वंदना जी के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- कादम्बिनी, बिंदिया, पाखी, हिंदी चेतना, शब्दांकन, गर्भनाल, उदंती, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, नव्या, सिम्पली जयपुर आदि के अलावा विभिन्न ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ, कहानियां, आलेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
आजकल तो
छुपे छुपे रहते हैं
अक्स खुद से भी छुपाते हैं
डरते हैं
कोई बैरन कहीं
नज़र न लगा दे
बताओ भला
कारे को भी कभी
कारी नज़र लगी है
जो खुद नज़र का टीका हो
उसे भला नज़र कब लगती है
सखी री कोई तो बताओ
कोई तो उन्हें आईना दिखाओ
प्यार करने वालों की
नज़र नहीं लगती
ये फलसफा उन्हें भी समझाओ
कहना उनसे ज़रा
घूंघट तो उठाएं
मोहिनी मूरत तो दिखाएं
आखिर अपनों से कैसी पर्दादारी?