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'''शाहनामा''' एक महाग्रंथ, जिसकी रचना [[फ़िरदौसी]] ने की थी। यह [[ग्रंथ]] [[फ़ारसी भाषा]] में लिखा गया है, जिसमें [[ईरान]] पर अरबी फ़तह (सन 636) के पूर्व के शासकों का चरित लिखा गया है। शाहनामा को फ़िरदौसी ने तीस [[वर्ष]] की बड़ी मेहनत के बाद पूर्ण किया था। फ़िरदौसी की यह रचना ईरान का इतिहास ही नहीं, बल्कि ईरानी अस्मिता की पहचान भी है।
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'''शाहनामा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shahnameh'') एक महाग्रंथ, जिसकी रचना [[फ़िरदौसी]] ने की थी। यह [[ग्रंथ]] [[फ़ारसी भाषा]] में लिखा गया है, जिसमें [[ईरान]] पर अरबी फ़तह (सन 636) के पूर्व के शासकों का चरित लिखा गया है। शाहनामा को फ़िरदौसी ने तीस [[वर्ष]] की बड़ी मेहनत के बाद पूर्ण किया था। फ़िरदौसी की यह रचना ईरान का इतिहास ही नहीं, बल्कि ईरानी अस्मिता की पहचान भी है।
 
==रचना काल==
 
==रचना काल==
 
'शाहनामा' [[ख़ुरासान]] के शहज़ादे समानीद के लिए लिखा गया था। यह वह समय था, जब सातवीं [[शताब्दी]] में अरबों की ईरान पर विजय के बाद फ़ारसी भाषा और संस्कृति पर अरब प्रभुत्व दिखाई पड़ने लगा था। फ़िरदौसी के जीवनकाल में ही उनके संरक्षक शहज़ादे समानीद को सुल्तान [[महमूद ग़ज़नवी]] ने हरा दिया था और वह स्वयं ख़ुरासान का शासक बन गया था।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.rachanakar.org/2007/06/blog-post_07.html|title= कवि का कर्ज़ा|accessmonthday= 06 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=रचनाकार |language= हिन्दी}}</ref>
 
'शाहनामा' [[ख़ुरासान]] के शहज़ादे समानीद के लिए लिखा गया था। यह वह समय था, जब सातवीं [[शताब्दी]] में अरबों की ईरान पर विजय के बाद फ़ारसी भाषा और संस्कृति पर अरब प्रभुत्व दिखाई पड़ने लगा था। फ़िरदौसी के जीवनकाल में ही उनके संरक्षक शहज़ादे समानीद को सुल्तान [[महमूद ग़ज़नवी]] ने हरा दिया था और वह स्वयं ख़ुरासान का शासक बन गया था।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.rachanakar.org/2007/06/blog-post_07.html|title= कवि का कर्ज़ा|accessmonthday= 06 अगस्त|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=रचनाकार |language= हिन्दी}}</ref>
 
====ऐतिहासिक प्रसंग====
 
====ऐतिहासिक प्रसंग====
माना जाता है कि फ़िरदौसी को [[महमूद ग़ज़नवी]] ने यह वचन दिया था कि वह 'शाहनामा' के हर शब्द के लिए उसे एक [[दीनार]] देगा। जब कई वर्षों के कड़े परिश्रम के बाद 'शाहनामा' तैयार हुआ, तब फ़िरदौसी उसे लेकर महमूद के दरबार में गया। तब महमूद ने उसे प्रत्येक शब्द के लिए एक दीनार नहीं, बल्कि एक दिरहम का भुगतान किया। इस पर नाराज होकर फ़िरदौसी लौट गया और उसने एक दिरहम भी नहीं लिया। यह वायदा ख़िलाफ़ी कुछ ऐसी थी, जैसे किसी [[कवि]] के प्रति शब्द एक [[रुपया|रुपये]] देने का वचन देकर प्रति शब्द एक पैसा दिया जाये। फ़िरदौसी ने गुस्से में आकर महमूद गज़नबी के विरुद्ध कुछ पंक्तियां लिखीं। ये पंक्तियां इतनी प्रभावशाली सिद्ध हुईं कि पूरे साम्राज्य में फैल गयीं।
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माना जाता है कि फ़िरदौसी को [[महमूद ग़ज़नवी]] ने यह वचन दिया था कि वह 'शाहनामा' के हर शब्द के लिए उसे एक [[दीनार]] देगा। जब कई वर्षों के कड़े परिश्रम के बाद 'शाहनामा' तैयार हुआ, तब फ़िरदौसी उसे लेकर महमूद के दरबार में गया। तब महमूद ने उसे प्रत्येक शब्द के लिए एक दीनार नहीं, बल्कि एक दिरहम का भुगतान किया। इस पर नाराज होकर फ़िरदौसी लौट गया और उसने एक दिरहम भी नहीं लिया। यह वायदा ख़िलाफ़ी कुछ ऐसी थी, जैसे किसी [[कवि]] के प्रति शब्द एक [[रुपया|रुपये]] देने का वचन देकर प्रति शब्द एक पैसा दिया जाये। फ़िरदौसी ने गुस्से में आकर महमूद गज़नबी के विरुद्ध कुछ पंक्तियां लिखीं। ये पंक्तियां इतनी प्रभावशाली सिद्ध हुईं कि पूरे साम्राज्य में फैल गयीं। कुछ वर्ष बाद महमूद से उसके विश्वासपात्र मंत्रियों ने निवेदन किया कि फ़िरदौसी को उसी दर पर भुगतान कर दिया जाये, जो शाहनामा की रचना से पूर्व तय हुआ था। सम्राट के कारण पूछने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लोग साम्राज्य के जिस कोने में जाते हैं, हमें वे पंक्तियां सुनने को मिलती हैं, जो फ़िरदौसी ने आपके विरुद्ध लिखी हैं। उसे निर्धारित दर पर पैसा दे दिया जायेगा तो हमें बड़ा नैतिक बल मिलेगा। महमूद ने आदेश दे दिया। दीनारों से भरी गाड़ी जब फ़िरदौसी के घर पहुंची तो घर के अंदर से फ़िरदौसी का जनाज़ा निकल रहा था। पूरी उम्र गरीबी, तंगी और मुफ़लिसी में काटने के बाद फ़िरदौसी मर चुका था। ऐसा भी कहा जाता है कि फ़िरदौसी की एकमात्र संतान उसकी लड़की ने भी यह धन लेने से इंकार कर दिया। इस तरह महमूद गज़नवी कवि का कर्जदार रहा। शायद यही कारण है कि आज फ़िरदौसी का शाहनामा जितना प्रसिद्ध है, उतनी ही या उससे अधिक प्रसिद्ध वे पंक्तियां हैं, जो फ़िरदौसी ने महमूद गज़नबी की आलोचना करते हुए लिखी थीं।<ref name="aa"/>
 
 
कुछ वर्ष बाद महमूद से उसके विश्वासपात्र मंत्रियों ने निवेदन किया कि फ़िरदौसी को उसी दर पर भुगतान कर दिया जाये, जो शाहनामा की रचना से पूर्व तय हुआ था। सम्राट के कारण पूछने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लोग साम्राज्य के जिस कोने में जाते हैं, हमें वे पंक्तियां सुनने को मिलती हैं, जो फ़िरदौसी ने आपके विरुद्ध लिखी हैं। उसे निर्धारित दर पर पैसा दे दिया जायेगा तो हमें बड़ा नैतिक बल मिलेगा। महमूद ने आदेश दे दिया। दीनारों से भरी गाड़ी जब फ़िरदौसी के घर पहुंची तो घर के अंदर से फ़िरदौसी का जनाज़ा निकल रहा था। पूरी उम्र गरीबी, तंगी और मुफ़लिसी में काटने के बाद फ़िरदौसी मर चुका था। ऐसा भी कहा जाता है कि फ़िरदौसी की एकमात्र संतान उसकी लड़की ने भी यह धन लेने से इंकार कर दिया। इस तरह महमूद गज़नवी कवि का कर्जदार रहा। शायद यही कारण है कि आज फ़िरदौसी का शाहनामा जितना प्रसिद्ध है, उतनी ही या उससे अधिक प्रसिद्ध वे पंक्तियां हैं, जो फ़िरदौसी ने महमूद गज़नबी की आलोचना करते हुए लिखी थीं।<ref name="aa"/>
 
 
==अमर कृति==
 
==अमर कृति==
 
'शाहनामा' में प्रेम, विद्रोह, वीरता, दुष्टता, मानवीयता, युद्ध, साहस के ऐसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जिन्होंने इसको ईरानी साहित्य की अमर कृति बना दिया है। फ़िरदौसी ने 'रुस्तम' और 'सोहराब' जैसे पात्र निर्मित किए, जो मानव-स्मृति का हिस्सा बन चुके हैं। ईरानी साहित्य में 'शाहनामा' जितनी बार छपा है, उतना शायद ही कोई ग्रंथ छपा हो।
 
'शाहनामा' में प्रेम, विद्रोह, वीरता, दुष्टता, मानवीयता, युद्ध, साहस के ऐसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जिन्होंने इसको ईरानी साहित्य की अमर कृति बना दिया है। फ़िरदौसी ने 'रुस्तम' और 'सोहराब' जैसे पात्र निर्मित किए, जो मानव-स्मृति का हिस्सा बन चुके हैं। ईरानी साहित्य में 'शाहनामा' जितनी बार छपा है, उतना शायद ही कोई ग्रंथ छपा हो।
 
