्य, स्थापत्य आदि के मूलरूपांतरण को बनाए रखा है।

इतिहास

12वीं शताब्दी में जैसलमेर अपनी चरम सीमा पर था। आरंभिक 14वीं शताब्दी में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी द्वारा राजधानी को नेस्तनाबूद किए जाने के बाद इसका पतन हो गया। बाद में यह मुग़ल सत्ता के अधीन हो गया और 1818 में इसने अंग्रेज़ों के साथ राजनीतिक संबंध क़ायम किए। 1949 में यह राजस्थान राज्य में शामिल हो गया। जैसलमेर राजपूताने की प्राचीन रियासत तथा उसका मुखय नगर है। किंवदंती के अनुसार जैसलराव ने जैसलमेर की नींव 1155 ई॰ (विक्रम संवत्) में डाली थी। कहा जाता है कि जैसलराव के पूर्व पुरुषों ने ही गजनी बसाई थी और उन्होंने ही राजा शालिवाहन के समय में स्यालकोट बसाया था। किसी समय जैसलमेर बड़ा नगर था जो अब इसके अनेक रिक्त भवनों को देखने से सूचित होता है। प्राचीन काल में यहाँ पीला संगमरमर तथा अन्य कई प्रकार के पत्थर तथा मिट्टियाँ पाई जाती थीं जिनका अच्छा व्यापार था।

जैसलमेर का इतिहास अत्यंत प्राचीन रहा है। यह शहर प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्र रहा है। वर्तमान जैसलमेर ज़िले का भू-भाग प्राचीन काल में ’माडधरा’ अथवा ’वल्लभमण्डल’ के नाम से प्रसिद्ध था।[1] ऐसा माना जाता हैं कि महाभारत युद्ध के पश्चात कालान्तर में यादवों का मथुरा से काफ़ी संख्या में बहिर्गमन हुआ। जैसलमेर के भूतपूर्व शासकों के पूर्वज जो अपने को भगवान कृष्ण के वंशज मानते हैं, संभवता छठी शताब्दी में जैसलमेर के भूभाग पर आ बसे थे। ज़िले में यादवों के वंशज भाटी राजपूतों की प्रथम राजधानी तनोट, दूसरी लौद्रवा तथा तीसरी जैसलमेर में रही।

पौराणिक इतिहास

वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के किष्किन्धा कांड में पश्चिम दिशा के जन पदों के वर्णन में मरु स्थली नामक जनपद की चर्चा की गई है। डॉ ए.बी. लाल के अनुसार यह वही मरु भूमि है। महाभारत के अश्वमेघिक पूर्व में वर्णन है कि हस्तिनापुर से जब भगवान श्रीकृष्ण द्वारका जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में बालू, धूल व काँटों वाला मरुस्थल (मरुभूमि) का रेगिस्तान पड़ा था। इस भू-भाग को महाभारत के वन पूर्व में सिंधु-सौवीर कहकर सम्बोधित किया गया है। पाण्डु पुत्र नकुल ने अपने पश्चिम दिग्विजय में मरुभूमि, सरस्वती की घाटी, सिंध आदि प्रांत को विजित कर लिया था यह महाभारत के समापर्व के अध्याय ३२ में वर्णित है। मरुभूमि आधुनिक माखाड़ का ही विस्तृत क्षेत्र है।

प्रागऐतेहासिक काल

इस प्रदेश में उपलब्ध वेलोजोइक, मेसोजोइक, एवं सोनाजाइक कालीन अवशेष भू-वैज्ञानिक दृष्टि से इस प्रदेश की प्रागऐतेहासिक कालीन स्थिति को प्रमाणित करते हैं। प्राचीन काल में इस संपूर्ण क्षेत्र को ज्यूटालिक चट्टानों के अवशेष यहाँ समुद्र होने का प्रमाण देते हैं। यहाँ से विस्तृत मात्रा में जीवश्यों की होने वाली प्राप्ति में भी यहाँ समुद्र होने का प्रमाण मिलता है। यहाँ मानव ने रहना तब से प्रारंभ किया था, जब यह प्रदेश सागरीय जल से मुक्त हो गया। जैसलमेर क्षेत्र की मुख्य भूमि में अभी तक कोई उल्खनन कार्य नहीं हुआ है, परंतु इसके पश्चिम में मोहनजोदाड़ोहड़प्पा, उत्तर-पूर्व में कालीबंगा व पूर्वी क्षेत्र में सरस्वती के उल्खनन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस क्षेत्र में आदि मानव का अस्तित्व अवश्य रहा होगा।

ऐतिहासिक काल के प्रांरभ में पौराणिक काल की सीमा से निकल कर इस क्षेत्र को माडमड़ प्रदेश के नाम से जाना जाता था। इस प्रदेश के लिए माड़ शब्द का प्रयोग हमें पुन: प्रतिहार शासक कक्कुट के घटियाला अभिलेख से प्राप्त होता है। इसमें इसे त्रवणी तथा वल्ल के साथ प्रयोग किया गया है "येन प्राप्ता महख्याति स्रवर्ण्यो वल्ल माड़ ये"। वल्ल तथा माड़ को इस लेख में समास के रुप में प्रयोग किए जाने से तात्पर्य निकलता है कि वल्ल तथा माड़ समीपवर्ती राज्य रहे होंगे। उस समय भारत का समीपवर्ती राज्य माड़ प्रदेश था, इसका उल्लेख "अलविलाजूरी" के विवरण से प्राप्त है, जिसमें इस प्रदेश को अरब राज्य की सीमा पर स्थित होना बताया गया है।

