होयसल वंश
होयसल वंश देवगिरि के यादव वंश के समान ही द्वारसमुद्र के यादव कुल का था। इसलिए इस वंश के राजाओं ने उत्कीर्ण लेखों में अपने को 'यादवकुलतिलकय कहा है। होयसालों के राज्य का क्षेत्र वर्तमान समय के मैसूर प्रदेश में था और उनकी राजधानी द्वारसमुद्र थी। शुरू में उनकी स्थिति सामन्त राजाओं की थी, जो कभी दक्षिण के चोलों और कभी कल्याणी के चालुक्य राजाओं के आधिपत्य को स्वीकार करते थे। जब कोई चोल राजा बहुत प्रतापी होता तो वह होयसालों को अपना वशवर्ती बना लेता और जब कोई चालुक्य राजा दक्षिण की ओर अपनी शक्ति का प्रसार करने में समर्थ होता तो वह उन्हें अपने अधीन कर लेता।
वंश का प्रारम्भ
होयसल वंश का प्रारम्भसन्1111 ई. के आसपास मैसूर के प्रदेश में विट्टिग अथवा विट्टिदेव से हुआ। उसने अपना नाम विष्णुवर्धन रख लिया औरसन्1141 ई. तक राज्य किया। उसने 'द्वारसमुद्र' (आधुनिक हलेविड) को अपनी राजधानी बनाया। वह पहले जैन धर्मानुयायी था, बाद में वैष्णव मतावलम्बी हो गया। उसने बहुत से राजाओं को जीता और हलेबिड में सुन्दर विशाल मन्दिरों का निर्माण कराया।
राज्य विस्तार
ग्यारहवीं सदी के पूर्वार्ध में होयसालों ने अपना उत्कर्ष शुरू किया और धीरे-धीरे इस राजवंश की शक्ति बहुत अधिक बढ़ गई। 1110 ई. में विष्णुवर्धन द्वारसमुद्र की राजगद्दी पर आरूढ़ हुआ। वह एक प्रतापी और महत्त्वाकांक्षी राजा था। उसने अपने राज्य को चालुक्यों की अधीनता से मुक्त कर अन्य राज्यों पर आक्रमण भी शुरू किए। सुदूर दक्षिण में चोल, पांड्य और मलाबार के क्षेत्र में उसने विजय यात्राएँ कीं, और अपनी शक्ति को प्रदर्शित किया। इसमें सन्देह नहीं, कि उसके शासन काल में होयसाल राज्य बहुत शक्तिशाली हो गया था। 1140 में विष्णवर्धन की मृत्यु हुई।
कल्याणी पर अधिकार
विष्णुवर्धन का पौत्र वीर बल्लाल होयसाल वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा हुआ। वह बारहवीं सदी के अन्तिम भाग में द्वारसमुद्र के राज्य का स्वामी बना। इसके समय में कल्याणी के चालुक्यों की शक्ति बहुत क्षीण हो गई थी और दक्षिणापथ में उनका स्थान देवगिरि के यादवों ने ले लिया था। 1187 ई. में यादव राजा भिल्लम ने अन्तिम चालुक्य राजा सोमेश्वर चतुर्थ को परास्त कर कल्याणी पर अधिकार कर लिया था। अतः जब वीर बल्लाल ने उत्तर की ओर अपनी शक्ति का विस्तार शुरू किया तो उसका संघर्ष प्रधानतया यादव राजा भिल्लम के साथ ही हुआ। वीर बल्लाल भिल्लम को परास्त करने में समर्थ हुआ और भिल्लम ने रणक्षेत्र में ही वीरगति प्राप्त की।
अंत
विष्णुवर्धन के पौत्र वीर बल्लाल (1173-1220 ई.) ने देवगिरि के यादवों को परास्त किया और होयसलों को दक्षिण भारत में सबसे अधिक शक्तिशाली बना दिया, जो 1310 ई. तक शक्तिशाली बने रहे। 1310 ई. में सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी के सेनापति मलिक काफ़ूर के नेतृत्व में मुसलमानों ने उनके राज्य पर हमला किया। राजधानी पर कब्ज़ा कर लिया गया और राजा को बंदी बना लिया। सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने अंत में 1326 ई. में इस होयसल वंश का अंत कर दिया।
सिंघण द्वारा प्रतिशोध
होयसालों का यह उत्कर्ष देर तक क़ायम नहीं रह सका। प्रतापी यादव राजा सिंघण (1210-1247) ने अपने पितामह के अपमान और पराजय का प्रतिशोध लिया। इस समय होयसाल राज्य के राजसिंहासन पर राजा नरसिंह विराजमान था, जो वीर बल्लाल का पुत्र था। नरसिंह के उत्तराधिकारी होयसाल राजाओं का इतिहास अन्धकार में है। देवगिरि के यादवों के समान होयसालों की स्वतंत्र सत्ता का अन्त भी अलाउद्दीन ख़िलजी के द्वारा ही हुआ, जबकि उसके सेनापति मलिक काफ़ूर ने दक्षिणी भारत की विजय करते हुए द्वारसमुद्र पर भी आक्रमण किया और उसे जीत लिया। अफ़ग़ान सुल्तान के इस आक्रमण के समय होयसाल राज्य का राजा वीर बल्लाल तृतीय था। उसे क़ैद करके दिल्ली ले जाया गया और उसने अलाउद्दीन का वशवर्ती और करद होना स्वीकार कर लिया। लेकिन जब वह अपने देश को लौटा तो उसने भी अफ़ग़ान सरदार का जुआ उतार फैंकने का प्रयत्न किया, यद्यपि इस में वह सफल नहीं हो सका।
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