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प्राचीन काल में यह [[अंग जनपद|अंग प्रदेश]] का सीमांत क्षेत्र था। 'पाल वंश' के समय में यह स्थान कुछ समय के लिए राजधानी भी रह चुका था। इस स्थान पर धर्मपाल से संबंधित साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। ज़िले के बालगुदर क्षेत्र में मदन पाल का स्मारक (1161-1162) भी पाया गया है। चीनी यात्री [[ह्वेनसांग]] ने इस जगह पर 10 बौद्ध मठ होने के संबंध में विस्तार से बताया है। उनके अनुसार यहां मुख्य रूप से हीनयान संप्रदाय के बौद्ध मतावलंबी आते थे। इतिहास के अनुसार 11वीं सदी में मोहम्मद बिन बख्तियार ने यहाँ आक्रमण किया था। [[भारतीय इतिहास]] में प्रसिद्ध [[शेरशाह]] ने 15वीं सदी में यहाँ शासन किया था, जबकि यहाँ स्थित 'सूर्यगढ़' शेरशाह और [[मुग़ल]] बादशाह [[हुमायूँ]] (1534) के युद्ध का साक्षी है।
 
प्राचीन काल में यह [[अंग जनपद|अंग प्रदेश]] का सीमांत क्षेत्र था। 'पाल वंश' के समय में यह स्थान कुछ समय के लिए राजधानी भी रह चुका था। इस स्थान पर धर्मपाल से संबंधित साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। ज़िले के बालगुदर क्षेत्र में मदन पाल का स्मारक (1161-1162) भी पाया गया है। चीनी यात्री [[ह्वेनसांग]] ने इस जगह पर 10 बौद्ध मठ होने के संबंध में विस्तार से बताया है। उनके अनुसार यहां मुख्य रूप से हीनयान संप्रदाय के बौद्ध मतावलंबी आते थे। इतिहास के अनुसार 11वीं सदी में मोहम्मद बिन बख्तियार ने यहाँ आक्रमण किया था। [[भारतीय इतिहास]] में प्रसिद्ध [[शेरशाह]] ने 15वीं सदी में यहाँ शासन किया था, जबकि यहाँ स्थित 'सूर्यगढ़' शेरशाह और [[मुग़ल]] बादशाह [[हुमायूँ]] (1534) के युद्ध का साक्षी है।
==उद्योग==
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==रंगों का शहर==
[[बिहार]] मे रंगों के शहर के नाम से मशहूर लखीसराय में रंगों का व्यवसाय अब धीरे-धीरे फीका पड़ रहा है। [[वर्ष]] [[1937]] मे चिरंजी लाल ड्रोलिया ने इस शहर में 'ड्रोलिया केमिकल कंपनी' नामक फैक्ट्री का शुभारंभ किया था, जिसमे [[सिन्दूर]] का निर्माण किया जाता था। लखीसराय का बना सिंदूर [[भारत]] के अलावा [[नेपाल]] एवं [[बांग्लादेश]] तक की मंडियो में पहुंचता है। रंगों के त्योहार '[[होली]]' से कुछ [[माह]] पूर्व लखीसराय मे सिंदूर के साथ-साथ [[रंग]], [[अबीर]] और [[गुलाल]] के निर्माण में भी पूरी तरह से सराबोर हो जाता है। रंग निर्माण के लिये कच्चा माल [[मुंबई]], [[पुणे]], [[दिल्ली]], [[जबलपुर]] और [[अलवर]] से मंगाया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://khabar.ibnlive.in.com/latest-news/news/City-Of-Color-Lakhisarai-1739582.html?ref=hindi.in.com|title=कभी रंगों के शहर के नाम से जाना जाता था- लखीसराय|accessmonthday= 13 अप्रैल|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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'[[होली]]' के तीन माह पूर्व लखीसराय की फैक्ट्रियाँ अबीर और गुलाल बनाने के कार्य में जुट जाती हैं। सिन्दूर वाणिज्य कर से मुक्त है, जबकि अबीर और गुलाल पर पांच फीसदी बिक्री कर देय है। वहीं रंगों पर 13 फीसदी वाणिज्य कर देय है, लेकिन रंगों के व्यवसाय से सरकारी ख़ज़ाने में एक पैसा भी नहीं पहुँच पाता है। [[वर्ष]] [[1937]] से ही व्यवसाय से जुड़े शहर के रजिस्टर्ड कारखानों में भले ही रंगों का निर्माण न हो रहा हो, लेकिन 'होली' के [[मौसम]] में चोरी छिपे रंगों का निर्माण करने वालों की भी यहाँ कमी नहीं है। बड़े शहरों से मंगाये गये रंगों में पाउडर तथा अन्य केमिकल मिलाकर रंगों को ही पैकिंग करने वालों की यहाँ कमी नहीं है। ऐसे व्यवसायी '[[दशहरा|दशहरे]]' से लेकर होली तक मे लगभग पांच करोड़ [[रुपया|रुपये]] का व्यवसाय कर लेते है।
 