अल-विला जूरी ने उल्लेख किया है कि जुनैद ने अपने अधिकारियों को माड़मड़ मंडल, बरुस, दानत्र तथा अन्य स्थानों पर भेजा था व जुर्ज पर विजय प्राप्त की थी। यहाँ पर माड़माउड का प्रयोग मरु प्रदेश माड़ व मंड मंडल (मारवाड़) के लिए किया गया है ये दोनों प्रदेश एक दूसरे के सीमांत प्रदेश हैं। जैसलमेर क्षेत्र का कुछ भाग त्रवेणी क्षेत्र का हिस्सा भी रहा है जिसका उल्लेख प्रतिहार बाऊक के जोधपुर अभिलेख से प्राप्त होता है। प्रतिहारों के चरमोत्कर्ष काल (७००-९०० ई.) में यह सारा प्रदेश जिसमें माड़ ही था, उनके सम्राज्य का अंग था। प्रतिहारों की शक्ति जब कालातंर में क्षीण हो ही गई तथा इस क्षेत्र में विभिन्न क्षत्रिय व स्थानीय जातियों जिनमें भूटा-लंगा, पुंवार, मोहिल आदि प्रमुख थे ने छोटे-छोटे क्षेत्रों पर अपना अधिकार जमा लिया।

व्यापार और उद्योग

यह शहर ऊन, चमड़ा, नमक, मुलतानी मिट्टी, ऊँट और भेड़ का व्यापार करने वाले कारवां का प्रमुख केंद्र है।

कृषि और खनिज

ज्वार और बाजरा यहाँ की मुख्य फ़सलें हैं। बकरी, ऊँट, भेड़ और गायों का प्रजनन बड़े पैमाने पर किया जाता है, चूना पत्थर, मुलतानी मिट्टी और जिप्सम का खनन होता है।

यातायात और परिवहन

यह शहर जोधपुर, बाड़मेर तथा फलोदी से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।

शिक्षण संस्थान

यहाँ श्री सांगीदास बालकृष्ण गवर्नमेंट कॉलेज नामक एक महाविद्यालय है।

जनसंख्या

जैसलमेर शहर की जनसंख्या (2001 की गणना के अनुसार) 58, 286 है। जैसलमेर ज़िले की कुल जनसंख्या 5,07,999 है।

पर्यटन

जैसलमेर शहर के निकट एक पहाड़ी पर बने हुए इस दुर्ग में राजमहल, कई प्राचीन जैन मंदिर और ज्ञान भंडार नामक एक पुस्तकालय है, जिसमें प्राचीन संस्कृत तथा प्राकृत पांडुलिपियाँ रखी हुई हैं। इसके आसपास का क्षेत्र, जो पहले एक रियासत था, लगभग पूरी तरह रेतीला बंजर इलाक़ा है और थार रेगिस्तान का एक हिस्सा है। यहाँ की एकमात्र काकनी नदी काफ़ी बड़े इलाके में फैल कर भिज झील का निर्माण करती है।

जैसलमेर, ज़िले का प्रमुख नगर हैं जो नक्काशीदार हवेलियों, गलियों, प्राचीन जैन मंदिरों, मेलों और उत्सवों के लिये प्रसिद्ध हैं। निकट ही सम गाँव में रेत के टीलों का पर्यटन की दृष्टि से विशेष महत्व हैं। यहाँ का सोनार क़िला राजस्थान के श्रेष्ठ धान्वन दुर्गों में माना जाता हैं।

प्रमुख एतिहासिक स्मारक

  • जैसलमेर के प्रमुख एतिहासिक स्मारकों में सर्वप्रमुख यहाँ का क़िला है। यह 1155 ई॰ में निर्मित हुआ था। यह स्थापत्य का सुंदर नमूना है। इसमें बारह सौ घर हैं।
  • 15वीं सती में निर्मित जैन मंदिरों के तोरणों, स्तंभों, प्रवेशद्वारों आदि पर जो बारीक न्क़्क़ाशी व शिल्प प्रदर्शित है उन्हें देखकर दाँतो तले उँगली दबानी पड़ती है। कहा जाता है कि जावा, बाली आदि प्राचीन हिंदू व बौद्ध उपनिवेशों के स्मारकों में जो भारतीय वास्तु व मूर्तिकला प्रदर्शित है उससे जैसलमेर के जैन मंदिरों की कला का अनोखा साम्य है।
  • क़िले में लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर अपने भव्य सौंदर्य के लिए प्रख्यात है।
  • नगर से चार मील दूर अमरसागर के मंदिर में मकराना के संगमरमर की बनी हुई जालियाँ निर्मित हैं।
  • जैसलमेर की पुरानी राजधानी लोद्रवापुर थी।
  • यहाँ पुराने खंडहरों के बीच केवल एक प्राचीन जैनमंदिर ही काल-कवलित होने से बचा है। यह केवल एक सहस्न वर्ष प्राचीन है।
  • जैसलमेर के शासक महारावल कहलाते थे।

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. जैसलमेर (हिन्दी) यात्रा सलाह। अभिगमन तिथि: 18 जून, 2010।