<blockquote>न मीरम अज़इन, पस की मन ज़िन्देअम<br />
 
<blockquote>न मीरम अज़इन, पस की मन ज़िन्देअम<br />
 
कि तु़ख्मे सु़ख्न रा कराकन्दे अम</blockquote>
 
कि तु़ख्मे सु़ख्न रा कराकन्दे अम</blockquote>
अपने इस [[शे'र]] में [[फ़िरदौसी]] कहते हैं कि मैं कभी मरूंगा नहीं, क्योंकि मैंने फ़ारसी शायरी के जो बीज बिखेरे हैं, वे दुनिया के रहने तक लहलहाते रहेंगे और मैं उनकी वजह से हमेशा ज़िंदा रहूंगा। बेशक, फ़िरदौसी ने अपने शे'र रूपी शब्द तहज़ीब की धरती पर बिखेर दिए और तब से शाहनामा की शक्ल में वे आज भी फ़िरदौसी को ज़िंदा रखे हुए हैं और रहती दुनिया तक उनके कलाम की रौशनी तहज़ीब की राहों को रौशन करती रहेगी। शाहनामा के लिए फ़िरदौसी दुनिया भर में जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी अमर कालजयी कृति शाहनामा में [[ईरान]] के उन बादशाहों के बारे में लिखा है, जिनसे वह मुतासिर रहे। शाहनामा में 60 हज़ार शे'र हैं। इसे पूरा करने में उन्हें 30 साल लगे। उन्होंने [[25 फ़रवरी]], 1010 को इसे मुकम्मल किया। यह महान कृति उन्होंने सुल्तान [[महमूद ग़ज़नवी]] को समर्पित की, जिसने 999 में ख़ुरासान पर फ़तह हासिल की थी।<ref name="चौथी दुनिया">{{cite web |url=http://www.chauthiduniya.com/2013/03/shahnameh-of-ferdowsi-chef.html |title=फ़िरदौसी का शाहकार शाहनामा |accessmonthday=2 फ़रवरी |accessyear=2015 |last=शर्मा |first=नासिरा |authorlink= |format= |publisher=चौथी दुनिया |language=हिन्दी }}</ref>
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अपने इस [[शे'र]] में [[फ़िरदौसी]] कहते हैं कि मैं कभी मरूंगा नहीं, क्योंकि मैंने फ़ारसी शायरी के जो बीज बिखेरे हैं, वे दुनिया के रहने तक लहलहाते रहेंगे और मैं उनकी वजह से हमेशा ज़िंदा रहूंगा। बेशक, फ़िरदौसी ने अपने शे'र रूपी शब्द तहज़ीब की धरती पर बिखेर दिए और तब से शाहनामा की शक्ल में वे आज भी फ़िरदौसी को ज़िंदा रखे हुए हैं और रहती दुनिया तक उनके कलाम की रौशनी तहज़ीब की राहों को रौशन करती रहेगी। शाहनामा के लिए फ़िरदौसी दुनिया भर में जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी अमर कालजयी कृति शाहनामा में [[ईरान]] के उन बादशाहों के बारे में लिखा है, जिनसे वह मुतासिर रहे। शाहनामा में 60 हज़ार शे'र हैं। इसे पूरा करने में उन्हें 30 साल लगे। उन्होंने [[25 फ़रवरी]], 1010 को इसे मुकम्मल किया। यह महान कृति उन्होंने सुल्तान [[महमूद ग़ज़नवी]] को समर्पित की, जिसने 999 में ख़ुरासान पर फ़तह हासिल की थी। 'शाहनामा' ईरान का इतिहास ही नहीं, बल्कि ईरानी अस्मिता की पहचान है। इस महाकाव्य की तुलना होमर के इलियड और महर्षि [[वेदव्यास]] के [[महाभारत]] से की जा सकती है।<ref name="चौथी दुनिया">{{cite web |url=http://www.chauthiduniya.com/2013/03/shahnameh-of-ferdowsi-chef.html |title=फ़िरदौसी का शाहकार शाहनामा |accessmonthday=2 फ़रवरी |accessyear=2015 |last=शर्मा |first=नासिरा |authorlink= |format= |publisher=चौथी दुनिया |language=हिन्दी }}</ref>
 
==हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित 'शाहनामा'==
 
==हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित 'शाहनामा'==
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[[चित्र:Firdausi-shahnama.jpg|thumb|हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित 'शाहनामा']]
 
हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किताब फ़िरदौसी में प्रस्तुतकर्ता [[नासिरा शर्मा]] ने शाहनामा की कई रचनाओं को पेश किया है। इसके साथ ही उन्होंने शाहनामा की विशेषताओं पर भी रौशनी डाली है। फ़िरदौसी को शाहनामा लिखने का ख्याल क्यों आया, इस बारे में वह लिखती हैं- वह ईरान के प्रसिद्ध कवि दकीक़ी का ज़िक्र करना नहीं भूलते हैं, जिन्होंने शाहनामा को गशतासब नामा के नाम से लिखना शुरू किया था। मगर अपने ही ग़ुलाम के हाथों क़त्ल हो जाने की वजह से यह काम अधूरा छूट गया। उसको जब फ़िरदौसी ने पढ़ा, तो उस काम को पूरा करने का प्रण किया। इसके बाद अबू मंखूर बिन मोहम्मद और सुल्तान महमूद के प्रशंसा गान के बाद वास्तव में शाहनामा की शुरुआत हुई। इसकी शुरुआत ईरान के पहले बादशाह क्यूमर्स से होकर सासानी दौर के पतन पर ख़त्म होती है। इसमें मुहब्बत, बग़ावत, बहादुरी, जंग, इंसानित और हैवानियत के कई क़िस्से मिलते हैं। इसे तीनों हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला वह जो लोक साहित्य पर आधारित है, दूसरा वह जो काल्पनिक कथाओं पर है और तीसरा वह जो ईरान का इतिहास है। इस [[महाकाव्य]] में फ़िरदौसी को अमर बनाने वाली कालजयी रचनाएं हैं, जो बार-बार पढ़ी और गाई जाती हैं, मसलन दास्तान-ए-बीज़न व मनीज़ा, सियावुश व सुदाबे, रुदाबे व जालज़र, रुस्तम व सोहराब, शतरंज की पैदाइश, शाह बहराम के क़िस्से, सिकंदर व क़ैद, जहाक़ व कावेह आहंगर आदि शामिल हैं। दरअसल, अरबों की सत्ता का ध्वज जब ईरान पर फहराने लगा, तो ईरानी बुद्धिजीवियों के सामने भारी संकट खड़ा हुआ कि आख़िर इस विदेशी सत्ता के साथ वे कैसा बर्ताव करें। इसी मुद्दे पर ईरानी बुद्धिजीवी वर्ग दो हिस्सों में विभाजित हो गया। एक वर्ग वह था, जो [[अरबी भाषा]] के बढ़ते सरोकार को पूर्णतया दरबार, धार्मिक स्थलों और जनसमुदाय में पनपता देख रहा था और सोच रहा था कि इस तरह से ईरानी भाषा और साहित्य का कोई नाम लेवा नहीं बचेगा। शायद ईरानी विचार की भी गुंजाइश बाक़ी नहीं बचेगी और अरबी भाषा के साथ अरब विचार भी ईरानी दिल और दिमाग़ पर छा जाएंगे। इसलिए ज़रूरी है कि भाषा के झगड़े में न पड़कर ईरानी सोच को जीवित रखा जाए। इस वर्ग के ईरानी लेखक बड़ी संख्या में अरबी भाषा में उतना लेखन कार्य करने लगे और दरबार एवं विभिन्न स्थलों पर महत्वपूर्ण पद पाने लगे। दूसरा वर्ग पूर्ण रूप से अरब सत्ता से बेज़ार था। उसकी तरफ़ पीठ घुमाकर अपनी भाषा साहित्य को बचाने और संजोने की तीव्र इच्छा उसमें मचल उठी। सत्ता के विरोध में वह तलवार लेकर खड़ा तो नहीं हो सकता था, मगर वर्तमान को नकारते हुए भविष्य के लिए ज़रूर कुछ रच सकता था। इसी श्रेणी के बुद्धिजीवियों में सबसे पहला नाम फ़िरदौसी का है, जिसमें उन्होंने ख़ुद स्वीकार किया है-
 
हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किताब फ़िरदौसी में प्रस्तुतकर्ता [[नासिरा शर्मा]] ने शाहनामा की कई रचनाओं को पेश किया है। इसके साथ ही उन्होंने शाहनामा की विशेषताओं पर भी रौशनी डाली है। फ़िरदौसी को शाहनामा लिखने का ख्याल क्यों आया, इस बारे में वह लिखती हैं- वह ईरान के प्रसिद्ध कवि दकीक़ी का ज़िक्र करना नहीं भूलते हैं, जिन्होंने शाहनामा को गशतासब नामा के नाम से लिखना शुरू किया था। मगर अपने ही ग़ुलाम के हाथों क़त्ल हो जाने की वजह से यह काम अधूरा छूट गया। उसको जब फ़िरदौसी ने पढ़ा, तो उस काम को पूरा करने का प्रण किया। इसके बाद अबू मंखूर बिन मोहम्मद और सुल्तान महमूद के प्रशंसा गान के बाद वास्तव में शाहनामा की शुरुआत हुई। इसकी शुरुआत ईरान के पहले बादशाह क्यूमर्स से होकर सासानी दौर के पतन पर ख़त्म होती है। इसमें मुहब्बत, बग़ावत, बहादुरी, जंग, इंसानित और हैवानियत के कई क़िस्से मिलते हैं। इसे तीनों हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला वह जो लोक साहित्य पर आधारित है, दूसरा वह जो काल्पनिक कथाओं पर है और तीसरा वह जो ईरान का इतिहास है। इस [[महाकाव्य]] में फ़िरदौसी को अमर बनाने वाली कालजयी रचनाएं हैं, जो बार-बार पढ़ी और गाई जाती हैं, मसलन दास्तान-ए-बीज़न व मनीज़ा, सियावुश व सुदाबे, रुदाबे व जालज़र, रुस्तम व सोहराब, शतरंज की पैदाइश, शाह बहराम के क़िस्से, सिकंदर व क़ैद, जहाक़ व कावेह आहंगर आदि शामिल हैं। दरअसल, अरबों की सत्ता का ध्वज जब ईरान पर फहराने लगा, तो ईरानी बुद्धिजीवियों के सामने भारी संकट खड़ा हुआ कि आख़िर इस विदेशी सत्ता के साथ वे कैसा बर्ताव करें। इसी मुद्दे पर ईरानी बुद्धिजीवी वर्ग दो हिस्सों में विभाजित हो गया। एक वर्ग वह था, जो [[अरबी भाषा]] के बढ़ते सरोकार को पूर्णतया दरबार, धार्मिक स्थलों और जनसमुदाय में पनपता देख रहा था और सोच रहा था कि इस तरह से ईरानी भाषा और साहित्य का कोई नाम लेवा नहीं बचेगा। शायद ईरानी विचार की भी गुंजाइश बाक़ी नहीं बचेगी और अरबी भाषा के साथ अरब विचार भी ईरानी दिल और दिमाग़ पर छा जाएंगे। इसलिए ज़रूरी है कि भाषा के झगड़े में न पड़कर ईरानी सोच को जीवित रखा जाए। इस वर्ग के ईरानी लेखक बड़ी संख्या में अरबी भाषा में उतना लेखन कार्य करने लगे और दरबार एवं विभिन्न स्थलों पर महत्वपूर्ण पद पाने लगे। दूसरा वर्ग पूर्ण रूप से अरब सत्ता से बेज़ार था। उसकी तरफ़ पीठ घुमाकर अपनी भाषा साहित्य को बचाने और संजोने की तीव्र इच्छा उसमें मचल उठी। सत्ता के विरोध में वह तलवार लेकर खड़ा तो नहीं हो सकता था, मगर वर्तमान को नकारते हुए भविष्य के लिए ज़रूर कुछ रच सकता था। इसी श्रेणी के बुद्धिजीवियों में सबसे पहला नाम फ़िरदौसी का है, जिसमें उन्होंने ख़ुद स्वीकार किया है-
 
