अस कहि नारद सुमिरि
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अस कहि नारद सुमिरि
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| कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
| मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
| मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
| प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
| भाषा | अवधी भाषा |
| शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
| संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
| काण्ड | बालकाण्ड |
अस कहि नारद सुमिरि हरि गिरिजहि दीन्हि असीस। |
- भावार्थ-
ऐसा कहकर भगवान का स्मरण करके नारदजी ने पार्वती को आशीर्वाद दिया। (और कहा कि-) हे पर्वतराज! तुम संदेह का त्याग कर दो, अब यह कल्याण ही होगा॥70॥
| अस कहि नारद सुमिरि |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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