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18:41, 14 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

लब्धिसार-क्षपणासार टीका

  • मूलग्रन्थ शौरसेनी प्राकृत में है और उसके रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती हैं।
  • इस पर उत्तरवर्ती किसी अन्य नेमिचन्द्र नाम के आचार्य द्वारा संस्कृत में यह टीका लिखी गई है।
  • यह लिखते हुए प्रमोद होता है कि आचार्य ने प्राकृत ग्रन्थों में प्रतिपादित सिद्धान्तों की विवेचना संस्कृत भाषा में की है।
  • मुख्यतया जीव में मोक्ष की पात्रता सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर ही मानी गयी है, क्योंकि सम्यग्दृष्टिजीव ही मोक्ष प्राप्त करता है, और सम्यग्दर्शन होने के बाद वह सम्यक्चारित्र की ओर आकर्षित होता है। अत: सम्यक्दर्शन और सम्यक्चारित्र की लब्धि अर्थात प्राप्त होना जीव का लक्ष्य है। इसी से ग्रंथ का नाम लब्धिसार रखा गया है।
  • इन दोनों का इस टीका में विशद वर्णन किया गया है।
  • इसमें उपशम सम्यक्त्व और क्षायिक सम्यक्त्व के वर्णन के बाद चारित्रलब्धि का कथन किया गया है।
  • इसकी प्राप्ति के लिए चारित्रमोह की क्षपणा की विवेचना इसमें बहुत अच्छी की गई है।
  • नेमिचन्द्र की यह वृत्ति संदृष्टि, चित्र आदि से सहित है। यह न अतिक्लिष्ट है न अति सरल।
  • इसकी संस्कृत भाष प्रसादगुण युक्त है।

क्षपणासार (संस्कृत)

इसमें एकमात्र संस्कृत में ही दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय की प्रकृतियों की क्षपणा का ही विवेचन है।

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