एलिफेंटा की गुफ़ाएँ

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एलिफेंटा की गुफ़ाएँ
एलीफेंटा की गुफ़ाएँ, मुम्बई
एलीफेंटा की गुफ़ाएँ, मुम्बई
विवरण एलिफेंटा की गुफ़ाएँ मुम्बई महानगर के पास स्थित पर्यटकों का एक बड़ा आकर्षण केन्‍द्र हैं।
राज्य महाराष्ट्र
ज़िला मुम्बई
निर्माण काल छठी शताब्दी
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 18°57′30″; पूर्व- 72°55′50″
मार्ग स्थिति एलिफेंटा की गुफ़ाएँ मुंबई से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि 1987 में एलिफेंटा की गुफ़ा को विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया था।
कब जाएँ नवम्बर से मार्च
कैसे पहुँचें जलयान, हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है।
हवाई अड्डा छ्त्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र
रेलवे स्टेशन छत्रपति शिवाजी टर्मिनस
यातायात ऑटो-रिक्शा, टैक्सी, सिटी बस
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
एस.टी.डी. कोड 022
ए.टी.एम लगभग सभी
गूगल मानचित्र
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अन्य जानकारी एलिफेंटा की गुफ़ा के लिये हर तीस मिनट पर एक नाव जाती है जो केवल सुबह के नौ बजे से लेकर दोपहर के बारह बजे के बीच ही चलती है।
अद्यतन‎

एलिफेंटा की गुफ़ाएँ महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में पौराणिक देवताओं की अत्यन्त भव्य मूर्तियों के लिए विख्यात है। इन मूर्तियों में त्रिमूर्ति शिव की मूर्ति सर्वाधिक लोकप्रिय है। ये गुफ़ाएँ मुंबई से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।एलिफेंटा की गुफ़ाएँ मुम्‍बई महानगर के पास स्थित पर्यटकों का एक बड़ा आकर्षण केन्‍द्र हैं। एलिफेंटा की गुफ़ाएँ 7 गुफ़ाओं का सम्मिश्रण हैं, जिनमें से सबसे महत्‍वपूर्ण है महेश मूर्ति गुफ़ा। एलिफेन्टा के गुहा मन्दिर राष्ट्रकूटों के समय में बने। एलिफेन्टा की पहाड़ी में शैलोत्कीर्ण करके उमा महेश गुहा मन्दिर का निर्माण लगभग 8वीं शताब्दी में किया गया।

स्थिति

अपोलो वंदर, बम्बई से समुद्र में 7 मील (लगभग 11.2 कि.मी.) उत्तर पूर्व की ओर एक छोटा सा द्वीप है। इसका व्यास लगभग 4.5 मील (लगभग 7.2 कि.मी.) है। यहां दो पहाड़ियां हैं जिनके बीच में एक संकीर्ण घाटी है। द्वीप का नाम प्राचीन नाम धारापुरी है।

इतिहास

ऐहोड़ अभिलेख में पुलकेशिन द्वितीय द्वारा विजित जिस पुरी का उल्लेख है वह हीरानंद शास्त्री के मत में यही स्थान है।[1] पुर्तग़ाल के यात्री वाँन लिंसकोटन के 'डिस्कोर्स आव वायेजेज' नामक ग्रंथ से सूचित होता है कि 16वीं शती में[2] यह द्वीप पोरी अथवा पुरी नाम से प्रसिद्ध था। द्वीप की पहाड़ियों में 5वीं - 6वीं शती ई. में बनी हुई और पहाड़ियों के पार्श्व में तराशी हुई पांच गुफाएं हैं। इनमें हिंदू धर्म से संबंधित अनेक मूर्तियां, विशेषकर, शिव की मूर्तियां गुप्तकालीन कला के उत्तम उदाहरण हैं। इन गुफ़ाओं को घारापुरी के पुराने नाम से जाना जाता है जो कोंकणी मौर्य की द्वीप राजधानी थी।

पुर्तग़ालियों ने इसका उल्लेख भी किया है। एलिफेंटा पर 16वीं शती में मुम्बई तट पर बसने वाले पुर्तग़ालियों का अधिकार था। इन कला शून्य व्यापारियों ने इस द्वीप की सुंदर गुफाओं का गोशालाओं, चारा रखने के गोदामों, यहां तक कि चांदमारी के लिए प्रयोग करके इनका कला वैभव नष्ट प्राय: कर दिया। 16वीं शती ई. तक राजघाट नामक स्थान पर हाथी की एक विशाल मूर्ति अवस्थित थी। इसी कारण पुर्तग़ालियों ने द्वीप को एलिफेंटा का नाम दिया था।

एलिफेंटा में भगवान शंकर के कई लीला रूपों की मूर्तिकारी, एलोरा और अजंता की मूर्तिकला के समकक्ष ही है। महायोगी, नटेश्वर, भैरव, पार्वती-परिणय, अर्धनारीश्वर, पार्वतीमान, कैलाशधारी रावण, महेशमूर्ति शिव तथा त्रिमूर्ति यहां के प्रमुख मूर्ति चित्र हैं। त्रिमूर्ति जिसका चिह्न भारत के डाक टिकट पर है- वास्तव में शिव के ही 3 विविध रूपों की मूर्ति है न कि त्रिदेवों की। नटराज शिव के मुख पर परिवर्तनशील संसार की उपस्थिति में जिस संतुलित, शांत तथा संयत भावना की छाप है वह गुप्तकालीन मूर्तिकला के प्रख्यात विशिष्टता है। यहां की मुख्य गुफा तथा पार्श्ववर्ती कक्षों में अजंता के अनुरूप भित्ति-चित्रकारी भी थी किंतु अब वह नष्ट हो गई है। पुर्तगालियों ने इसका उल्लेख भी किया है।

एलिफेंटा की गुफ़ाओं के पर्वत पर भगवान शिव की मूर्ति भी है। मंदिर में एक बड़ा हॉल है जिसमें भगवान शिव की नौ मूर्तियों के खण्ड विभिन्न मुद्राओं को प्रस्तुत करते हैं। इस गुफ़ा में शिल्‍प कला के कक्षों में अर्धनारीश्‍वर, कल्‍याण सुंदर शिव, रावण द्वारा कैलाश पर्वत को ले जाने, अंधकारी मूर्ति और नटराज शिव की उल्‍लेखनीय छवियाँ दिखाई गई हैं। एलिफेंटा में भगवान शंकर के कई लीलारूपों की मूर्तिकारी, एलौरा और अजंता की मूर्तिकला के समकक्ष ही है। एलिफेंटा की गुफ़ाएँ चट्टानों को काट कर मूर्तियाँ बनाई गई है।

इस गुफ़ा के बाहर बहुत ही मज़बूत चट्टान भी है। इसके अलावा यहाँ एक मंदिर भी है जिसके भीतर गुफ़ा बनी हुई है। एलिफेंटा की गुफ़ाएँ से हर तीस मिनट के बाद एक नाव जाती है जो केवल सुबह के नौ बजे से लेकर दोपहर के बारह बजे के बीच ही चलती है। अपोलो बंडर से एलीफेंटा के बीच नाव चलने का समय दोपहर के एक बजे से लेकर शाम बजे के बीच वापस आती है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 113| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
  1. ए गाइड टू एलिफेंटा - पृ.8
  2. 1579 ई. के लगभग

वीथिका


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