जम्मू और कश्मीर
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राजधानी | जम्मू (शीतकालीन) श्रीनगर (ग्रीष्मकालीन) |
राजभाषा(एँ) | उर्दू, कश्मीरी, पहाड़ी, लद्दाखी और डोगरी |
स्थापना | 26 जनवरी, 1947 |
जनसंख्या | 10,143,700[1] |
· घनत्व | 100 /कि.मी2 (259 /sq mi) [2] /वर्ग किमी |
क्षेत्रफल | 222,236 किमी2 (85,806 मील2) |
भौगोलिक निर्देशांक | 33° 27′ 0″ उत्तर, 76° 14′ 24″ पूर्व |
तापमान | 23 °C (औसत) |
· ग्रीष्म | 23.4 - 43.0 °C |
· शरद | 4.3 - 26.2 °C |
ज़िले | 22 |
सबसे बड़ा नगर | श्रीनगर |
मुख्य पर्यटन स्थल | वैष्णो देवी, अमरनाथ, डल झील, लेह, गुलमर्ग, कारगिल, अमर महल पैलेस, निशात बाग़, शालीमार बाग़ |
लिंग अनुपात | 1000:923 ♂/♀ |
साक्षरता | 54.46%% |
· स्त्री | 41.82%% |
· पुरुष | 65.75%% |
राज्यपाल | मनोज सिन्हा |
मुख्यमंत्री | रिक्त (राज्यपाल शासन)[3] |
विधानसभा सदस्य | 89 |
विधान परिषद सदस्य | 36 |
बाहरी कड़ियाँ | अधिकारिक वेबसाइट |
अद्यतन | 13:28, 5 अप्रॅल 2016 (IST)
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जम्मू और कश्मीर (अंग्रेज़ी: Jammu and Kashmir) भारतीय राज्य, जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में पश्चिमी पर्वतश्रेणियों के निकट स्थित है। पहले यह भारत की बड़ी रियासतों में से एक था। यह पूर्वात्तर में सिंक्यांग का स्वायत्त क्षेत्र व तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (दोनों चीन के भाग) से, दक्षिण में हिमाचल प्रदेश व पंजाब राज्यों से, पश्चिम में पाकिस्तान और पश्चिमोत्तर में पाकिस्तान अधिकृत भूभाग से घिरा है। जम्मू-कश्मीर राज्य के पश्चिम मध्य हिस्से के पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र में देवसई पर्वत है। इस राज्य की राजधानी ग्रीष्मकाल में श्रीनगर और शीतकाल में जम्मू राजधानी रहती है।
भौगोलिक स्थिति
जम्मू और कश्मीर राज्य 32-15 और 37-05 उत्तरी अक्षांश और 72-35 तथा 83-20 पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है। भौगोलिक रूप से इस राज्य को चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है।
- पहाड़ी और अर्द्ध-पहाड़ी मैदान जो कंडी पट्टी के नाम से प्रचलित है;
- पर्वतीय क्षेत्र जिसमें शिवालिक पहाड़ियाँ शामिल हैं;
- कश्मीर घाटी के पहाड़ और पीर पांचाल पर्वतमाला तथा
- तिब्बत से लगा कारगिल क्षेत्र।
इतिहास
राजतरंगिणी तथा नीलम पुराण नामक दो प्रामाणिक ग्रंथों में यह आख्यान मिलता है कि कश्मीर की घाटी कभी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। इस कथा के अनुसार कश्यप ऋषि ने यहाँ से पानी निकाल लिया और इसे मनोरम प्राकृतिक स्थल में बदल दिया, किंतु भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण खदियानयार, बारामुला में पहाड़ों के धंसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह 'पृथ्वी पर स्वर्ग' कहलाने वाली कश्मीर की घाटी अस्तित्व में आई। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने कश्मीर में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। बाद में कनिष्क ने इसकी जड़ें और गहरी कीं। छठी शताब्दी के आरंभ में कश्मीर पर हूणों का अधिकार हो गया।