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अजम ज़िंन्दा करदम बेदिन पारसी</blockquote>
 
अजम ज़िंन्दा करदम बेदिन पारसी</blockquote>
 
यानी तीस साल की कोशिशों से मैंने यह [[महाकाव्य]] रचा है और फ़ारसी ने अजम (गूंगा) को अमर बना दिया। यहां अजम शब्द की व्याख्या करना ज़रूरी हो जाता है। अरबी भाषा का उच्चारण चूंकि हलक़ पर ज़ोर देकर होता है, तो उसकी ध्वनि में एक तेज़ी और भारीपन होता है, जबकि फ़ारसी भाषा में उच्चारण करते हुए ज़्यादातर जीभ के बीच के हिस्से और नोक का इस्तेमाल होता है, जिससे शब्द मुलायम और सुरीली ध्वनि लिए निकलते हैं. इतनी मद्धिम ध्वनि सुनने की आदत चूंकि अरबों को नहीं थी, इसलिए उन्होंने उपेक्षा भाव से ईरानियों को गूंगा कहना शुरू कर दिया था।<ref name="चौथी दुनिया"/>
 
यानी तीस साल की कोशिशों से मैंने यह [[महाकाव्य]] रचा है और फ़ारसी ने अजम (गूंगा) को अमर बना दिया। यहां अजम शब्द की व्याख्या करना ज़रूरी हो जाता है। अरबी भाषा का उच्चारण चूंकि हलक़ पर ज़ोर देकर होता है, तो उसकी ध्वनि में एक तेज़ी और भारीपन होता है, जबकि फ़ारसी भाषा में उच्चारण करते हुए ज़्यादातर जीभ के बीच के हिस्से और नोक का इस्तेमाल होता है, जिससे शब्द मुलायम और सुरीली ध्वनि लिए निकलते हैं. इतनी मद्धिम ध्वनि सुनने की आदत चूंकि अरबों को नहीं थी, इसलिए उन्होंने उपेक्षा भाव से ईरानियों को गूंगा कहना शुरू कर दिया था।<ref name="चौथी दुनिया"/>
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==शाहनामा का अनुवाद==
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शाहनामा का कई भाषाओं में [[अनुवाद]] हो चुका है। सबसे पहला अनुवाद [[अरबी भाषा]] में छठी सदी में हुआ था। कवाम उद्दीन अबुल़फतेह ईसा बिन अली इब्ने मोहम्मद इसफाहनी ने यह अनुवाद अयूब अल फ़ातेह ईसाबिन मुल्क अब्दुल अबूबकर के नाम किया था। इसके बाद 914 हिजरी में तातार अली टुनदी ने संपूर्ण शाहनामा का अनुवाद तुर्की भाषा में किया था। तुर्की भाषा गद्य में अनुवाद का काम मेहंदी साहिब मनसबान उस्मान के दरबार में पूरा हुआ। यह अनुवाद उस्मान को 1030 हिजरी में भेंट किया गया। कुछ साल बाद 1043 हिजरी में [[दारा शिकोह]] के बेटे हुमायूं के वक़्त [[लाहौर]] में उसके दरबार के तवक्कुल बक ने शमशीर खां की फ़रमाइश पर शाहनामा के कुछ हिस्सों का गद्य और पद्य में अनुवाद मुनर्ताखिब उल तवारी़ख नाम से [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में किया गया। पश्चिमी देशों में शाहनामा का अनुवाद सबसे पहले [[लंदन]] में 1774 में डब्ल्यू योन्स ने किया, लेकिन पूरी कृति का अनुवाद करने वाले पहले स्वदेशी जोज़फ़ शामप्यून, जो [[कलकत्ता]] (अब [[कोलकाता]]) में 1785 में छपा था। इसके बाद लुडोल्फ़, हैगरमैन, पेरिस में 1802 में जॉन ओहसॉन के अनुवाद सामने आए। [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] ने 1811 में शाहनामा का अनुवाद फोर्ट विलियम कॉलेज में अरबी फ़ारसी के प्रोफेसर लुम्सडेन से कराया। इसके अनुवादों की फ़ेहरिस्त ख़ासी लंबी है।<ref name="चौथी दुनिया"/>
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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08:47, 2 फ़रवरी 2015 का अवतरण

