चित्त
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चित्त को भारतीय दर्शन में 'मन' के लिए सामान्य तौर पर प्रयोग किया गया है।
- दार्शनिकों ने चित्त के संबंध में गंभीरता से विचार किया है। पतंजलि कहते हैं कि मन, बुद्धि और अहंकार से मिलकर चित्त बनता है। इसकी पांच वृत्तियां होती हैं[1]-
- प्रमाण
- विपर्यय
- विकल्प
- निद्रा
- स्मृति
- पांच प्रकार की भूमियां भी होती हैं-
- क्षिप्त
- मुढ़
- विक्षिप्त
- निरुद्ध
- एकाग्र
- इनमें से अंतिम दो की स्थिति में ही योग की साधना होती है। योग का उद्देश्य चित्त के निरोध द्वारा आत्मा का अपने स्वरूप में लय हो जाना है। इस प्रकार चित्तवृत्तियों के निरोध को ही योग कहते हैं। योग के आठ अंग हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय संस्कृति कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: राजपाल एंड सन्ज, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 327 |