यद्यपि सन् 530 में घाटी फिर स्वतंत्र हो गई लेकिन इसके तुरंत बाद इस पर उज्जैन साम्राज्य का नियंत्रण हो गया। विक्रमादित्य राजवंश के पतन के पश्चात कश्मीर पर स्थानीय शासक राज करने लगे। वहां हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का मिश्रित रूप विकसित हुआ। कश्मीर के हिन्दू राजाओं में ललितादित्य (सन 697 से सन् 738) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए जिनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण, उत्तर-पश्चिम में तुर्किस्तान, और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। ललितादित्य ने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया। कश्मीर में इस्लाम का आगमन 13 वीं और 14वीं शताब्दी में हुआ। मुस्लिम शासको में जैन-उल-आबदीन (1420-70) सबसे प्रसिद्ध शासक हुए, जो कश्मीर में उस समय सत्ता में आए, जब तातरो के हमले के बाद हिन्दू राजा सिंहदेव भाग गए। बाद में चक शासकों ने जैन-उल-आवदीन के पुत्र हैदरशाह की सेना को खदेड़ दिया और सन् 1586 तक कश्मीर पर राज किया। सन् 1586 में अकबर ने कश्मीर को जीत लिया। सन् 1752 में कश्मीर तत्कालीन कमज़ोर मुग़ल शासक के हाथ से निकलकर अफ़ग़ानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में चला गया। 67 साल तक पठानों ने कश्मीर घाटी पर शासन किया।
वर्तमान स्वरूप
अपने वर्तमान स्वरूप में जम्मू-कश्मीर का अंचल, 1846 में रूपायित हुआ। जब प्रथम सिक्ख युद्ध के अंत में लाहौर और अमृतसर की संधियों के द्वारा जम्मू के डोगरा शासक राजा गुलाब सिंह एक विस्तृत, लेकिन अनिश्चित से हिमालय क्षेत्रीय राज्य, जिसे 'सिंधु नदी के पूर्व की ओर रावी नदी के पश्चिम की ओर' शब्दावली द्वारा परिभाषित किया गया था, के महाराजा बन गए। राज्य की सीमाओं के अंतर्गत पश्चिमोत्तर में सीमाओं का स्वरूप 19वीं शताब्दी के आख़िरी दशक में अधिक स्पष्ट हुआ। जब ब्रिटेन ने पामीर क्षेत्र में सीमा निर्धारण सम्बन्धी समझौते अफ़ग़ानिस्तान और रूस के साथ सम्पन्न किए। इस समय गिलगित, जो हमेशा कश्मीर का भाग समझा जाता था, रणनीतिक कारणों से 1889 में एक ब्रिटिश एजेंट के तहत एक विशेष एजेंसी के रूप में गठित किया गया। सन 1947 तक जम्मू पर डोगरा शासकों का शासन रहा।
अनुच्छेद 370
ब्रिटिश हुकूमत की समाप्ति के साथ ही जम्मू और कश्मीर भी आज़ाद हुआ। शुरू में इसके शासक महाराज हरीसिंह ने फैसला किया कि वह भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित न होकर स्वतंत्र रहेंगे, लेकिन 20 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान समर्थक आज़ाद कश्मीर सेना ने राज्य पर आक्रमण कर दिया, जिससे महाराज हरीसिंह ने राज्य को भारत में मिलाने का फैसला लिया। उस विलय पत्र पर 26 अक्टूबर, 1947 को पण्डित जवाहरलाल नेहरू और महाराज हरीसिंह ने हस्ताक्षर किये। इस विलय पत्र के अनुसार- "राज्य केवल तीन विषयों- रक्षा, विदेशी मामले और संचार -पर अपना अधिकार नहीं रखेगा, बाकी सभी पर उसका नियंत्रण होगा। उस