शाहनामा
शाहनामा
विवरण शाहनामा एक महाग्रंथ है जिसमें ईरान का इतिहास ही नहीं, बल्कि ईरानी अस्मिता की पहचान भी है।
रचनाकार फ़िरदौसी
भाषा फ़ारसी
रचनाकाल 977 ई. से 1010 ई. के मध्य
विशेष शाहनामा में 60 हज़ार शे'र हैं। जिन्हें पूरा करने में फ़िरदौसी को 30 वर्ष लगे।
अन्य जानकारी फ़िरदौसी ने 'शाहनामा' द्वारा 'रुस्तम' और 'सोहराब' जैसे पात्र निर्मित किए, जो मानव-स्मृति का हिस्सा बन चुके हैं।

शाहनामा (अंग्रेज़ी: Shahnameh) एक महाग्रंथ, जिसकी रचना फ़िरदौसी ने की थी। यह ग्रंथ फ़ारसी भाषा में लिखा गया है, जिसमें ईरान पर अरबी फ़तह (सन 636) के पूर्व के शासकों का चरित लिखा गया है। शाहनामा को फ़िरदौसी ने तीस वर्ष की बड़ी मेहनत के बाद पूर्ण किया था। फ़िरदौसी की यह रचना ईरान का इतिहास ही नहीं, बल्कि ईरानी अस्मिता की पहचान भी है।

रचना काल

'शाहनामा' ख़ुरासान के शहज़ादे समानीद के लिए लिखा गया था। यह वह समय था, जब सातवीं शताब्दी में अरबों की ईरान पर विजय के बाद फ़ारसी भाषा और संस्कृति पर अरब प्रभुत्व दिखाई पड़ने लगा था। फ़िरदौसी के जीवनकाल में ही उनके संरक्षक शहज़ादे समानीद को सुल्तान महमूद ग़ज़नवी ने हरा दिया था और वह स्वयं ख़ुरासान का शासक बन गया था।[1]

ऐतिहासिक प्रसंग

माना जाता है कि फ़िरदौसी को महमूद ग़ज़नवी ने यह वचन दिया था कि वह 'शाहनामा' के हर शब्द के लिए उसे एक दीनार देगा। जब कई वर्षों के कड़े परिश्रम के बाद 'शाहनामा' तैयार हुआ, तब फ़िरदौसी उसे लेकर महमूद के दरबार में गया। तब महमूद ने उसे प्रत्येक शब्द के लिए एक दीनार नहीं, बल्कि एक दिरहम का भुगतान किया। इस पर नाराज होकर फ़िरदौसी लौट गया और उसने एक दिरहम भी नहीं लिया। यह वायदा ख़िलाफ़ी कुछ ऐसी थी, जैसे किसी कवि के प्रति शब्द एक रुपये देने का वचन देकर प्रति शब्द एक पैसा दिया जाये। फ़िरदौसी ने गुस्से में आकर महमूद गज़नबी के विरुद्ध कुछ पंक्तियां लिखीं। ये पंक्तियां इतनी प्रभावशाली सिद्ध हुईं कि पूरे साम्राज्य में फैल गयीं। कुछ वर्ष बाद महमूद से उसके विश्वासपात्र मंत्रियों ने निवेदन किया कि फ़िरदौसी को उसी दर पर भुगतान कर दिया जाये, जो शाहनामा की रचना से पूर्व तय हुआ था। सम्राट के कारण पूछने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लोग साम्राज्य के जिस कोने में जाते हैं, हमें वे पंक्तियां सुनने को मिलती हैं, जो फ़िरदौसी ने आपके विरुद्ध लिखी हैं। उसे निर्धारित दर पर पैसा दे दिया जायेगा तो हमें बड़ा नैतिक बल मिलेगा। महमूद ने आदेश दे दिया। दीनारों से भरी गाड़ी जब फ़िरदौसी के घर पहुंची तो घर के अंदर से फ़िरदौसी का जनाज़ा निकल रहा था। पूरी उम्र गरीबी, तंगी और मुफ़लिसी में काटने के बाद फ़िरदौसी मर चुका था। ऐसा भी कहा जाता है कि फ़िरदौसी की एकमात्र संतान उसकी लड़की ने भी यह धन लेने से इंकार कर दिया। इस तरह महमूद गज़नवी कवि का कर्जदार रहा। शायद यही कारण है कि आज फ़िरदौसी का शाहनामा जितना प्रसिद्ध है, उतनी ही या उससे अधिक प्रसिद्ध वे पंक्तियां हैं, जो फ़िरदौसी ने महमूद गज़नबी की आलोचना करते हुए लिखी थीं।[1]