==आवागमन के साधन==
 
==आवागमन के साधन==
 
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10:21, 13 अप्रैल 2014 का अवतरण

लखीसराय बिहार का ज़िला है। बिहार के प्रसिद्ध शहरों में से यह एक है। इस नगर की स्थापना पाल वंश के दौरान एक धार्मिक तथा प्रशासनिक केंद्र के रूप में की गई थी। बौद्ध साहित्य में लखीसराय को 'अंगुत्री' के नाम से जाना जाता है। बिहार में "रंगों का शहर" के नाम से मशहूर लखीसराय में रंगों का व्यवसाय बहुत होता था, जो अब धीरे-धीरे फीका पड़ रहा है। वर्ष 1937 मे चिरंजी लाल ड्रोलिया ने इस शहर मे 'ड्रोलिया केमिकल कंपनी' नामक फैक्ट्री का शुभारंभ किया था, जिसमें सिन्दूर का निर्माण किया जाता था।

इतिहास

'लखीसराय' बिहार के महत्वपूर्ण शहरों में एक है। इस ज़िले का गठन 3 जुलाई, 1994 को किया गया था। इससे पहले यह मुंगेर ज़िले के अंतर्गत आता था। इतिहासकार इस शहर के अस्तित्व के संबंध में कहते हैं कि यह पाल वंश के समय अस्तित्व में आया था। यह दलील मुख्य रूप से यहां के धार्मिक स्थलों को साक्ष्य मानकर दी जाती है। चूंकि‍ तत्कालीन समय के हिन्दू राजा मंदिर बनवाने के शौकीन हुआ करते थे, अत: उन्होंने इस क्षेत्र में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था। लखीसराय हिन्दू और बौद्ध देवी-देवताओं के लिए प्रसिद्ध है। बौद्ध साहित्य में इस स्थान को 'अंगुत्री' के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है- ज़िला।

प्राचीन काल में यह अंग प्रदेश का सीमांत क्षेत्र था। 'पाल वंश' के समय में यह स्थान कुछ समय के लिए राजधानी भी रह चुका था। इस स्थान पर धर्मपाल से संबंधित साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। ज़िले के बालगुदर क्षेत्र में मदन पाल का स्मारक (1161-1162) भी पाया गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस जगह पर 10 बौद्ध मठ होने के संबंध में विस्तार से बताया है। उनके अनुसार यहां मुख्य रूप से हीनयान संप्रदाय के बौद्ध मतावलंबी आते थे। इतिहास के अनुसार 11वीं सदी में मोहम्मद बिन बख्तियार ने यहाँ आक्रमण किया था। भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध शेरशाह ने 15वीं सदी में यहाँ शासन किया था, जबकि यहाँ स्थित 'सूर्यगढ़' शेरशाह और मुग़ल बादशाह हुमायूँ (1534) के युद्ध का साक्षी है।