समय भारत सरकार ने आश्वासन दिया कि इस राज्य के लोग अपने स्वयं के संविधान द्वारा राज्य पर भारतीय संघ के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करेंगे। जब तक राज्य विधान सभा द्वारा भारत सरकार के फैसले पर मुहर नहीं लगाया जायेगा, तब तक भारत का संविधान राज्य के सम्बंध में केवल अंतरिम व्यवस्था कर सकता है। इसी क्रम में भारतीय संविधान में 'अनुच्छेद 370' जोड़ा गया, जिसमें बताया गया कि जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित राज्य उपबंध केवल अस्थायी है, स्थायी नहीं।
भूगोल
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भौगोलिक रूप से इस राज्य को निम्न प्रकार से विभाजित किया जाता है-
- मैदान
जम्मू क्षेत्र में संकीर्ण मैदानी प्रवेश की विशेषता तराइयों से निकली जलधाराओं के द्वारा जमा अवसाद और दोमट मिट्टी व लोएस (वायु के द्वारा लाकर जमा की गई मिट्टी) से ढके एकदम अलग हो चुके अपरदित चट्टान से निर्मित रेतीले जलोढ़ पंखों के अंतःबंधन हैं। जो अभिनूतन (प्लीस्टोसीन) युग (यानी 10 हज़ार से 16 लाख वर्ष पुराना) के हैं। यहाँ वर्षा 380 से 500 मिमी वार्षिक तक होती है। गर्मी के मौसम में (जून से सितंबर में) जब मानसूनी हवाएँ चलती हैं, तब तेज़ लेकिन अनियमित फुहारों के रूप में वर्षा होती है। अंदरूनी इलाक़ा पेड़ों से पूरी तरह विहीन हो गया है और कंटीली झाड़ियाँ या मोटी घास ही यहाँ की मुख्य वनस्पति है।
- तराई क्षेत्र
हिमालय की तराइयों से, जिनकी ऊँचाई 610 से 2134 मीटर तक है, बाहरी और भीतरी प्रक्षेत्र निर्मित है। बाहरी परिक्षेत्र की रचना बलुआ पत्थर, चिकनी मिट्टी, पंक और संपिड़ित चट्टानों से हुई है। ये क्षेत्र हिमालय की वलन गतिविधि से प्रभावित होकर और अपरदन के कारण लम्बे पर्वतीय कटकों और घाटियों (दून) के आकार के हो गए हैं। अंदरूनी प्रक्षेत्र अधिक भीमकाय तलछटी चट्टानों से, जिसमें मिओसीन युग (लगभग 53 से 237 लाख वर्ष पूर्व) के लाल बलुआ पत्थर शामिल हैं, से बना है। जिनके मुड़ने टुटने और क्षारित होने से खड़ी ढलान वाले पर्वत स्कंधों व पठारों का निर्माण हुआ। नदी घाटियों की कटान तीखी व सीढ़ीदार है और भ्रंशों से ऊधमपुर तथा पुंछ जैसे जलोढ़ मिट्टी के बेसिन बन गए हैं। ऊँचाई के साथ - साथ वर्षा बढ़ती जाती है और ऊँचाई बढ़ने के साथ निचली झाड़ीदार भूमि का स्थान देवदार और चीड़ के जंगल ले लेते हैं।
कश्मीर की घाटी
कश्मीर की घाटी का एक गहरा तथा विषम बेसिन है, जो पीर पंजाल और विशाल हिमालय पर्वत श्रेणी के पश्चिम छोर के बीच में स्थित औसतन 1,600 मीटर की ऊँचाई वाली है। अभिनूतन (प्लीस्टोसीन) युग के दौरान यह कभी करेवा झील की तलहटी थी। अब यह ऊपरी झेलम नदी के द्वारा जमा की गई तलछट और जलोढ़ मिट्टी से भरी हुई है। मिट्टी और पानी की स्थितियों में उल्लेखनीय विविधता है। जलवायु की दृष्टि से यहाँ लगभग 750 मिमी वार्षिक वर्षा होती है। कुछ तो ग्रीष्म कालीन मानसूनी हवाओं से और कुछ शीत ऋतु में कम दाब की प्रणाली से सम्बद्ध हवाओं से होती है। अक्सर हिमपात का साथ वर्षा और ओले देते हैं। ऊँचाई के कारण तापमान काफ़ी परिवर्तित हो जाता है। श्रीनगर में न्यूनतम औसत तापमान जनवरी में 2 डिग्री से. होता है और अधिकतम औसत तापमान जुलाई में 31 डिग्री से. तक रहता है। इन्हें भी देखें: पीर पंजाल पर्वत श्रेणी, ऊपरी सिंधु घाटी एवं कराकोरम पर्वत श्रेणी
