रक्षा मंत्रालय
रक्षा मंत्रालय
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विवरण | रक्षा मंत्रालय का प्रमुख कार्य है रक्षा और सुरक्षा संबंधी मामलों पर नीति निर्देश बनाना और उनके कार्यान्वयन के लिए उन्हें सुरक्षा बलों के मुख्यालयों, अंतर सेना संगठनों, रक्षा उत्पाद प्रतिष्ठानों और अनुसंधान व विकास संगठनों तक पहुंचाना। |
न्याय सीमा | भारत सरकार |
मुख्यालय | रायसीना हिल, नई दिल्ली |
वर्तमान रक्षामंत्री | मनोहर पर्रिकर |
भारतीय सशस्त्र बल | भारतीय नौसेना, भारतीय वायुसेना, भारतीय थलसेना |
संबंधित लेख | वित्त मंत्रालय, गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
अद्यतन | 20:13, 17 मार्च 2015 (IST)
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रक्षा मंत्रालय (अंग्रेज़ी: Ministry of Defence) भारत का प्रमुख मंत्रालय है जिसका प्रमुख कार्य है रक्षा और सुरक्षा संबंधी मामलों पर नीति निर्देश बनाना और उनके कार्यान्वयन के लिए उन्हें सुरक्षा बलों के मुख्यालयों, अंतर सेना संगठनों, रक्षा उत्पाद प्रतिष्ठानों और अनुसंधान व विकास संगठनों तक पहुंचाना। भारत के पड़ोसी देश विभिन्न राजनीतिक अनुभवों, प्रयोगों और परिस्थितियों के बीच परिवर्तन के दौर से गुजरते हैं। भारत सरकार देश के सीमा क्षेत्र की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी जिम्मेदार है। भारतीय सशस्त्र सेनाओं की कमान राष्ट्रपति के पास है और देश की रक्षा की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल के पास है। यह कार्य रक्षा मंत्रालय द्वारा होता है जो देश में रक्षा के संदर्भ में नीतिगत ढांचे और सशस्त्र बलों को जिम्मेदारियां प्रदान करता है। रक्षा मंत्री रक्षा मंत्रालय का प्रमुख होता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी की सर्वोच्च सरकार में वर्ष 1776 में एक सैन्य विभाग बनाया गया था जिसका मुख्य कार्य ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा जारी किए सेना से संबंधित आदेशों की पूर्णतया जांच करना तथा उन्हें रिकार्ड करना था। सैन्य विभाग ने शुरू में लोक विभाग की एक शाखा के रूप में काम किया और सेना कार्मिकों की सूची बनाए रखने का काम किया। 1883 के चार्टर अधिनियम के अनुसार ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार के सचिवालय को एक सैन्य विभाग सहित चार विभागों में पुनर्गठित किया गया था जिनमें से प्रत्येक विभाग का प्रमुख सरकार का एक सचिव था । बंगाल, बम्बई और मद्रास प्रेसीडेंसियों में सेना ने अप्रैल, 1895 तक संबंधित प्रेसीडेंसी की सेना के रूप में काम किया और तब से उन्हें एक एकल भारतीय सेना के रूप में एकीकृत कर दिया गया था। प्रशासनिक सुविधा के लिए इसे चार कमानों अर्थात पंजाब (उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर सहित), बंगाल, मद्रास (बर्मा सहित) तथा बम्बई (सिंध, क्वेटा तथा अदन सहित) में विभाजित किया गया था। भारतीय सेना के ऊपर सर्वोच्च प्राधिकार सम्राट के नियंत्रण के अध्यधीन, जिसका प्रयोग भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा किया जाता था, गर्वनर जनरल-इन-काउंसिल के पास निहित था। परिषद में दो सदस्य सैन्य कार्यों के लिए जिम्मेवार थे, जिनमें से एक सैन्य सदस्य था, जो सभी प्रशासनिक तथा वित्तीय मामले देखता था जबकि दूसरा कमांडर-इन-चीफ था जो सभी संक्रियात्मक मामलों के लिए जिम्मेवार था। सैन्य विभाग मार्च 1906 में समाप्त कर दिया गया और इसे दो विभागों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया था अर्थात, सेना विभाग और सैन्य आपूर्ति विभाग। अप्रैल, 1909 में सैन्य आपूर्ति विभाग समाप्त कर दिया गया था और इसके कार्यों का प्रभार सेना विभाग ने ले लिया था। सेना विभाग को जनवरी 1938 में रक्षा विभाग के रूप में पदनामित कर दिया गया था। अगस्त 1947 में रक्षा विभाग एक केबिनेट मंत्री के अधीन रक्षा मंत्रालय बन गया।[1]
