कामरूप (आज़ादी से पूर्व)

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कामरूप (जिसे अब असम के नाम से जाना जाता है), उस समय 'कामत राज्य' के नाम से प्रसिद्व था। वह पूर्व में अहोम तथा पश्चिम में बंगाल के सुल्तानो द्वारा घिरा हुआ था। 13वीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में ब्रह्मपुत्र की घाटी में अनेक स्वतंत्र राज्य थे, जिनमें कामरूप सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था। 15वीं शताब्दी में खेन लोगों ने कामरूप पर अपना अधिकार कर लिया। उसने कूच बिहार के दक्षिण में कुछ मील की दूरी पर स्थित कामतपुर को अपनी राजधानी बनाया।

  • सिंधुराज (1260-85 ई.) - कामरूप पर अहोम की सैनिक गतिविधियो का हमेशा प्रभाव रहा। अहोम राजा सुखांग्फा ने सिंधुराज को पराजित कर उसे अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।
  • प्रतापध्वज (1300-1305 ई.) - प्रतापध्वज ने कूटनीति के द्वारा अहोम से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किया।
  • दुर्लभ नारायण (1305-1350 ई.) - इसने भी अहोमों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया।
  • अरिमत्ता (1365-1385 ई.) - यह राय पृथु वंश का अन्तिम शासक था। भुयान सरदारों के खेन वंश ने इसकी मृत्यु के बाद राय वंश को उखाड़ फेका।
  • नीलध्वज (1440-1460 ई.) - यह खेन वंश का पहला शासक था।
  • नीलाम्बर (1480-1498 ई.) - यह खेन वंश का सर्वाधिक योग्य शासक था। नीलाम्बर खेन वंश का अंतिम शासक था। 1498 ई. में बंगाल के अलाउद्दीन हुसैनशाह ने नीलाम्बर को पराजित कर स्वंय वहाँ शासक बन गया। इसके साथ ही खेन वंश समाप्त हो गया।

1498 ई. के बाद कामरूप में कोई योग्य शासक नहीं हुआ। 1515 ई. में विषमसिंह कामरूप का शासक बना। वह कूच जाति का था। कूच जाति के महानतम शासक नारायण थे, जिनके शासन काल में राज्य में सुख और समृद्धि का विकास हुआ। इसी काल में शासक और सामन्तो के बीच युद्ध छिड़ जाने के कारण राज्य का दो भागों में विभाजन हो गया- (1) कुच बिहार और (2) कुच हाजो। विभाजन के बाद राज्य में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी, जिसका फ़ायदा अहोमों और मुसलमानों ने उठाया। 1639 ई. में कामरूप के पश्चिमी भाग पर मुसलमानो तथा पूर्वी भाग पर अहोमों का अधिकार हो गया। इन लोगों ने छह सौ वर्षों तक असम में शासन किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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