जलवायु
राज्य का 90 प्रतिशत से अधिक भाग पहाड़ी क्षेत्र है। इस क्षेत्र को भौगोलिक आकृति की दृष्टि से इस सात भागों में बाँटा गया है। जो पश्चिमी हिमालय के संरचानात्मक घटकों से जुड़े हैं। दक्षिण पश्चिम से पूर्वोत्तर तक इन क्षेत्रों में मैदान, निचली पहाड़ियाँ, पीर पंजाल पर्वत श्रेणी, कश्मीर की घाटी, वृहद हिमालय क्षेत्र, ऊपरी सिंधु घाटी और कराकोरम पर्वत श्रेणी शामिल है। जलवायु की दृष्टि से इसमें पूर्वोत्तर की आल्पीय (पहाड़ी) जलवायु से लेकर दक्षिण—पश्चिम में उपोष्ण तक की विविधता है। औसत वार्षिक वर्षा उत्तर में 75 मिमी से लेकर दक्षिण-पूर्व में 1150 मिमी तक है।
जनजीवन
भू-आकृति की विविधता के कारण इस क्षेत्र में लोगों के व्यवसायों में भी भारी विविधता पाई जाती है। लोगों के पंजाब से आकर बसने की दीर्घकालीन प्रवृत्ति के कारण मैदानों और तराइयों में कृषि बस्तियाँ हैं। लोग और उनकी संस्कृति, दोनों की पंजाब के पड़ोसी क्षेत्रों और पश्चिम की अन्य निम्नभूमि के समरूप है। जहाँ जलाढ़ मिट्टी और सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धि ने खेती को सम्भव बनाया है। जैसा की दूनों और निचली घाटियों में हुआ। जनसंख्या गेहूँ और जौ की फ़सलों पर निर्भर है। यह फ़सल बसन्त (रबी) में काटी जाती है और चावल तथा मक्का ग्रीष्म के अंत (ख़रीफ़) की फ़सलें हैं, साथ ही पशुपालन भी विरल है और मक्का की खेती, पशुपालन और वन्य उपजों पर निर्भर है। दक्षिणी मैदानी बाज़ारों के लिए दूध और शुद्ध घी के उत्पादन के लिए बसन्त में ऊँचे चरागाहों की ओर प्रवास ज़रूरी होता है। शीत ऋतु में पहाड़ियों के निवासी निचले क्षेत्रों में लौट आते हैं और शासकीय वनों या लकड़ी की मिलों में काम करते हैं। खेतिहर छोटी बस्तियों और गाँवों की बहुतायत है। जम्मू और उधमपुर जैसे नगर ग्रामीण और आसपास के इस्टेट के लिए बाज़ार केन्द्र व प्रशासनिक मुख्यालय का काम करते हैं।
भाषा
कश्मीरी भाषा संस्कृत से प्रभावित है और गिलगित की विभिन्न पहाड़ी जनजातियों के द्वारा बोली जाने वाली भारतीय - आर्य भाषाओं की दर्दीय शाखा की है। उर्दू, डोगरी, कश्मीरी, लद्दाखी, बाल्टी, पहाड़ी, पंजाबी, गुजरी और ददरी भाषाओं का प्रयोग साधारण नागरिकों द्वारा किया जाता है। कश्मीर की घाटी के निवासी उर्दू या कश्मीरी बोलते हैं। कश्मीरी भाषा भारतीय आर्य वर्ग की दर्दीय शाखा की है और लोकगीतों व साहित्य से समृद्ध है।
जनसंख्या
2001 की जनसंख्या गणना के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या 1,00,69,917; ग्रामीण जनसंख्या 75,64,608; शहरी जनसंख्या 25,05,309 है।
जनगणना
जनगणना 2001 के अनुसार राज्य की साक्षरता दर 54.46 प्रतिशत है; ग्रामीण साक्षरता 48.22 प्रतिशत और शहरी साक्षरता 72.17 प्रतिशत हैं। राज्य में पुरुष साक्षरता अनुमानत: 67.75 प्रतिशत और महिला साक्षरता 41.82 प्रतिशत हैं। यहाँ पांच विश्वविद्यालय और 41 महाविद्यालय हैं जिनमें से 8 निजी क्षेत्र के हैं।