रंगों का शहर

बिहार मे रंगों के शहर के नाम से मशहूर लखीसराय में रंगों का व्यवसाय अब धीरे-धीरे फीका पड़ रहा है। वर्ष 1937 मे चिरंजी लाल ड्रोलिया ने इस शहर में 'ड्रोलिया केमिकल कंपनी' नामक फैक्ट्री का शुभारंभ किया था, जिसमे सिन्दूर का निर्माण किया जाता था। लखीसराय का बना सिंदूर भारत के अलावा नेपाल एवं बांग्लादेश तक की मंडियो में पहुंचता है। रंगों के त्योहार 'होली' से कुछ माह पूर्व लखीसराय मे सिंदूर के साथ-साथ रंग, अबीर और गुलाल के निर्माण में भी पूरी तरह से सराबोर हो जाता है। रंग निर्माण के लिये कच्चा माल मुंबई, पुणे, दिल्ली, जबलपुर और अलवर से मंगाया जाता है।[1] बीते कुछ दशकों के दौरान रंग व्यवसाय के जोर पकड़ने से लखीसराय में ड्रोलिया के अलावा कई फैक्ट्रियाँ और खुलीं, लेकिन इन फैक्ट्रियों पर बिजली की कमी, खस्ताहाल सड़कों और ख़राब क़ानून व्यवस्था ने अपना असर दिखाया और इसमें से आधी से अधिक पर दो दशक पूर्व ताले लटक गये। इस समय वाणिज्य कर विभाग द्वारा निबंधित मात्र छह फैक्ट्रियाँ हैं, जिसमें सिन्दूर का निर्माण होता है।

अबीर-गुलाल का निर्माण

'होली' के तीन माह पूर्व लखीसराय की फैक्ट्रियाँ अबीर और गुलाल बनाने के कार्य में जुट जाती हैं। सिन्दूर वाणिज्य कर से मुक्त है, जबकि अबीर और गुलाल पर पांच फीसदी बिक्री कर देय है। वहीं रंगों पर 13 फीसदी वाणिज्य कर देय है, लेकिन रंगों के व्यवसाय से सरकारी ख़ज़ाने में एक पैसा भी नहीं पहुँच पाता है। वर्ष 1937 से ही व्यवसाय से जुड़े शहर के रजिस्टर्ड कारखानों में भले ही रंगों का निर्माण न हो रहा हो, लेकिन 'होली' के मौसम में चोरी छिपे रंगों का निर्माण करने वालों की भी यहाँ कमी नहीं है। बड़े शहरों से मंगाये गये रंगों में पाउडर तथा अन्य केमिकल मिलाकर रंगों को ही पैकिंग करने वालों की यहाँ कमी नहीं है। ऐसे व्यवसायी 'दशहरे' से लेकर होली तक मे लगभग पांच करोड़ रुपये का व्यवसाय कर लेते है।

आवागमन के साधन

हवाई मार्ग

यद्यपि लखीसराय हवाई मार्ग से सीधे तौर पर नहीं जुड़ा है, लेकिन राजधानी पटना तक हवाई मार्ग की सुविधा है। जहाँ से रेल या सड़क मार्ग द्वारा लखीसराय पहुंचा जा सकता है। पटना लखीसराय से 142 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

रेल मार्ग

लखीसराय स्टेशन दिल्ली-हावड़ा मुख्य रेलवे मार्ग पर है। इसलिए यह शहर दिल्ली से सीधे जुड़ा हुआ है। किउल जंक्शन निकट ही होने के कारण यह स्थान बिहार के अन्य क्षेत्रों से भी प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग

लखीसराय ज़िला 'राष्ट्रीय राजमार्ग 80' पर स्थित है, जो राजधानी पटना से जुड़ा हुआ है। यहाँ आने के लिए निजी या सार्वजनिक वाहनों का उपयोग किया जा सकता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कभी रंगों के शहर के नाम से जाना जाता था- लखीसराय (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 अप्रैल, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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