श्रेणी:बालकाण्ड
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"बालकाण्ड" श्रेणी में पृष्ठ
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- अंतरधान भए अस भाषी
- अंतरहित सुर आसिष देहीं
- अकथ अलौकिक तीरथराऊ
- अग जगमय सब रहित बिरागी
- अगनित रबि ससि सिव चतुरानन
- अगर धूप बहु जनु अँधिआरी
- अगवानन्ह जब दीखि बराता
- अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा
- अग्य अकोबिद अंध अभागी
- अच्छत अंकुर लोचन लाजा
- अजर अमर सो जीति न जाई
- अजहुँ न छाया मिटति तुम्हारी
- अजहूँ कछु संसउ मन मोरें
- अजहूँ मानहु कहा हमारा
- अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि
- अति अनूप जहँ जनक निवासू
- अति अपार जे सरित
- अति आदर दोउ तनय बोलाए
- अति आरति कहि कथा सुनाई
- अति आरति पूछउँ सुरराया
- अति खल जे बिषई बग कागा
- अति गहगहे बाजने बाजे
- अति डरु उतरु देत नृपु नाहीं
- अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी
- अति बिचित्र रघुपति
- अति बिनीत मृदु सीतल बानी
- अति रिस बोले बचन कठोरा
- अति हरषु राजसमाज दुहु
- अतिबल कुंभकरन अस भ्राता
- अधिक सनेहँ गोद बैठारी
- अनुरूप बर दुलहिनि परस्पर
- अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ
- अपर हेतु सुनु सैलकुमारी
- अब जनि कोउ माखै भट मानी
- अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू
- अब जौं तुम्हहि सुता पर नेहू
- अब तें रति तव नाथ
- अब दसरथ कहँ आयसु देहू
- अब प्रसन्न मैं संसय नाहीं
- अब बिनती मम सुनहु
- अब रघुपति पद पंकरुह
- अब लगि मोहि न मिलेउ
- अब सब बिप्र बोलाइ गोसाईं
- अब साधेउँ रिपु सुनहु नरेसा
- अब सुख सोवत सोचु
- अभिमत दानि देवतरु बर से
- अरथ धरम कामादिक चारी
- अरुन नयन उर बाहु बिसाला
- अरुन नयन भृकुटी
- अरुन पराग जलजु भरि नीकें
- अरुनोदयँ सकुचे कुमुद
- अवधनाथु चाहत चलन
- अवधपुरी सोहइ एहि भाँती
- अवधपुरीं रघुकुलमनि राऊ
- अवलोकनि बोलनि मिलनि
- अवसरु जानि सप्तरिषि आए
- अवसि काज मैं करिहउँ तोरा
- अस कहि गहे नरेस
- अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई
- अस कहि दोउ भागे भयँ भारी
- अस कहि नारद सुमिरि
- अस कहि परी चरन धरि सीसा
- अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा
- अस कहि भले भूप अनुरागे
- अस कहि रही चरन गहि रानी
- अस कहि सब महिदेव सिधाए
- अस तपु काहुँ न कीन्ह भवानी
- अस निज हृदयँ बिचारि
- अस पन तुम्ह बिनु करइ को आना
- अस प्रभु दीनबंधु हरि
- अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी
- अस बरु मागि चरन गहि रहेऊ
- अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू
- अस बिचारि संकरु मतिधीरा
- अस बिबेक जब देइ बिधाता
- अस मानस मानस चख चाही
- अस समुझत मन संसय होई
- असन सयन बर बसन सुहाए
- असुर नाग खग नर मुनि देवा
- असुर मारि थापहिं सुरन्ह
- असुर समूह सतावहिं मोही
- असुर सुरा बिष संकरहि
- असुर सेन सम नरक निकंदिनि
- अस्तुति करि न जाइ भय माना
आ
- आए ब्याहि रामु घर जब तें
- आकर चारि लाख चौरासी
- आखर अरथ अलंकृति नाना
- आखर मधुर मनोहर दोऊ