अर्थव्यवस्था
अधिकांश लोग जीवन निर्वाह के लिए कृषि में लगे हैं और चावल, मक्का, गेहूँ, जौ, दालें, तिलहन तथा तम्बाकू सीढ़ीनुमा पहाड़ी ढलानों पर उगाते हैं। कश्मीर की घाटी में बड़े - बड़े बाग़ों में सेब, नाशपाती, आडू, शहतूत, अखरोट और बादाम उगाए जाते हैं। कश्मीर की घाटी भारतीय उपमहाद्वीप के लिए एकमात्र केसर उत्पादक है। गूजर और गद्दी ख़ानाबदोशों के द्वारा भेड़, बकरी, यॉक व खच्चरों का पालन और ऋतु प्रवास किया जाता है। कश्मीर के प्रसिद्ध पश्मीना का उत्पादन यहीं पाली जाने वाली बकरियों से होता है। रेशम पालन भी बहुत प्रचलित है।
उद्योग
हस्तशिल्प यहाँ का परपंरागत उद्योग है। हाथ से बनी वस्तुओं की व्यापक रोज़गार क्षमता और विशेषज्ञता को देखते हुए राज्य सरकार हस्तशिल्प को उच्च प्राथमिकता दे रही है। कश्मीर के प्रमुख हस्तशिल्प उत्पादों में काग़ज़ की लुगदी से बनी वस्तुएं, लकड़ी पर नक़्क़ाशी, कालीन, शॉल और कशीदाकारी का सामान आदि शामिल हैं। हस्तशिल्प उद्योग से काफ़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित होती है। हस्तशिल्प उद्योग में 3.40 लाख कामगार लगे हुए हैं। उद्योगों की संख्या बढ़ी है। करथोली, जम्मू में 19 करोड़ रुपये का निर्यात प्रोत्साहन औद्योगिक पार्क बनाया गया है। ऐसा ही एक पार्क ओमपोरा, बडगाम में बनाया जा रहा है। जम्मू में शहरी हाट हैं जबकि इसी तरह के हाट श्रीनगर में बनाए जा रहे है। राग्रेथ, श्रीनगर में 6.50 करोड़ रुपये की लागत से सॉफ्टेवयर टेक्नोलॉजी पार्क शुरू किया गया है। भूमि सुधार किए गए हैं। अन्न का उत्पादन बढ़ा है और 1947 के बाद मुख्य निर्यात वस्तुओं, लकड़ी, फल और सूखे मेवे व दस्तकारी के उत्पादन की मात्रा बहुत बढ़ी है। धातु के बर्तन, परिशुद्धता के उपकरण, खेल का सामान (मुख्यतः क्रिकेट के बल्ले), फ़र्नीचर, कशीदाकारी, माचिस, राल और तारपीन इस राज्य के प्रमुख औद्योगिक उत्पाद हैं।
कृषि
राज्य की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। धान, गेहूँ और मक्का यहाँ की प्रमुख फ़सलें हैं। कुछ भागों में जौ, बाजरा और ज्वार उगाई जाती है। फलोद्यानों का क्षेत्रफल 242 लाख हेक्टेयर है। राज्य में 2000 करोड़ रुपये के फलों का उत्पादन प्रतिवर्ष होता है जिसमें अखरोट निर्यात के 120 करोड़ रुपये भी शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य सेब और अखरोटों के लिए कृषि निर्यात क्षेत्र घोषित किया गया है। बाज़ार हस्तक्षेप योजना की शुरुआत से उचित ग्रेडिंग सुनिश्चित करते हुए फलों की गुणवत्ता में सुधार लाया जाता है। 25 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष अथवा रूप से बागवानी क्षेत्र से रोज़गार मिलता हैं।
खनिज सम्पदा
इस क्षेत्र में खनिज और जीवाश्म ईंधन के साधन सीमित हैं। इनका अधिकांश भाग जम्मू क्षेत्र में संकेंन्द्रित है। प्राकृतिक गैस के छोटे भण्डार जम्मू के निकट पाए जाते हैं। बॉक्साइट और जिप्सम के भण्डार उधमपुर ज़िले में हैं। अन्य खनिजों में चूना पत्थर, कोयला, जस्ता और ताँबा शामिल है।
बिजली
