"भट्टिकाव्य" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''भट्टिकाव्य''' एक महाकाव्य है, जिसकी रचना महाकवि भट...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replacement - " महान " to " महान् ")
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{tocright}}
 
{{tocright}}
 
==नया प्रयोग==
 
==नया प्रयोग==
भट्टिकाव्य [[संस्कृत साहित्य]] की दो महान परम्पराओं [[रामायण]] एवं पाणिनीय व्याकरण का मिश्रण होने के नाते [[कला]] और [[विज्ञान]] के समिश्रण जैसा है। अत: इसे [[साहित्य]] में एक नया और साहसपूर्ण प्रयोग माना जाता है। भट्टि ने स्वयं अपनी रचना का गौरव प्रकट करते हुए कहा है कि "यह मेरी रचना व्याकरण के ज्ञान से हीन पाठकों के लिए नहीं है। यह काव्य [[टीका]] के सहारे ही समझा जा सकता है। यह मेधावी विद्धान के मनोविनोद के लिए तथा सुबोध छात्र को प्रायोगिक पद्धति से [[व्याकरण]] के दुरूह नियमों से अवगत कराने के लिए रचा गया है।
+
भट्टिकाव्य [[संस्कृत साहित्य]] की दो महान् परम्पराओं [[रामायण]] एवं पाणिनीय व्याकरण का मिश्रण होने के नाते [[कला]] और [[विज्ञान]] के समिश्रण जैसा है। अत: इसे [[साहित्य]] में एक नया और साहसपूर्ण प्रयोग माना जाता है। भट्टि ने स्वयं अपनी रचना का गौरव प्रकट करते हुए कहा है कि "यह मेरी रचना व्याकरण के ज्ञान से हीन पाठकों के लिए नहीं है। यह काव्य [[टीका]] के सहारे ही समझा जा सकता है। यह मेधावी विद्धान के मनोविनोद के लिए तथा सुबोध छात्र को प्रायोगिक पद्धति से [[व्याकरण]] के दुरूह नियमों से अवगत कराने के लिए रचा गया है।
 
====जनप्रिय एवं मान्य====
 
====जनप्रिय एवं मान्य====
 
इस [[महाकाव्य]] की प्रौढ़ता ने इसे कठिन होते हुए भी जनप्रिय एवं मान्य बनाया है। प्राचीन पठन-पाठन की परिपाटी में भट्टिकाव्य को सुप्रसिद्ध 'पंचमहाकाव्य' ([[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]], [[कुमारसंभवम्|कुमारसंभव]], कीरातार्जुनीय, शिशुपालवध, [[नैषधचरित]]) के समान स्थान दिया गया है। लगभग 14 टीकाएँ जयमंगला, मल्लिनाथ की सर्वपथीन एवं जीवानंद कृत हैं।' माधवीयधातुवृत्ति' में [[आदि शंकराचार्य]] द्वारा भट्टिकाव्य पर प्रणीत [[टीका]] का उल्लेख मिलता है। स्वयं प्रणेता के अनुसार भट्टिकाव्य की रचना गुर्जर देश के अंतर्गत बलभी नगर में हुई थी।
 
इस [[महाकाव्य]] की प्रौढ़ता ने इसे कठिन होते हुए भी जनप्रिय एवं मान्य बनाया है। प्राचीन पठन-पाठन की परिपाटी में भट्टिकाव्य को सुप्रसिद्ध 'पंचमहाकाव्य' ([[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]], [[कुमारसंभवम्|कुमारसंभव]], कीरातार्जुनीय, शिशुपालवध, [[नैषधचरित]]) के समान स्थान दिया गया है। लगभग 14 टीकाएँ जयमंगला, मल्लिनाथ की सर्वपथीन एवं जीवानंद कृत हैं।' माधवीयधातुवृत्ति' में [[आदि शंकराचार्य]] द्वारा भट्टिकाव्य पर प्रणीत [[टीका]] का उल्लेख मिलता है। स्वयं प्रणेता के अनुसार भट्टिकाव्य की रचना गुर्जर देश के अंतर्गत बलभी नगर में हुई थी।

11:09, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

भट्टिकाव्य एक महाकाव्य है, जिसकी रचना महाकवि भट्टि द्वारा की गई थी। इस महाकाव्य का वास्तविक नाम 'रावणवध' है, जिसमें श्रीराम की कथा जन्म से लेकर लंकापति रावण के संहार तक उपवर्णित है। भट्टिकाव्य का प्रभाव सुदूर जावा तक देखने को मिलता है। वहाँ का प्राचीन जावा भाषा का 'रामायण' भट्टिकाव्य पर ही आधारित है। जैसलमेर के राव भीम की मथुरा यात्रा का वर्णन भी इसमें मिलता है।

नया प्रयोग

भट्टिकाव्य संस्कृत साहित्य की दो महान् परम्पराओं रामायण एवं पाणिनीय व्याकरण का मिश्रण होने के नाते कला और विज्ञान के समिश्रण जैसा है। अत: इसे साहित्य में एक नया और साहसपूर्ण प्रयोग माना जाता है। भट्टि ने स्वयं अपनी रचना का गौरव प्रकट करते हुए कहा है कि "यह मेरी रचना व्याकरण के ज्ञान से हीन पाठकों के लिए नहीं है। यह काव्य टीका के सहारे ही समझा जा सकता है। यह मेधावी विद्धान के मनोविनोद के लिए तथा सुबोध छात्र को प्रायोगिक पद्धति से व्याकरण के दुरूह नियमों से अवगत कराने के लिए रचा गया है।

जनप्रिय एवं मान्य

इस महाकाव्य की प्रौढ़ता ने इसे कठिन होते हुए भी जनप्रिय एवं मान्य बनाया है। प्राचीन पठन-पाठन की परिपाटी में भट्टिकाव्य को सुप्रसिद्ध 'पंचमहाकाव्य' (रघुवंश, कुमारसंभव, कीरातार्जुनीय, शिशुपालवध, नैषधचरित) के समान स्थान दिया गया है। लगभग 14 टीकाएँ जयमंगला, मल्लिनाथ की सर्वपथीन एवं जीवानंद कृत हैं।' माधवीयधातुवृत्ति' में आदि शंकराचार्य द्वारा भट्टिकाव्य पर प्रणीत टीका का उल्लेख मिलता है। स्वयं प्रणेता के अनुसार भट्टिकाव्य की रचना गुर्जर देश के अंतर्गत बलभी नगर में हुई थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख