जगजीत सिंह दर्दी

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जगजीत सिंह दर्दी
जगजीत सिंह दर्दी
जगजीत सिंह दर्दी
पूरा नाम जगजीत सिंह दर्दी
जन्म 19 जनवरी, 1949
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र पत्रकार, शिक्षाविद्
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 2022

शिरोमणि पत्रकार अवार्ड, 1998
शिरोमणि साहित्यकार अवार्ड, 1992
वर्ल्ड पंजाबी कान्फ्रेंस द्वारा सम्मान, 1989 और 1997

प्रसिद्धि पत्रकार
नागरिकता पंजाबी भारतीय
अन्य जानकारी एक प्रसिद्ध पत्रकार होने के अलावा जगजीत सिंह दर्दी पटियाला में श्री गुरु हर कृष्ण शैक्षिक संस्थानों के अध्यक्ष भी हैं। इन संस्थानों का उद्देश्य लोगों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देना और नई पीढ़ी में नैतिक मूल्यों की भावना पैदा करना है।
अद्यतन‎

जगजीत सिंह दर्दी (अंग्रेज़ी: Jagjit Singh Dardi, जन्म- 19 जनवरी, 1949) दिग्गज पत्रकार, शिक्षाविद् और पंजाबी अखबार ‘चढ़दीकला’ के एडिटर-इन-चीफ हैं। उन्हें भारत सरकार ने साल 2022 में पद्म श्री से सम्मानित किया है। जगजीत सिंह दर्दी को यह सम्मान राष्ट्रीय एकीकरण, सांप्रदायिक सद्भावना बनाने, मीडिया एवं शिक्षा के क्षेत्र तथा पंजाबी भाषा और पंजाब की संस्कृति एवं विरासत के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में अहम योगदान देने के लिए दिया गया है।

परिचय

जगजीत सिंह दर्दी का जन्म 19 जनवरी सन 1949 को हुआ था। वह आज पंजाबी पत्रकारिता में एक बड़ा नाम हैं। वह वरिष्ठ पत्रकार, शिक्षाविद और चढ़दीकला नामक पंजाबी न्यूज पेपर के ऐडिटर-इन-चीफ और चढ़दीकला टाईम टीवी के चेयरमैन हैं। वह मूल रूप से पटियाला के रहने वाले हैं और चंडीगढ़ के सेक्टर 44 में रहते हैं।[1]

गिरफ्तारी

जगजीत सिंह दर्दी बताते हैं कि मैंने अपनी युवावस्था में एक पंजाबी भाषी राज्य के निर्माण के लिए संघर्ष किया। यह मोर्चा 100 दिन चला था। मोर्चे में भाग लेने के चलते 22 जून, 1960 को गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब, पटियाला से मुझे 12 साल की छोटी उम्र में गिरफ्तार किया गया था। तभी मैंने अखबारों के लिए जेल में बैठकर खबरें लिखनी शुरू कर दी थीं।

वर्ष 1965 में जब वह 16 साल की उम्र के थे तो बेअदबी की घटना के विरोध में किए प्रदर्शन के चलते उन्हें 22 दिन रिमांड पर रखा गया। अकाली जत्थे और सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन ने इस रोष को लीड किया था। इसमें जत्थे के प्रधान सरदारा सिंह कोहली जगजीत सिंह दर्दी के साथ थे। फिर इन्होंने फेडरेशन को लीड किया था। कोहली बाद में मंत्री बने। दर्दी कहते हैं कि हमें अमृतसर जेल में रखा गया। वहां पाकिस्तानी जासूस भी होते थे। जब उनकी पिटाई होती तो वह जोर-जोर से चिल्लाते मगर मैं न रोया और न झूठी गवाही दी। हम गुरु का सिमरन करते रहते। हम न घबराए और न ही टूटे।[1]

समाचार पत्र की शुरुआत

नवजोत सिंह सिद्धू के पिता भगवंत सिंह ने जगजीत सिंह दर्दी की जमानत करवाई थी। वह उस समय एडवोकेट जनरल थे। वह एक महान और निडर व्यक्ति थे। सिद्धू की पत्नी निर्मल देवी मेरी माता की छात्रा थीं। उस समय नवजोत मात्र डेढ़ वर्ष की उम्र का था। नवजोत के पिता ने मुझे पटियाला में अपने घर कुछ महीने के लिए रखा ताकि पुलिस मुझे फिर तंग न करे। उसके पिता जिला कांग्रेस प्रधान भी रहे थे। उनके घर रहते हुए मैंने अखबारों के लिए लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने ही मेरे माता-पिता को कहा कि लड़के में काबिलियत है। आप अखबार क्यों नहीं शुरू करते। इसके बाद से मेरी पत्रकारिता बड़ा रूप लेने लग गई। वहीं झूठे केसों में मैं बरी हो गया।

पंजाबी पत्रकारिता में बड़ा नाम

जगजीत सिंह दर्दी ने अपने 62 वर्ष के अनुभव में मीडिया में अहम सेवाएं दी हैं। वर्ष 1997-1998 में वह लोक सभा की मीडिया एडवाइजरी कमेटी के मेंबर चुने गए थे। इसके बाद वह 2014 में राज्य सभा की मीडिया एडवाइजरी कमेटी के मेंबर चुने गए। वह दुनिया की सबसे बड़ी प्रिंट मीडिया इकाई 'द इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी' की एग्जीक्यूटिव कमेटी के वर्ष 1988 से मेंबर भी हैं। वर्ष 2001 में वह प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के मेंबर बने और तीन टर्म के लिए अपनी सेवाएं दी। वह वर्ष 1993 से प्रधानमंत्री के मीडिया प्रतिनिधिमंडल के सदस्य भी रहे और कई देशों की यात्रा कर चुके हैं। वर्ष 1970 से उनके मार्गदर्शन में चढ़दीकलां न्यूज पेपर चलता आ रहा है। 2007 में उन्होंने अपना टीवी चैनल शुरू किया।

एक प्रसिद्ध पत्रकार होने के अलावा जगजीत सिंह दर्दी पटियाला में श्री गुरु हर कृष्ण शैक्षिक संस्थानों के अध्यक्ष भी हैं। इन संस्थानों का उद्देश्य लोगों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देना और नई पीढ़ी में नैतिक मूल्यों की भावना पैदा करना है।[1]

सम्मान

जगजीत सिंह दर्दी की उत्कृष्ट सेवाओं के कारण उन्हें वर्ष 1998 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने 'शिरोमणि पत्रकार अवार्ड' से सम्मानित किया था। वहीं इससे पूर्व 1992 में पंजाब सरकार ने उन्हें 'शिरोमणि साहित्यकार अवार्ड' से नवाजा था। कनाडा और अमेरिका में भी उन्हें वर्ष 1989 और 1997 में 'वर्ल्ड पंजाबी कान्फ्रेंस' सम्मानित कर चुकी है। तख्त श्री पटना साहिब ने उन्हें "भाई साहब" की उपाधि से सम्मानित किया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 12 साल की उम्र में लिखने लग गए थे 'दर्दी' (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 05 जून, 2022।

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