चन्देरी साड़ी

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चन्देरी साड़ी ग्वालियर, मध्य प्रदेश के चन्देरी में बनाई जाती हैं। चन्देरी की विश्व प्रसिद्ध चन्देरी साड़ियाँ आज भी हथकरघे पर बुनी जाती हैं। इन साड़ियों का अपना ही एक समृद्धशाली इतिहास रहा है।

इतिहास

चन्देरी का पारंम्परिक वस्त्रोद्योग काफ़ी पुराना है। प्राचीन काल से ही राजाश्रय मिलने के कारण इसे राजसी लिबास माना जाता रहा। राजा महाराजा, नवाब, अमीर, जागीरदार व दरबारी चन्देरी के वस्त्र पहन कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते थे। मुग़ल कालीन मआसिरे 'आलमगीरी' के अनुसार 13वीं-14वीं ईसवी में चन्देरी का परम्परागत हथकरघा वस्त्रोद्योग अपने चरम पर था। तब वहाँ गुणवत्ता की दृष्टि से उच्च श्रेणी के सूती कपड़े बुने जाते थे। 1857 में सैनिक अधिकारी रहे आर.सी. स्टर्नडैल ने चन्देरी के वस्त्रों का बखान करते हुए लिखा है कि 'चन्देरी में बहुत ही उम्दा किस्म की महीन और नफीस मलमल तैयार की जाती थी, जिसमें 250 से 300 काउण्ट्स के धागों से बुनाई होती थी, जिसकी तुलना ढाका की मलमल से की जाती थी।'

प्राचीन काल में चन्देरी वस्त्रों का उपयोग साड़ी, साफे दुपट्टे, लुगड़ा, दुदामि, पर्दे व हाथी के हौदों के पर्दे आदि बनाने में किया जाता था, जिसमें अमूमन मुस्लिम मोमिन व कतिया और हिन्दू कोरी बुनाई के दक्ष कारीगर थे। उन्हें यह कला विरासत में मिली थी। धागों की कताई रंगाई से लेकर साड़ियों की बुनाई का कार्य वे स्वयं करते थे।

निर्माण कला

चन्देरी साड़ियों के निर्माण में पूर्व में दो बुनकरों द्वारा हस्तचलित थ्रो शटल पद्धति वाले नालफेरमा करघे का स्थान, अब फ्लाई शटल पद्धति वाले लूम ने ले लिया है। जिसमें एक ही बुनकर अपने हाथ व पैरों से करघे को संचालित करता है। इस प्रकार पूर्व में जहाँ पुरानी पद्धति थ्रो शटल पद्धति में एक ही करघे पर दो बुनकरों को लगाया जाता था, वहीं फ्लाई शटल पद्धति से अकेला बुनकर करघे को संचालित करता है। साथ ही नई प्रणाली में जैकार्ड एवं डाबी के उपयोग से बार्डर भी आसानी से बनाया जाता है। चन्देरी साड़ियों में रंगों का प्रयोग 50 वर्ष से ज़्यादा पुराना नहीं है। पूर्व में चन्देरी साड़ियाँ केवल बिना रंगों वाली सूत से तैयार की जाती थी। धीरे-धीरे साड़ी के सफ़ेद बेस पर रंगीन बार्डर बनाया जाने लगा। प्रारंभ में फूलों से प्राप्त प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल किया जाता था, जिसमें केवल बुने कपड़े ही रंगे जाते थे। अब अधिकांश बुनकर बाज़ारवाद के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए पक्के रासायनिक रंगों का प्रयोग करने लगे हैं।

आधुनिक तकनीक का प्रभाव

सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रभाव के फलस्वरूप कम्प्यूटर द्वारा नाना प्रकार की ज्यामितीय डिज़ायन व उनका विभिन्न प्रकार से संयोजन ने साड़ियों के राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार की मांग बढ़ा दी है, जिसके प्रभाव स्वरूप चन्देरी साड़ियों में भी विविधता देखी जा सकती है। जहाँ कभी चन्देरी साड़ियों में केवल हाथ से कते सूती धागों से ही काम किया जाता था, वहीं अब मजबूती व सुंदरता के लिहाज से मिल के सूती धागों के साथ-साथ रेशम का भी खूब उपयोग किया जाने लगा है। बाज़ार की मांग को देखते हुए अब कुछ कुछ बनारसी पैटर्न का प्रभाव भी चन्देरी साड़ियों में परिलक्षित होने लगा है। ताने एवं बाने में सिल्क का प्रयोग कर बनारसी, तनछुई जैसी भारी साड़ियों का भी निर्माण किया जाने लगा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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