गोलमेज़ सम्मेलन 1930 से 1932 ई. के बीच लंदन में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन का आयोजन तत्कालीन वाइसराय लार्ड इर्विन की 31 अगस्त, 1929 ई. की घोषणा के आधार पर हुआ था। इस सम्मेलन में लार्ड इर्विन ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित हो जाने के उपरान्त भारत के नये संविधान की रचना के लिए लंदन में 'गोलमेज़ सम्मेलन' का प्रस्ताव रखा।
सम्मेलन का आयोजन
साइमन कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज़ थे, जिससे भारतीयों में तीव्र असंतोष उत्पन्न हो गया। इसी असंतोष को दूर करने के अभिप्राय से इस सम्मेलन का आयोजन किया गया था। 1929 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अध्यक्ष पद से स्पष्ट घोषणा की थी कि भारतवासियों का लक्ष्य पूर्ण स्वतंत्रता है और कांग्रेस का गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेना व्यर्थ होगा। 6 अप्रैल, 1930 ई. को महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन आरम्भ किया और उसके एक मास के उपरान्त ही साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई। भारत सरकार ने ऑर्डिनेंस राज लागू करके कठोर दमननीति का आश्रय लिया और महात्मा गांधी सहित कांग्रेस के सभी नेताओं को जेल में बंद कर दिया। इससे यद्यपि आंदोलन प्रकट रूप में तो शान्त हो गया लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से उसकी अग्नि सुलगती ही रही। निरन्तर बढ़ते हुए असंतोष को दूर करने के लिए ही नवम्बर, 1931 ई. में लंदन में 'गोलमेज़ सम्मेलन' का आयोजन हुआ, जिसमें भारत और इंग्लैण्ड के सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता इंग्लैण्ड के तत्कालीन प्रधानमंत्री रैम्ज़े मैक्डोनल्ड ने की और तीन सम्मेलन आयोजित किये-
- प्रथम गोलमेज़ सम्मेलन - 12 सितम्बर, 1930 ई. से 29 जनवरी, 1931 ई. तक
- द्वितीय गोलमेज़ सम्मेलन - 7 सितम्बर, 1930 ई. से 2 दिसम्बर, 1931 ई. तक
- तृतीय गोलमेज़ सम्मेलन - 17 नवम्बर, 1932 ई. से 24 दिसम्बर, 1932 ई. तक
प्रथम सम्मेलन
प्रथम सम्मेलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा था। इस सम्मेलन से इतना लाभ हुआ कि ब्रिटिश सरकार ने इस प्रतिबंध के साथ केन्द्र और प्रान्तों की विधानसभाओं को शासन सम्बन्धी उत्तरदायित्व सौंपना स्वीकार कर लिया कि केन्द्रीय विधानमंडल का गठन ब्रिटिश भारत तथा देशी राज्यों के सम्बन्ध के आधार पर हो।
द्वितीय सम्मेलन
द्वितीय सम्मेलन में महात्मा गांधी ने कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि बनकर भाग लिया। इसमें मुख्य रूप से साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के आधार पर सीटों के बँटवारे के जटिल प्रश्न पर विचार-विनिमय होता रहा। किन्तु इस प्रश्न पर परस्पर मतैक्य न हो सका, क्योंकि मुसलमान प्रतिनिधियों को ऐसा विश्वास हो गया था कि हिन्दुओं से समझौता करने की अपेक्षा अंग्रेज़ों से उन्हें अधिक सीटें प्राप्त हो सकेंगी। इस गतिरोध का लाभ उठाकर प्रधानमंत्री रैम्ज़े मैकडोनल्ड ने साम्प्रदायिक निर्णय की घोषणा की, जिसमें केवल मान्य अल्पसख्यकों को ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं के दलित वर्ग को भी अलग प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था थी।
तृतीय सम्मेलन
तृतीय गोलमेज़ सम्मेलन में भारतीय संवैधानिक प्रगति के कुछ सिद्धान्तों पर सभी लोग सहमत हो गए। जिन्हें एक श्वेतपत्र के रूप में ब्रिटिश संसद के दोनों सदनों की संयुक्त प्रवर समिति के सम्मुख रखा गया। यही श्वेतपत्र आगे चलकर 1933 ई. के 'गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट' (भारतीय शासन विधान) का आधार बना।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 136 |
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