राज्य में बिजली क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी गई है जिसमें राज्य की 20,000 मेगावाट की विशाल संभाव्य पनबिजली क्षमता के उपयोग पर विशेष बल दिया गया है। 25 मेगावाट तक की लघु पनबिजली परियोजनाओं में निजी निवेश को प्रोत्साहन देने हेतु नई नीति घोषित की गई है। एन.एच.पी.सी. को 2,798 मेगावाट की क्षमता की सात पनबिजली परियोजनाएं सौंपी गई हैं। राज्य की कुल आवश्यकता नेशनल ग्रिड से बिजली ख़रीद कर पूरी होती है। लेह सहित अधिकांश महत्त्वपूर्ण नगरों और गाँवों में बिजली है। बिजली पैदा करने के लिए जलविद्युत और तापविद्युत संयंत्र लगाए गए हैं, जो स्थानीय कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को बिजली की आपूर्ति करते हैं। चिनेनी और सलान में मुख्य विद्युत केन्द्र हैं, जो ऊपरी सिंधु और निचली झेलम नदी पर हैं। उरी जलविद्युत परियोजना का पहला चरण भी प्रारम्भ किया गया है।
प्रशासनिक व्यवस्थाएं
विभाजन से पहले यह सम्पूर्ण क्षेत्र जम्मू और कश्मीर के प्रान्त व सीमावर्ती राज्यों लद्दाख, बाल्टिस्तान तथा गिलगित एजेंसी को समाविष्ट किए हुए था। मुज़फ़्फ़राबाद, कोटली और मीरपुर ज़िले के साथ - साथ उत्तरी क्षेत्रों में शामिल पुंछ, बाल्टिस्तान, असतौर और गिलगित एजेंसी, जो अब पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र है, के हिस्से हैं। यह सम्पूर्ण क्षेत्र अनंतनाग, बारामूला, श्रीनगर, पुलवामा, बड़गाम, कुपवाड़ा और कारगिल ज़िला, जो श्रीनगर प्रान्त में हैं और जम्मू प्रान्त के ज़िले, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, डोडा और पुंछ का कुछ भाग, ये सभी भारत के जम्मू - कश्मीर राज्य के भाग हैं।
जम्मू - कश्मीर राज्य का संघ सरकार में एक विशेष दर्जा बना हुआ है। भारत के शेष राज्य भारतीय संविधान का पालन करते हैं, लेकिन जम्मू - कश्मीर का अपना पृथक् संविधान (1956 में स्वीकृत) है, जो भारतीय गणराज्य का अभिन्न अंग होने की पुष्टि करता है। संघ सरकार के पास प्रतिरक्षा, विदेश नीति एवं संचार के मामलों में प्रत्यक्ष वैधानिक अधिकार हैं और नागरिकता, सुप्रीम कोर्ट के क्षेत्राधिकार और आपातकालीन शक्तियों के मामलों में अप्रत्यक्ष प्रभाव हासिल है।
जम्मू - कश्मीर के संविधान के अंतर्गत, राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। प्रशासनिक अधिकार, निर्वाचित मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल के पास होते हैं। विधानसभा के दो सदन है - विभिन्न क्षेत्रों के 87 प्रतिनिधियों से गठित विधानसभा और 36 सदस्यीय विधान परिषद, राज्य से छह निर्वाचित प्रतिनिधि सीधे भारतीय संसद की लोकसभा में भेजे जाते हैं और विधानसभा व विधान परिषद द्वारा संयुक्त रूप से निर्वाचित छह सदस्य राज्यसभा में भेजे जाते हैं। उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायधीश और 11 अन्य न्यायधीश होते हैं, जो भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य
