गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एण्ड इंजीनियर्स

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गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एण्ड इंजीनियर्स
गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एण्ड इंजीनियर्स का प्रतीक चिह्न
गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एण्ड इंजीनियर्स का प्रतीक चिह्न
विवरण 'गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एण्ड इंजीनियर्स' भारत सरकार के अग्रणी शिपयार्डों में अपना स्थान रखता है। यह रक्षा मंत्रालय का सार्वजनिक उपक्रम है और पूर्वी क्षेत्र का एक प्रमुख शिपयार्ड है।
देश भारत
मुख्यालय कोलकाता
स्थापना 1934
सेवाएँ पोत प्रारूप बनाना, पोत निर्माण तथा पोत मरम्मत आदि।
कार्यरत कर्मचारी 3133 (अप्रैल, 2014)
संबंधित लेख भारतीय नौवहन निगम, जहाज़रानी मंत्रालय, कोचीन शिपयार्ड, भारत सरकार
अन्य जानकारी रक्षा मंत्रालय के इस उपक्रम]] में आधुनिक युद्धपोतों से लेकर परिष्कृत कमर्शियल वैसल और छोटे हारबर क्राफ्ट से लेकर तीव्र एवं शक्तिशाली गश्ती वैसल की एक विशाल श्रृंखला का निर्माण किया जाता है।

गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एण्ड इंजीनियर्स लिमिटेड (अंग्रेज़ी: Garden Reach Shipbuilders & Engineers Limited या GRSEL) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के नियंत्रणाधीन एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। यह कोलकाता में स्थित है। यह भारतीय नौसेना के पोतों से लेकर व्यापारिक जलपोतों तक का निर्माण एवं मरम्मत करता है। 20 हैक्टेयर के क्षेत्र में फैले जीआरएसई का अगला भाग करीब एक किलोमीटर तक नदी से घिरा हुआ है।

स्थापना

गार्डन रीच शिपबिल्‍डर्स एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड 1934 में मेसर्स गार्डन रीच वर्कशाप लिमिटेड के नाम से संयुक्‍त स्‍टॉफ कंपनी के रूप में शुरू की गई थी। सरकार ने 1960 में इस कंपनी का अधिग्रहण कर लिया था और 1 जनवरी, 1977 में इसका नाम बदलकर 'गार्डन रीच शिपबिल्‍डर्स एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड' रखा गया। तब से यह कंपनी अपनी विभिन्‍न गतिविधियों के जरिये विकास की ओर अग्रसर है और शिप बिल्‍डिंग डिविजन और इंजीनियरी और इंजन डिविजन के साथ एक बहु-इकाई के रूप में कार्य कर रही है। कंपनी तटरक्षक और नौसेना के लिए युद्ध पोतों और सहायक जहाज़ों के निर्माण और मरम्‍मत का कार्य करती है।[1] गार्डन रीच शिपबिल्‍डर्स एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड में आधुनिक युद्धपोतों से लेकर परिष्कृत कमर्शियल वैसल और छोटे हारबर क्राफ्ट से लेकर तीव्र एवं शक्तिशाली गश्ती वैसल की एक विशाल श्रृंखला का निर्माण किया जाता है। यह विश्व के उन कुछ शिपयार्डों में से एक है जिसके पास अपने इंजीनियरिंग एवं इंजन निर्माण प्रभाग हैं।

उत्पाद

इसके वर्तमान उत्‍पादकों में कॉरवेट फ्रीगेट, फ्लीट टैंकर, पेट्रोल के जहाज़, तेज हमलावर जहाज़, आधुनिक प्रौद्योगिकी के शिप बोर्न उपकरण, छोटे इस्‍पात पुल, कृषि क्षेत्र के लिए ट्रिब्‍यून पंप, मेरीन सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट और डीजल इंजन आदि हैं। 5 सितंबर, 2006 की जीआरएसआई को मिनी रत्‍न स्‍टेट्स श्रेणी-1 प्रदान की गई है।

उपलब्धियाँ

वर्ष 2006-2007 के दौरान जीआरएसई की उल्‍लेखनीय उपलब्‍धियां इस प्रकार हैं-

  1. लैंडिंग शिप टैंक (बड़ा) आईएनएस शार्दुल और दो तीव्र गति वाले हमलावर जहाज़ (फास्‍ट अटैक क्राफ्ट, आईएनएसबीटी माल्‍व और आईएनएस बारातंग) भारतीय नौसेना को सौंपे गए।
  2. जीआरएसई एंड एस को भारतीय नौसेना की ओर से 10 वॉटरजेट तीव्र गति वाले हमलावर जहाज़ और अंडमान और निकोबार प्रशासन की ओर से 65 पेक्‍स और 100 पेक्‍स नावों के उत्‍पादन का अनुबंध प्राप्त हुआ।
  3. कंपनी ने सड़क परिवहन मंत्रालय के अधीन केंद्रीय अंतर्देशीय जल परिवहन निगम लिमिटेड से 1 जुलाई, 2006 को राजाबागान डॉकयार्ड का अधिग्रहण किया।
  4. वर्ष 2005-2006 के लिए जीआरएसई को तीव्र हमलावर जहाज़ वॉटरजेट का डिजाइन तैयार करने के लिए रक्षा मंत्री का उत्‍कृष्‍ट सम्‍मान प्राप्‍त हुआ।
  5. कंपनी के इंजीनियरी विभाग को दो लेने वाले मॉडयूलर इस्‍पात पुल बनाने और विकसित करने का 9 फ़रवरी, 2007 को पेटेंट अधिकार प्राप्त हुआ। यह अधिकार 16 जनवरी, 2003 से लागू किया गया।[1]

आधुनिकीकरण

जहाज़ के निर्माण की अवधि कम करने और उसे जल्‍दी से जल्‍दी सौंपने की दिशा में जीआरएसई के लिए 402 करोड़ रुपए का कई चरणों में आधुनिकीकरण करने के लिए प्रावधान किया गया। आधुनिकीकरण के लिए कंपनी के अपने और नौसेना द्वारा संयुक्‍त रूप से वित्तीय राशि उपलब्‍ध कराई गई। कंपनी ने इसके लिए 184 करोड़ रुपए का योगदान दिया। आधुनिकीकरण होने से जहाज़ों की क्षमता को बढ़ाने, नई/मॉडयूलर उत्‍पादन तरीके अपनाने की दिशा में तेजी, उल्‍लेखनीय उत्‍पादन क्षमता के लिए ढांचे को तैयार करने, जहाज़ को पहली बार चलाते समय बाहरी फिटिंग के साथ बर्थ को तेज़ीसे घुमाने और प्रभावी संपर्क एवं एकीकरण के कार्य में सुधार लाया जा सकेगा। कंपनी के आधुनिकीकरण का कार्य 2010 तक पूरा होने की संभावना है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भारतीय नौवहन निगम लिमिटेड (हिंदी) archive.india.gov.in। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2017।

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