अमर कृति

'शाहनामा' में प्रेम, विद्रोह, वीरता, दुष्टता, मानवीयता, युद्ध, साहस के ऐसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जिन्होंने इसको ईरानी साहित्य की अमर कृति बना दिया है। फ़िरदौसी ने 'रुस्तम' और 'सोहराब' जैसे पात्र निर्मित किए, जो मानव-स्मृति का हिस्सा बन चुके हैं। ईरानी साहित्य में 'शाहनामा' जितनी बार छपा है, उतना शायद ही कोई ग्रंथ छपा हो।

न मीरम अज़इन, पस की मन ज़िन्देअम
कि तु़ख्मे सु़ख्न रा कराकन्दे अम

अपने इस शे'र में फ़िरदौसी कहते हैं कि मैं कभी मरूंगा नहीं, क्योंकि मैंने फ़ारसी शायरी के जो बीज बिखेरे हैं, वे दुनिया के रहने तक लहलहाते रहेंगे और मैं उनकी वजह से हमेशा ज़िंदा रहूंगा। बेशक, फ़िरदौसी ने अपने शे'र रूपी शब्द तहज़ीब की धरती पर बिखेर दिए और तब से शाहनामा की शक्ल में वे आज भी फ़िरदौसी को ज़िंदा रखे हुए हैं और रहती दुनिया तक उनके कलाम की रौशनी तहज़ीब की राहों को रौशन करती रहेगी। शाहनामा के लिए फ़िरदौसी दुनिया भर में जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी अमर कालजयी कृति शाहनामा में ईरान के उन बादशाहों के बारे में लिखा है, जिनसे वह मुतासिर रहे। शाहनामा में 60 हज़ार शे'र हैं। इसे पूरा करने में उन्हें 30 साल लगे। उन्होंने 25 फ़रवरी, 1010 को इसे मुकम्मल किया। यह महान कृति उन्होंने सुल्तान महमूद ग़ज़नवी को समर्पित की, जिसने 999 में ख़ुरासान पर फ़तह हासिल की थी। 'शाहनामा' ईरान का इतिहास ही नहीं, बल्कि ईरानी अस्मिता की पहचान है। इस महाकाव्य की तुलना होमर के इलियड और महर्षि वेदव्यास के महाभारत से की जा सकती है।[2]

हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित 'शाहनामा'

हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित 'शाहनामा'

हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किताब फ़िरदौसी में प्रस्तुतकर्ता नासिरा शर्मा ने शाहनामा की कई रचनाओं को पेश किया है। इसके साथ ही उन्होंने शाहनामा की विशेषताओं पर भी रौशनी डाली है। फ़िरदौसी को शाहनामा लिखने का ख्याल क्यों आया, इस बारे में वह लिखती हैं- वह ईरान के प्रसिद्ध कवि दकीक़ी का ज़िक्र करना नहीं भूलते हैं, जिन्होंने शाहनामा को गशतासब नामा के नाम से लिखना शुरू किया था। मगर अपने ही ग़ुलाम के हाथों क़त्ल हो जाने की वजह से यह काम अधूरा छूट गया। उसको जब फ़िरदौसी ने पढ़ा, तो उस काम को पूरा करने का प्रण किया। इसके बाद अबू मंखूर बिन मोहम्मद और सुल्तान महमूद के प्रशंसा गान के बाद वास्तव में शाहनामा की शुरुआत हुई। इसकी शुरुआत ईरान के पहले बादशाह क्यूमर्स से होकर सासानी दौर के पतन पर ख़त्म होती है। इसमें मुहब्बत, बग़ावत, बहादुरी, जंग, इंसानित और हैवानियत के कई क़िस्से मिलते हैं। इसे तीनों हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला वह जो लोक साहित्य पर आधारित है, दूसरा वह जो काल्पनिक कथाओं पर है और तीसरा वह जो ईरान का इतिहास है। इस महाकाव्य में फ़िरदौसी को अमर बनाने वाली कालजयी रचनाएं हैं, जो बार-बार पढ़ी और गाई जाती हैं, मसलन दास्तान-ए-बीज़न व मनीज़ा, सियावुश व सुदाबे, रुदाबे व जालज़र, रुस्तम व सोहराब, शतरंज की पैदाइश, शाह बहराम के क़िस्से, सिकंदर व क़ैद, जहाक़ व कावेह आहंगर आदि शामिल हैं। दरअसल, अरबों की सत्ता का ध्वज जब ईरान पर फहराने लगा, तो ईरानी बुद्धिजीवियों के सामने भारी संकट खड़ा हुआ कि आख़िर इस विदेशी सत्ता के साथ वे कैसा बर्ताव करें। इसी मुद्दे पर ईरानी बुद्धिजीवी वर्ग दो हिस्सों में विभाजित हो गया। एक वर्ग वह था, जो अरबी भाषा के बढ़ते सरोकार को पूर्णतया दरबार, धार्मिक स्थलों और जनसमुदाय में पनपता देख रहा था और सोच रहा था कि इस तरह से ईरानी भाषा और साहित्य का कोई नाम लेवा नहीं बचेगा। शायद ईरानी विचार की भी गुंजाइश बाक़ी नहीं बचेगी और अरबी भाषा के साथ अरब विचार भी ईरानी दिल और दिमाग़ पर छा जाएंगे। इसलिए ज़रूरी है कि भाषा के झगड़े में न पड़कर ईरानी सोच को जीवित रखा जाए। इस वर्ग के ईरानी लेखक बड़ी संख्या में अरबी भाषा में उतना लेखन कार्य करने लगे और दरबार एवं विभिन्न स्थलों पर महत्वपूर्ण पद पाने लगे। दूसरा वर्ग पूर्ण रूप से अरब सत्ता से बेज़ार था। उसकी तरफ़ पीठ घुमाकर अपनी भाषा साहित्य को बचाने और संजोने की तीव्र इच्छा उसमें मचल उठी। सत्ता के विरोध में वह तलवार लेकर खड़ा तो नहीं हो सकता था, मगर वर्तमान को नकारते हुए भविष्य के लिए ज़रूर कुछ रच सकता था। इसी श्रेणी के बुद्धिजीवियों में सबसे पहला नाम फ़िरदौसी का है, जिसमें उन्होंने ख़ुद स्वीकार किया है-