राजनीतिक गतिविधियाँ
21वीं शताब्दी के प्रथम दशक में इस बात के साक्ष्य उत्तरोत्तर बढ़ते रहे हैं कि सीमाएं इन सुरक्षा खतरों को रोक सकने में अक्षम रही है। भारत का हर पड़ोसी एक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, जिससे वहां राजनीतिक बदलाव हो रहे हैं और विभिन्न प्रकार के प्रयोग किए जा रहे हैं। आतंकवाद और हथियार, ड्रग्स एवं आणविक तकनीक का विस्तार खतरे उत्पन्न कर रहा है, जिस पर लगातार ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है।
- वर्ष 2008 में हुए विकासों के चलते, विशेषकर वैश्विक आर्थिक प्रणाली की चुनौतियों ने वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा में तनावों को उत्पन्न किया है।
- उग्रवादी और आतंकी संगठनों के साथ पाकिस्तान के सम्मिलन ने अधिक जटिलताओं और खतरों को उत्पन्न किया है, जिससे हमें दो चार होना पड़ रहा है। इसलिए आंतरिक और सीमाओं दोनों स्तरों पर हमारे सुरक्षा उपकरणों की मजबूती सर्वोच्च राष्ट्रीय प्राथमिकता है।
- चीन के सुदूर जल में अभियानों के संचालन के लिए समुद्री बेड़े और सामरिक मिसाइल तथा आकाशीय प्रक्षेपास्त्रों का विस्तार, साथ ही सीमावर्ती क्षेत्रों में क्रमिक ढांचागत विकास, गहन सर्वेक्षण और निगरानी, चौकसी, त्वरित प्रतिक्रिया और अभियानात्मक क्षमताओं की बढ़ोतरी को अपने श्वतेपत्र में घोषित उद्देश्यों के रूप में शामिल करने को भारत की रक्षा-सुरक्षा पर निकट भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों के मद्देनजर, सजग जांच-पड़ताल की ज़रूरत है। वैसे ही पाकिस्तान के साथ इसका सहयोग और इसकी सैन्य सहायता, जिसमें जम्मू-कश्मीर राज्य के अवैध पाकिस्तानी कब्जे वाले भू-भाग के जरिए पाकिस्तान से संपर्क बढ़ाए जाने की संभावना शामिल है, का भारत पर सीधा सैन्य प्रभाव पड़ेगा।
- भारत की विश्वसनीय न्यूनतम भयकारी/हतोत्साहन की नीति का क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों में महत्त्वपूर्ण योगदान है। न्यूनतम हतोत्साहन की स्थिति रखते हुए भारत ने 'प्रथम प्रयोग नहीं' की नीति एवं गैर-परमाणु हथियार वाले देशों के लिए 'प्रयोग नहीं' की नीति की घोषणा की है। साथ ही, भारत स्वैच्छिक रूप से आणविक परीक्षण के एकपक्षीय विलम्बन/स्थगन की स्थिति भी बनाए रखता है।
- आवर्धित समुद्री सुरक्षा को लंबी तटरेखा की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए जो पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी एवं दक्षिण में विशाल हिंद महासागर से लगी हुई है। तटीय इलाकों में बढ़ी आर्थिक गतिविधियों और शहरों के विकास ने भी सुरक्षा ज़रूरतों को बढ़ाया है।
- हाल के कुछ वर्षों में, जहाजरानी मुद्दे जैसे- समुद्री पथों की सुरक्षा, गहरे समुद्र में लूटपाट, ऊर्जा सुरक्षा, डब्ल्यूएमडी, आतंकवाद आदि भारत की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण तत्व बन गए हैं। भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर के कुछ हिस्सों में समुद्री लूटपाट के नियंत्रण में अहम भूमिका निभाई है। मुंबई के आतंकी हमलों ने एक बार फिर भारत की सुरक्षा में जहाजरानी की महत्ता को विशिष्टता प्रदान की है।
