खुदाबख़्श पुस्तकालय
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विवरण | 'ख़ुदाबक़्श ओरिएण्टल पुस्तकालय' बिहार स्थित प्रमुख राष्ट्रीय पुस्तकालय है। यह भारत के सबसे प्राचीन पुस्तकालयों में से एक है। |
राज्य | बिहार |
ज़िला | पटना |
शुरुआत | 29 अक्टूबर, 1891 ई. |
संस्थापक | मौलवी ख़ुदा बक़्श ख़ान |
संबंधित लेख | बिहार, पटना, बिहार पर्यटन |
अन्य जानकारी | लगभग 21,000 प्राच्य पांडुलिपियों और 2.5 लाख मुद्रित पुस्तकों का अद्वितीय संग्रह इस पुस्तकालय में है। |
खुदाबख़्श ओरिएण्टल पब्लिक लाईब्रेरी (अंग्रेज़ी: Khuda Bakhsh Oriental Library) पटना, बिहार में स्थित है। यह भारत के सबसे प्राचीन पुस्तकालयों में से एक है। संस्कृति मंत्रालय के अधीन यह एक स्वायत्त निकाय है, जो लगभग 21,000 प्राच्य पांडुलिपियों और 2.5 लाख मुद्रित पुस्तकों का अद्वितीय संग्रह है। यद्यपि इसकी स्थापना पहले की गई थी, किंतु इसे जनता के लिए सन 1891 में खोला गया। 1969 में एक संसदीय अधिनियम के अंतर्गत इसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया। मौलवी ख़ुदा बक़्श ख़ान द्वारा संपत्ति एवं पुस्तकों के निज़ी दान से शुरू हुआ यह पुस्तकालय देश की बौद्धिक संपदाओं में काफ़ी प्रमुख है।
स्थापना
खुदाबख़्श ओरिएण्टल पब्लिक लाइब्रेरी पटना में, गंगा के घाट के निकट अवस्थित है। यद्यपि इसकी स्थापना पहले की गई थी, किंतु इसे 29 अक्टूबर, 1891 में बिहार के प्रसिद्ध सपूत ख़ान बहादुर खुदाबख़्श द्वारा जनता के लिए खोला गया। पुस्तकालय की शुरुआत मौलवी ख़ुदा बक़्श ख़ान जो छपरा के थे, उनके निजी पुस्तकों के संग्रह से हुई थी। वे स्वयं क़ानून और इतिहास के विद्वान् थे और पुस्तकों से उन्हें लगाव था। उनके निजी पुस्तकालय में लगभग चौदह सौ पांडुलिपियाँ और कुछ दुर्लभ पुस्तकें शामिल थीं। 1876 ई. में जब ख़ुदा बक़्श ख़ान अपनी मृत्यु-शैय्या पर थे उन्होंने अपनी पुस्तकों की ज़ायदाद अपने बेटे को सौंपते हुए एक पुस्तकालय खोलने की इच्छा प्रकट की। *सन 1888 ई. में लगभग अस्सी हज़ार रुपये की लागत से एक दोमंज़िले भवन में इस पुस्तकालय की शुरुआत हुई और 1891 में 29 अक्टूबर को इसे जनता की सेवा में समर्पित किया गया। उस समय पुस्तकालय के पास अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी की चार हज़ार दुर्लभ पांडुलिपियाँ मौज़ूद थीं।
खुदाबख़्श ने अपना समस्त निजी संग्रह एक न्यास विलेख के माध्यम से पटना जनता को सौंप दिया था। इसके समृद्ध और मूल्यवान संग्रह के असीम ऐतिहासिक और बौद्धिक मूल्य को पहचानते हुए, भारत सरकार ने इस पुस्तकालय को सन 1969 में एक संसद अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया। स्वायत्त संस्थान के रूप में स्थापित यह पुस्तकालय संस्कृति मंत्रालय द्वारा पूर्णत: वित्त पोषित है।
अद्वितीय कोष
यह पुस्तकालय पूर्व विरासत का एक अद्वितीय कोष है, जिसे काग़ज़, ताड़-पत्र, मृग चर्म, कपड़े और विविध सामग्रियों पर लिखित पांडुलिपियों के रूप में परिरक्षित किया गया है। साथ ही इसका स्वरूप आधुनिक है, जिसमें कुछेक जर्मन, फ्रेंच, पंजाबी, जापानी व रूसी पुस्तकों के अलावा अरबी, फ़ारसी, उर्दू, अंग्रेज़ी और हिंदी में मुद्रित पुस्तकें भी रखी गई हैं। यह पुस्तकालय प्राच्य अध्ययनों में एक अनुसंधान केन्द्र के रूप में तथा छात्रों, युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कए सार्वजनिक पुस्तकालय के रूप में कार्य करते हुए दोहरी भूमिका निभाता है। अब यह डिजिटल पुस्तकालय के रूप में विकसित हो रहा है, जिसमें पुस्तकालय के भीतर डिजिटल प्रारूप में उपलब्ध 2000 से अधिक पांडुलिपियां मौजूद हैं। पुस्तकालय लैन तथा इंटरनेट कनेक्शन सहित ई-मेल सुविधाओं से लैस है।
पठन कक्ष
पुस्तकालय के पास दो पठन कक्ष हैं, एक कक्ष अनुसंधानकर्त्ताओं और स्कॉलरों के लिए है जबकि दूसरा कक्ष अनियमित पाठकों के लिए है। पुस्तकालय में विश्व के सभी स्कॉलरों, अनुसंधानकर्ताओं तथा पाठकों का स्वागत है और उनकी आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाता है। स्कॉलरों को सन्दर्भ सेवाएं भी फैक्स, फोन तथा ई-मेल के जरिए भी उपलब्ध करायी जाती है। भारत में तथा विदेश में स्कॉलरों को माइक्रोफिल्म, जेरोक्स, फोटोग्राफ आदि की सप्लाई के माध्यम से सेवाएं प्रदान की जाती हैं जो इस पुस्तकालय की मुख्य विशेषता है। लॉर्ड कर्ज़न के नाम से रखा गया कर्ज़न पठन कक्ष सभी के लिए खुला रहता है। कई समाचार पत्र, पत्रिकाएं, अंग्रेज़ी, उर्दू तथा हिन्दी में उपलब्ध हैं, प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु सन्दर्भ पुस्तकें और पुस्तकें पठन कक्ष में उपलब्ध हैं।
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