बसी रंज में बुर्दम दर इन साल सी

अजम ज़िंन्दा करदम बेदिन पारसी

यानी तीस साल की कोशिशों से मैंने यह महाकाव्य रचा है और फ़ारसी ने अजम (गूंगा) को अमर बना दिया। यहां अजम शब्द की व्याख्या करना ज़रूरी हो जाता है। अरबी भाषा का उच्चारण चूंकि हलक़ पर ज़ोर देकर होता है, तो उसकी ध्वनि में एक तेज़ी और भारीपन होता है, जबकि फ़ारसी भाषा में उच्चारण करते हुए ज़्यादातर जीभ के बीच के हिस्से और नोक का इस्तेमाल होता है, जिससे शब्द मुलायम और सुरीली ध्वनि लिए निकलते हैं. इतनी मद्धिम ध्वनि सुनने की आदत चूंकि अरबों को नहीं थी, इसलिए उन्होंने उपेक्षा भाव से ईरानियों को गूंगा कहना शुरू कर दिया था।[2]

शाहनामा का अनुवाद

शाहनामा का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। सबसे पहला अनुवाद अरबी भाषा में छठी सदी में हुआ था। कवाम उद्दीन अबुल़फतेह ईसा बिन अली इब्ने मोहम्मद इसफाहनी ने यह अनुवाद अयूब अल फ़ातेह ईसाबिन मुल्क अब्दुल अबूबकर के नाम किया था। इसके बाद 914 हिजरी में तातार अली टुनदी ने संपूर्ण शाहनामा का अनुवाद तुर्की भाषा में किया था। तुर्की भाषा गद्य में अनुवाद का काम मेहंदी साहिब मनसबान उस्मान के दरबार में पूरा हुआ। यह अनुवाद उस्मान को 1030 हिजरी में भेंट किया गया। कुछ साल बाद 1043 हिजरी में दारा शिकोह के बेटे हुमायूं के वक़्त लाहौर में उसके दरबार के तवक्कुल बक ने शमशीर खां की फ़रमाइश पर शाहनामा के कुछ हिस्सों का गद्य और पद्य में अनुवाद मुनर्ताखिब उल तवारी़ख नाम से फ़ारसी में किया गया। पश्चिमी देशों में शाहनामा का अनुवाद सबसे पहले लंदन में 1774 में डब्ल्यू योन्स ने किया, लेकिन पूरी कृति का अनुवाद करने वाले पहले स्वदेशी जोज़फ़ शामप्यून, जो कलकत्ता (अब कोलकाता) में 1785 में छपा था। इसके बाद लुडोल्फ़, हैगरमैन, पेरिस में 1802 में जॉन ओहसॉन के अनुवाद सामने आए। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1811 में शाहनामा का अनुवाद फोर्ट विलियम कॉलेज में अरबी फ़ारसी के प्रोफेसर लुम्सडेन से कराया। इसके अनुवादों की फ़ेहरिस्त ख़ासी लंबी है।[2]

इन्हें भी देखें: अकबरनामा, आइना-ए-अकबरी, रज्मनामा एवं पादशाहनामा


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कवि का कर्ज़ा (हिन्दी) रचनाकार। अभिगमन तिथि: 06 अगस्त, 2014।
  2. 2.0 2.1 2.2 शर्मा, नासिरा। फ़िरदौसी का शाहकार शाहनामा (हिन्दी) चौथी दुनिया। अभिगमन तिथि: 2 फ़रवरी, 2015।

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