- उत्तरोत्तर विकसित हो रही अर्थव्यवस्था ने सुरक्षित और शांत विश्व के निर्माण में भारत की भूमिका को बढ़ाया है। विकास, स्थायित्व और शाति की स्थापना के लिए एक शक्तिशाली रक्षा ताकत का होना अनिवार्य आवश्यकता है। सभी प्रकार पारंपरिक और गैरपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए न्यूनतम प्रतिरक्षा विकसित करने की अपनी प्रतिबद्धता भारत पहले ही जाहिर कर चुका है।
- सशस्त्र बलों का सर्वोच्च नियंत्रण भारत के राष्ट्रपति में निहित होता है। हालाँकि, राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल के हाथ में होती है। देश के सुरक्षा से सम्बंधित सभी मामलों के लिये रक्षा मंत्री संसद के सामने जिम्मेदार होता है। सशत्र सेनाओं के प्रशासनिक और संचालन सम्बंधित नियंत्रण रक्षा मंत्रालय और तीनों सेवा मुख्यालयों के द्वारा किया जाता है।
रक्षा मंत्रालय के कार्य
रक्षा मंत्रालय का प्रमुख कार्य है रक्षा और सुरक्षा संबंधी मामलों पर नीति निर्देश बनाना और उनके कार्यान्वयन के लिए उन्हें सुरक्षा बलों के मुख्यालयों, अंतर सेना संगठनों, रक्षा उत्पाद प्रतिष्ठानों और अनुसंधान व विकास संगठनों तक पहुंचाना। सरकार के नीति निर्देशों को प्रभावी ढंग से तथा आवंटित संसाधनों को ध्यान में रखकर उन्हें कार्यान्वित करना भी उसका काम है।
रक्षा मंत्रालय के विभाग
रक्षा मंत्रालय चार विभागों का मिला जुला रूप है जो निम्नलिखित है-
- 1. रक्षा विभाग (डीओडी)
रक्षा विभाग एकीकृत रक्षा स्टाफ और तीनों सेनाओं तथा विभिन्न अंतर सेवा संगठनों की जिम्मेदारियों का वहन करता है। रक्षा बजट, स्थापना कार्य, रक्षा नीति, संसद से जुड़े मुद्दे, बाहरी देशों के साथ रक्षा सहयोग तथा समस्त क्रियाकलापों का समन्वय इसी विभाग के दायित्व हैं।
- 2 रक्षा उत्पाद विभाग (डीडीपी)
रक्षा उत्पादन विभाग का प्रमुख सचिव इसका प्रमुख होता है और यह रक्षा उत्पादन, आयातित भंडार के स्वदेशीकरण, उपकरणों और अतिरिक्त कलपुर्जों तथा हथियार कारखाना बोर्ड और सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उद्यमों की विभागीय उत्पादन इकाइयों के नियंत्रण संबंधी कार्यों को निपटाता है।
- 3. रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग (डीआरडीओ)
रक्षा, शोध तथा विकास विभाग का प्रमुख सचिव होता है जो रक्षा मंत्री का सलाहकार भी होता है। इसका काम सैनिक साजो-सामान के वैज्ञानिक पक्ष, संचालन तथा सेना द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले उपकरणों से संबंधित शोध, डिजाइन और विकास की योजनाएं बनाना है।
- 4. पूर्व सैनिकों के कल्याण और वित्त प्रभाग
भूतपूर्व सैनिक/रक्षाकर्मी कल्याण विभाग का प्रमुख एक अतिरिक्त सचिव होता है। इसके जिम्मे पेंशनयाफ्ता भूतपूर्व सैनिकों, भूतपूर्व कर्मचारी स्वास्थ्य योजना, पुनःनियोजन और केंद्रीय सैनिक बोर्ड महानिदेशालय तथा तीनों रक्षा सेवाओं के पेंशन नियमों से जुड़े मुद्दों का निष्पादन है।
भारतीय सशस्त्र बल
भारतीय नौसेना का ध्वज |
भारतीय वायुसेना का ध्वज |
भारतीय थलसेना का ध्वज |
भारतीय सेना
भारतीय थल सेना सीमा पर चौकस रहती है, चौकन्नी - किसी भी बलिदान के लिए तैयार, ताकि देश के लोग शांति व सम्मान के साथ जी सकें। उच्च तकनीक आधारित सटीक हथियारों को शामिल किए जाने से आगामी युद्धों की मारक क्षमता कई गुणा बढ़ गई है। पारंपरिक खतरों से लेकर आणविक हमलों तक का खतरा उत्पन्न हो गया है और आतंकवाद जैसे राक्षस के उदय से यह समस्या और जटिल हो गई है। जलवायु की कठिनता जैसे - हिम खंडों की ऊंचाई एवं अत्यधिक ठंड, सघन पहाड़ी जंगल तथा मरूभूमि की गर्मी एवं उमस का भी सामना करना पड़ता है। लंबी अवधि के परिप्रेक्ष्य में थलसेना का आकार, आकृति एवं भूमिका का व्यावहारिक दृष्टिकोण थलसेना की आधुनिकीकरण प्रक्रिया को गतिशील/ओजस्वी बनाता है तथा प्रौद्योगिकी प्रक्रिया इसे एक भयसह-क्षमता आधारित ताकत बनने की तरफ अग्रसर करती है। भारतीय थलसेना को विभिन्न वर्णक्रम उन्मुख परिवर्तनों के लिए एवं भविष्य की चुनौतियों के लिए एक ‘तैयार व प्रासंगिक थलसेना’ के रूप में तैयार किया जाना है।
भारतीय नौसेना
अपनी क्षमता, रणनीतिक स्थिति तथा भारतीय महासागरों में अपनी मुखर उपस्थिति के कारण नौसेना भारतीय महासागरीय क्षेत्र में शांति, स्थिरता तथा प्रशांति की उत्प्रेरक है। इसने अन्य समुद्रवर्ती देशों से मित्रता तथा सहयोग क़ायम किया है। हमारे पड़ोस के छोटे मुल्क तथा वे देश जो अपने व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति के लिए भारत के महासागरों पर निर्भर हैं, उनके लिए नौसेना भारत के समुद्री क्षेत्र में प्रशांति तथा स्थिरता के उपाय सुनिश्चित करती है। इस काम को पूरा करने के लिए भारतीय नौसेना अपनी क्षमता तथा क्षेत्रीय और क्षेत्र के बाहर की नौसेनाओं के साथ सहयोग और अंतःक्षमता बढ़ा रही है। देश की नौसैनिक शक्ति बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं इसके लिए जहाजों और पनडुब्बियों का निर्माण देश में और बाहर जोर-शोर से किया जा रहा है। कोच्चि में देसी एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने का काम प्रगति पर है। विदेशी नौ सेनाओं के साथ सहकारिता को बढाने वाली नीति को जारी रखते हुए, कई सारे प्रयोग किये गये थे। इसमें मिलन 08, सिम्बेक्स 08, इन्दिन्दो कोपाट 08, कोंकण 08, वरुण 08, इब्सामर 08, हबुनाग 08 और मालाबार 08, आदि शामिल हैं। स्वदेश में निर्मित आईएनएस केसरी भारतीय नौसेना में अप्रैल 2008 में लाया गया था। दो पानी के जेट - फास्ट अटैक क्राफ्ट चेटलैट और कार निकोबार को भारतीय नौसेना में फरवरी 2009 में शामिल किया गया था।
भारतीय वायुसेना
भारतीय सेना बदलाव के दौर में है। यह बदलाव बड़े पैमाने पर आधुनिकीकरण और नए उपकरण शामिल करने तक सीमित नहीं हैं बल्कि प्रभावी रोज़गार में सैद्धांतिक बदलाव का भी है। वायुसेना आज एक पीढ़ी आगे है और इसने आधुनिक युद्ध क्षमताएं हासिल कर ली हैं। इस बीच देश और देश से बाहर बहुत से अंतरराष्ट्रीय अभ्यासों और मिशन दोनों में सर्वोच्च प्रदर्शनों से अपनी पेशेवर धाक बढ़ाना जारी रखा है। भारतीय वायु सेना ने अति आधुनिक एसयू-30 एमकेआई एयरक्राफ्ट शामिल किया है। 20 हॉक एजेटी एयरक्राफ्ट भी शामिल किए गए हैं। विशेष अभियानों के लिए सी-130 जे-30 एयरक्राफ्ट प्राप्त करने केलिए अमेरिकी सरकार के साथ निविदा पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
मरम्मत के लिये ज़रूरी उपकरणों का स्वदेशीकरण एक सतत प्रक्रिया है। भारतीय वायु सेना के विभिन्न बेड़ों के लिए बेस रिपेयर डिपो (बी. आर. डी.) द्वारा 80,000 से अधिक पुर्जों का स्वदेशीकरण पूरा हो चुका है। सभी आयातित बैरियर की जगह एडीआरडीई स्वदेशी बैरियर लाने के लिये एक दीर्घकालिक योजना तैयार की गयी है। आयात किये हुए अरेस्टर बैरियर के रखरखाव और मरम्मत के औजारों का स्वदेशीकरण भी जारी है। पुर्जों की लगभग 800 श्रृंखलाओं का पहले से ही स्वदेशीकरण हो चुका है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मंत्रालय के विषय में (हिन्दी) आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 18 मार्च, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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