भारतीय-इस्फ़ाहानी क़ालीन फ़र्श को ढकने के लिए छोटे से लेकर बहुत बड़े आकार वाले फ़ारसी हेराती डिज़ाइनों की नक़ल के रूप में भारत में प्रारंभिक तौर पर 17वीं शताब्दी में हस्तनिर्मित हुई।
- इस्फ़ाहान नाम का प्रयोग इस विश्वास के कारण किया गया था कि फ़ारसी क़ालीन भारत के क़ालीनों से बेहतर बिकते हैं।
- प्रतीत होता है कि विभिन्न ईस्ट-इंडिया कंपनियाँ बड़ी संख्या में इन क़ालीनों का निर्यात यूरोप, विशेषकर पुर्तग़ाल और हॉलैंड व बेल्जियम आदि देशों को करती थीं।
- इन क़ालीनों को 17वीं शताब्दी के डच चित्रों में देखा जा सकता है।
- अंगूर के पत्तों व फूलों वाले अलंकृत मिटिफ़ एक जामुनी-लाल पृष्ठभूमि पर प्रयोग किए जाते थे; किनारा अक्सर समान मूल भाव वाला नीला-हरा होता था।
- भारतीय-इस्फ़ाहानी क़ालीन आगरा में बनाए जाते होगे, जहाँ ऐसे क़ालीन 19वीं शताब्दी में भी बनाए जा रहे थे।
- संभवतः दक्कन में अधिक रंग-बिरंगे क़ालीन बनाए गए, लेकिन उनका निर्यात नहीं किया गया।
- भारतीय-इस्फ़ाहानी शब्द का प्रयोग 19वीं शताब्दी के अनाकार्षक और असमृद्ध डिज़ाइनों के भारतीय क़ालीनों के लिए भी किया गया है, जिन्हें 17वीं शताब्दी के क़ालीनों से लिया गया है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख