गोविन्दराम सेकसरिया

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गोविन्दराम सेकसरिया
गोविन्दराम सेकसरिया
गोविन्दराम सेकसरिया
पूरा नाम गोविन्दराम सेकसरिया
जन्म 19 अक्टूबर, 1888
जन्म भूमि नवलगढ़, तत्कालीन जयपुर राज्य, राजस्थान
मृत्यु 22 मई, 1946
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र उद्योगपति
प्रसिद्धि भारत के कपास किंग
नागरिकता भारतीय
भाई तीन- भोलाराम, रामनाथ, माखनलाल
बहन दो
अन्य जानकारी इस दुनिया को अलविदा कहने से कुछ समय पहले तक गोविन्दराम सेकसरिया ने खुलकर दान किया। कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग 2 करोड़ रुपये चैरिटी के लिए दान किए थे।

गोविन्दराम सेकसरिया (अंग्रेज़ी: Govindram Seksaria, जन्म- 19 अक्टूबर, 1888; मृत्यु- 22 मई, 1946) स्वतंत्रता-पूर्व भारत के सबसे सफल व्यवसायियों में से एक थे। उन्हें भारत के कॉटन किंग के नाम से भी जाना जाता था। वे अपने समय के सबसे बड़े उद्योगपति थे। गोविन्दराम सेकसरिया ने 16 साल की उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया था। उन्होंने अपनी पत्नी, भाइयों- भोलाराम, रामनाथ, माखनलाल और दो बहनों की पूरी जिम्मेदारी उठाई। कपास बाजार में सफलता प्राप्त करने के बाद गोविन्दराम सेकसरिया ने अपने क्षितिज का विस्तार किया और सर्राफा व अन्य कमोडिटी बाजारों में प्रवेश किया। वह 'भारतीय स्टॉक एक्सचेंज' के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।

जन्म

गोविन्दराम सेकसरिया का जन्म 19 अक्टूबर, 1888 को तत्कालीन राज्य जयपुर के नवलगढ़ में हुआ था। वह एक सामान्य से व्यापारी परिवार में जन्मे थे। उनका जीवन एक सामान्य तरीके से चल रहा था लेकिन उनके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ उस समय टूट पड़ा, जब उन्होंने अपने माता और पिता दोनों को एक साथ खो दिया। मात्र 16 साल की उम्र में वह अनाथ हो गए। इसके साथ ही उनके ऊपर एक बड़े परिवार की जिम्मेदारी भी आ गई। उनके परिवार का कोई समृद्ध व्यवसाय भी नहीं था, जिसे वो संभाल कर सब ठीक कर लेते। यहां गोविन्दराम सेकसरिया के पास एक ही रास्ता था, और वो ये कि उनका परिवार जो कुछ भी था उसे वहीं छोड़ आगे बढ़ें और नई शुरुआत करें। उन्होंने ठीक ऐसा ही किया।[1]

अंग्रेज़ी हुकूमत ने नहीं दिया साथ

नवलगढ़ छोड़कर गोविन्दराम सेकसरिया बॉम्बे (वर्तमान मुम्बई) चले आए। यहीं उन्होंने 1900 के दशक में 'मेसर्स' नाम के तहत अपना व्यवसाय शुरू किया। चूंकि उस समय भारत अंग्रेजों के अधीन था, ऐसे में किसी भारतीय के लिए अपना व्यवसाय शुरू करना और उसे आगे बढ़ाना आसान नहीं था। अंग्रेजी हुकूमत भारतीयों को समर्थन और प्रोत्साहन न के बराबर दे रही थी। ऐसे में अपना धन लगा कर विकास की योजना बनाना और प्रगति करना जोखिम भरा और खतरनाक था। वहीं प्रमुख उद्योगों में अपना स्वामित्व जमाए बैठी विदेशी फर्मों को अंग्रेजी सरकार का पूरा समर्थन मिल रहा था।

कपास व्यवसाय से शुरुआत

सन 1920 के दशक में गोविन्दराम सेकसरिया ने वनस्पति तेलों के साथ चीनी, कपड़ा, खनन, बैंकिंग, प्रिंटिंग प्रेस, मोशन पिक्चर्स, बुलियन ट्रेडिंग और रियल एस्टेट निवेश में विविधता लाते हुए राष्ट्रीय विकास की तरफ बड़ा कदम बढ़ाया। उस समय देश के आधे से ज्यादा हिस्से में उनके कारखाने थे। 1937 में उन्होंने 'गोविंदराम ब्रदर्स प्राइवेट लिमिटेड' की स्थापना की, जो उनकी औद्योगिक दृष्टि का प्रमुख केंद्र था।

गोविन्दराम सेकसरिया भी एक जिद लेकर चल रहे थे। उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें हर हाल में आगे बढ़ना है। अनिश्चित परिणाम के बारे में जानते हुए भी गोविंदराम ने ऐसे जोखिम भरे औद्योगिक माहौल में बॉम्बे में ही एक कपास व्यापारी के रूप में अपना कॅरियर शुरू किया। वह अंग्रेजों के रवैये के खिलाफ लड़ते हुए आगे बढ़ते रहे। उनकी हिम्मत रंग ला रही थी। कुछ ही साल में उनकी फार्म ने सरकार द्वारा गठित 'कॉटन कॉन्ट्रैक्ट बोर्ड' की सदस्यता पा ली और वह 'ईस्ट इंडिया कॉटन एसोसिएशन' के मूल सदस्य बन गए। देखते ही देखते गोविन्दराम सेकसरिया कपास बाजार का एक बड़ा नाम बन गए। एक समय ऐसा आया जब उन्हें 'कॉटन किंग' के रूप में जाना जाने लगा।