- आचारु करि गुर गौरि
- आजु दया दुखु दुसह सहावा
- आजु सुफल जग जनमु हमारा
- आदिसृष्टि उपजी जबहिं
- आनि देखाई नारदहि
- आपु बिरचि उपरोहित रूपा
- आयसु करहिं सकल भयभीता
- आयसु पाइ राखि उर रामहि
- आयुध सर्ब समर्पि कै प्रभु
- आरति करहिं मुदित पुर नारी
- आरति बिनय दीनता मोरी
- आवत जानि बरात बर
- आवत जानि भानुकुल केतू
- आवत देखि अधिक रव बाजी
- आवै पिता बोलावन जबहीं
- आश्रम एक दीख मग माहीं
- आसन उचित सबहि नृप दीन्हे
- आसिष दीन्हि सखीं हरषानीं
इ
उ
- उघरहिं बिमल बिलोचन ही के
- उठे लखनु निसि बिगत
- उतर देत छोड़उँ बिनु मारें
- उदासीन अरि मीत हित
- उदित उदयगिरि मंच पर
- उपजहिं एक संग जग माहीं
- उपजे जदपि पुलस्त्यकुल
- उपजेउ सिव पद कमल सनेहू
- उपबरहन बर बरनि न जाहीं
- उपमा न कोउ कह दास
- उपरोहित जेवनार बनाई
- उपरोहितहि कहेउ नरनाहा
- उपरोहितहि भवन पहुँचाई
- उभय घरी अस कौतुक भयऊ
- उमा महेस बिबाह बराती
- उयउ अरुन अवलोकहु ताता
- उर अनुभवति न कहि सक सोऊ
- उर अभिलाष निरंतर होई
- उर धरि उमा प्रानपति चरना
- उर धरि रामहि सीय समेता
- उर मनि माल कंबु कल गीवा
ए
- ए दारिका परिचारिका
- ए दोऊ दसरथ के ढोटा
- ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी
- एक अनीह अरूप अनामा
- एक कलप एहि हेतु
- एक कलप सुर देखि दुखारे
- एक जनम कर कारन एहा
- एक बात नहिं मोहि सोहानी
- एक बार आवत सिव संगा
- एक बार करतल बर बीना
- एक बार कालउ किन होऊ
- एक बार जननीं अन्हवाए
- एक बार त्रेता जुग माहीं
- एक बार भरि मकर नहाए
- एक बार भूपति मन माहीं
- एक राम अवधेस कुमारा
- एक लालसा बड़ि उर माहीं
- एक सखी सिय संगु बिहाई
- एकु छत्रु एकु मुकुटमनि
- एवमस्तु कहि कपट मुनि
- एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा
- एहि अवसर चाहिअ परम
- एहि प्रकार बल मनहि देखाई
- एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं
- एहि बिधि उपजै लच्छि
- एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती
- एहि बिधि गर्भसहित सब नारी
- एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई
- एहि बिधि जनम करम हरि केरे
- एहि बिधि दुखित प्रजेसकुमारी
- एहि बिधि निज गुन
- एहि बिधि बीते बरष
- एहि बिधि भलेहिं देवहित होई
- एहि बिधि भूप कष्ट अति थोरें
- एहि बिधि राम जगत पितु माता
- एहि बिधि संभु सुरन्ह समुझावा
- एहि बिधि सकल मनोरथ करहीं
- एहि बिधि सब संसय करि दूरी
- एहि बिधि सबही देत
- एहि बिधि सिसुबिनोद प्रभु कीन्हा
- एहि बिधि सीय मंडपहिं आई
- एहि महँ रघुपति नाम उदारा
- एहि सुख ते सत कोटि
- एहूँ मिस देखौं पद जाई
क
- कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि
- कंचन थार सोह बर पानी
- कंबल बसन बिचित्र पटोरे
- कंबु कंठ अति चिबुक सुहाई
- कछु दिन भोजनु बारि बतासा
- कछुक ऊँचि सब भाँति सुहाई
- कछुक दिवस बीते एहि भाँती
- कटि तूनीर पीत पट बाँधें
- कठिन कुसंग कुपंथ कराला
- कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं
- कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना
- कनक कलस भरि कोपर थारा
- कनक कलस मनि कोपर रूरे