निर्वास -आरसी प्रसाद सिंह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:04, 2 जून 2017 का अवतरण (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
निर्वास -आरसी प्रसाद सिंह
आरसी प्रसाद सिंह
कवि आरसी प्रसाद सिंह
जन्म 19 अगस्त 1911
जन्म स्थान एरौत गाँव, बिहार
मृत्यु 15 नवंबर 1996
मुख्य रचनाएँ नन्ददास, रजनीगंधा
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
आरसी प्रसाद सिंह की रचनाएँ

कैसे अलि, भाया यह उपवन ?
वैभव-समाधि पर ऋतुपति की
यह पतझड़ का सैकत-नर्तन !
तू नंदन-वन की मोहमयी
सुंदरी परी शोभाशाली;
तेरी चितवन से किस प्रकार
मदिराकुल होता वनमाली !
रोता है यहाँ अतीत-स्वप्न
विधवा का आहत उर उन्मन !
होता है यहाँ सदैव अरी,
अपमानित घड़ियों का क्रंदन !!

वे दिन हाँ, वे दिन चले गए;
निर्मोह काल छले गए !
अलि, पले गए जिन हाथों से
उन हाथों से ही दले गए !!
मरु का तरु-फल-जल-हीन देश
जलता पावक-कण क्षण-अणुक्षण !
लुट गया धरा का हरित-वेश;
अब यहाँ न कोई आकर्षण !!
कैसे सुख की हो रही चाह ?
इन कुश-वृत्तों पर कुटिल आह !
माधवि ! सह लोगी क्यों कर इस
प्रज्वलित चिता का रक्त-दाह ?
पावस-दिनांत में घनाकार
जब भू को छू लेता अपार,
वन-वन में अपना उदाहार
ढूँढ़ेगा नूपुर-झनत्कार;
तब तू प्रिय की सुध में विभोर,
किस सुरधनु का धर स्वर्ण छोर,
झूलोगी बंकिम अंग-न्यास
उच्छ्वासित मेघवन में सहास ?
सखि, भूल केतकी का हुलास;
शूलों में गुरुतर अगुर-वास !
अब छोड़-कंटकों के दु:ख में
वह कल्पविटप-कल्पना उदास !!
प्रति फलित व्यथा के रागों में
है पल्लव का मर्मर-वेदन;
दुस्तर है तेरे लिए सजनि,
इस कुटिल-जाल का परिभेदन !
बहती करील के नयनों से
निशिवासर अविरल अश्रुधार !
शाखा-शाखा पर नाच रही
शुचि की तीखी-तीखी बयार !!
कहती न रेणु ब्रज-वेणु-कथा;
गोपन-बाला का नृत्य-रास !
अब तो कालिंदी-कुंजों में
खंजरी बजाता सूरदास !!

संबंधित लेख