दुनिया भर की कॉटन मार्केट का बड़ा नाम बनने के बाद गोविन्दराम सेकसरिया का उत्साह आसमान छू रहा था। फिर तो वह केवल कपास व्यापार तक ही नहीं रुके। उन्होंने सराफा बाजार, विभिन्न कमोडिटी बाजारों के साथ-साथ बॉम्बे और देश में अन्य जगहों पर स्टॉक एक्सचेंजों में प्रवेश किया। उनकी फर्म मारवाड़ी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, बॉम्बे बुलियन एक्सचेंज, बॉम्बे सीड्स ब्रोकर्स एसोसिएशन और इंडियन मर्चेंट्स चैंबर की एक सम्मानित सदस्य बन गई।

न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज के सदस्य

कहते हैं गोविन्दराम सेकसरिया के लिए विकास और विविधीकरण की भूख इतनी ज्यादा थी कि केवल देश भर में व्यापार विकसित होने से इस 'लॉइन ऑफ़ कॉमर्स (Lion of Commerce) को संतुष्टि नहीं मिलने वाली थी। उनकी इसी भूख ने वो कर दिखाया जो उन दिनों बेहद ही दुर्लभ था। वो साल 1934 था, जब एक गुलाम देश का नागरिक, एक भारतीय 'न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज' का सम्मानित सदस्य बना। ये उस समय एक भारतीय के लिए दुर्लभ विशेषाधिकार था। वह अपनी मृत्यु तक एक्सचेंज के सदस्य बने रहे। वह लिवरपूल कॉटन एक्सचेंज में भी सक्रिय हुए। यहां तक कि ब्रिटेन और अमेरिका का तांबा, चीनी और गेहूं का आयात-निर्यात भी उसके दायरे में आ गया। अंतरराष्ट्रीय बाजारों पर भी उनका प्रभाव उतना ही महसूस किया गया, जितना कि राष्ट्रीय बाजारों में। उस समय 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' के लेखों के अनुसार न्यूयॉर्क कॉटन एक्सचेंज में उनके बाजार संचालन को देख सब ही हैरान थे। अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य और बाजार के विकास में उनके निर्णयों पर विश्वास और उनका सम्मान किया जाने लगा था।[1]

अन्य व्यापारिक क्षेत्रों में कदम

सन 1920 के दशक में गोविन्दराम सेकसरिया ने वनस्पति तेलों के साथ चीनी, कपड़ा, खनन, बैंकिंग, प्रिंटिंग प्रेस, मोशन पिक्चर्स, बुलियन ट्रेडिंग और रियल एस्टेट निवेश में विविधता लाते हुए राष्ट्रीय विकास की तरफ बड़ा कदम बढ़ाया। उस समय देश के आधे से ज्यादा हिस्से में उनके कारखाने थे। 1937 में उन्होंने 'गोविंदराम ब्रदर्स प्राइवेट लिमिटेड' की स्थापना की, जो उनकी औद्योगिक दृष्टि का प्रमुख केंद्र था।

देशभक्ति की भावना

व्यापार के क्षेत्र में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जाकर अपना परचम लहराने वाले गोविन्दराम सेकसरिया के अंदर देशभक्ति की भावना भी खूब थी। हालांकि प्रत्यक्ष रूप से उन्होंने कभी भी कभी भी इस भावना को सार्वजनिक नहीं किया लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में उनका बड़ा योगदान रहा। दुर्लभ विशेष अवसरों को छोड़कर वह जनता की नज़रों से दूर रहे। 1940 में उन्होंने अपने पूना बंगले में स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे सदस्यों की मेजबानी की। वहीं उन्होंने बंबई में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ मंच भी साझा किया।

शैक्षाणिक व चिकित्सा संस्थानों की स्थापना

भले ही गोविन्दराम सेकसरिया ने देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा और सम्मान प्राप्त किया, लेकिन ये सब उनके व्यापारिक गुणों के कारण था। बात अगर शिक्षा की करें तो इस मामले में वह बहुत पीछे थे। कोई औपचारिक शिक्षा न प्राप्त करने का उन्हें हमेशा मलाल रहा और इसी कारण उन्होंने शिक्षा का महत्व समझते हुए पूरे भारत में कई स्कूलों, कॉलेजों, शैक्षणिक और चिकित्सा संस्थानों की स्थापना में अपना बड़ा योगदान दिया।

दानी व्यक्ति

गोविन्दराम सेकसरिया इतने विनम्र थे कि उनके दिए गए अनगिनत दानों के बारे में बहुत कम लोग जान पाए। उन्होंने इन बातों पर कभी घमंड नहीं किया और न इस बारे में लोगों के बीच ज्यादा चर्चा की। इस दुनिया को अलविदा कहने से कुछ समय पहले तक उन्होंने खुलकर दान किया था। कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग 2 करोड़ रुपये चैरिटी के लिए दान किए थे।

मृत्यु

बेहद कम उम्र में अनाथ होने के बावजूद अंग्रेजों के खिलाफ जाकर विदेशों तक अपनी धाक जमाने वाले गोविन्दराम सेकसरिया का निधन 22 मई, 1946 में हुआ। उनके निधन के बाद प्रेस और अन्य मीडिया द्वारा उन्हें भरपूर श्रद्धांजलि दी गई। बुलियन एक्सचेंज, कॉटन एक्सचेंज, स्टॉक एक्सचेंज सहित बॉम्बे के सभी प्रमुख बाजार दिवंगत आत्मा के सम्मान में बंद रहे। ऐसा सम्मान उन दिनों एक भारतीय के लिए दुर्लभ सम्मान था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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