शिक्षा हर स्तर पर निःशुल्क है। साक्षरता की दर, विशेषकर लेह में, राज्य के औसत के बराबर है। उच्च शिक्षा के दो केन्द्र हैं। दोनों 1969 में स्थापित हुए थे। ये हैं – कश्मीर महाविद्यालय, श्रीनगर और जम्मू विश्वविद्यालय, चिकित्सा सेवा राज्य भर में फैले हुए अस्पतालों और दवाख़ानों द्वारा प्रदान की जाती है। 1982 में स्थापित चिकित्सा विज्ञान का एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ संस्थान श्रीनगर में है। इसके अलावा दो कृषि विश्वविद्यालय भी श्रीनगर और जम्मू में क्रमशः 1982 से 1999 में स्थापित किए गए थे। इनफ़्लुएंज़ा, दमा और पेचिश स्वास्थ्य सम्बन्धी सामान्य समस्याएँ हैं। हृदय रोग, कैंसर व क्षयरोग के मामले भी घाटी में बढ़ रहे हैं।
यातायात
भारतीय संघ सरकार ने जम्मू - कश्मीर में राजमार्गों और संचार सुविधाओं के विकास पर भारी विनियोग किया है। देश के विभाजन और कश्मीर पर भारत - पाकिस्तान विवाद के कारण श्रीनगर से झेलम की घाटी होते हुए रावलपिंडी का मार्ग अवरुद्ध हो गया। इसके कारण एक लम्बे और अधिक कठिन गाड़ी मार्ग को, जो बनिहाल दर्रे से होकर जाता था, सभी मौसमों में उपयोग योग्य राजमार्ग में बदलना ज़रूरी हो गया। इसी में शामिल है 'जवाहर सुरंग' (1959) का निर्माण, जो एशिया की सबसे लम्बी सुरंग है। मगर यह सड़क कई बार तीखे मौसम के कारण दुर्गम हो जाती है। जिसके कारण घाटी में आवश्यक वस्तुओं की कमी हो जाती है। एक सड़क श्रीनगर को कारगिल और लेह से मिलाती है। जम्मू उत्तर रेलवे का अन्तिम स्टेशन है। श्रीनगर और जम्मू वायमार्ग से दिल्ली और दूसरे भारतीय शहरो से जुड़े हुए हैं। श्रीनगर से लेह, लेह—जम्मू और लेह—दिल्ली के बीच भी वायुसेवाएँ उपलब्ध हैं।
संस्कृति
- नवरेह शब्द संस्कृत शब्द "नववर्ष" से बना है। कश्मीर में नवरेह नवचंद्र वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
- शिवरात्रि भी जम्मू और कश्मीर में श्रद्धा और भाक्ति के साथ मनाई जाती है।
- राज्य में मनाए जाने वाले चार मुस्लिम त्योहार हैं- ईद-उल-फितर, ईद उल ज़ुहा, ईद-ए-मिलाद या मीलादुन्नबी और मेराज आलम। मुहर्रम भी मनाया जाता हैं।
- हेमिस उत्सव का प्रमुख आकर्षक मुखौटा नृत्य है।
- लेह में स्पितुक बौद्ध विहार में हर साल जनवरी में होने वाले पर्व में काली की प्रतिमाएं बड़े पैमाने पर प्रदर्शित की जाती हैं।
- इसके अलावा सर्दी के चरम का त्योहार लोहड़ी तथा रामबन और पड़ोस के गांवों में सिंह संक्रांति और अगस्त माह में भदरवाह में मेला पात मनाया जाता हैं।
पर्यटन स्थल
पर्यटन सुविधाओं में काफ़ी सुधार किए गए हैं, यद्यपि सम्भावनाओं का अभी भी काफ़ी उपयोग करना शेष है। लद्दाख जो कि पहले जम्मू-कश्मीर का हिस्सा था, इस पर पर्यटन का महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पड़ा है। यह 1970 तक बाहरी लोगों से सामान्यतः कटा रहा था। (1974 में 500 पर्यटक और 1992 में 16,018)। ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के अलावा पर्यटकों के आकर्षण के केन्द्र हैं -
- गुलमर्ग में आइस स्केटिंग केन्द्र, जो बारामूला के दक्षिण में पीर पंजाल श्रेणी में स्थित है और पहलगाम, जो लिद्दर नदी के किनारे स्थित है।
- गंधक के सोते, जो जोड़ों के दर्द और गठिया के रोगों के शीघ्र इलाज के लिए प्रसिद्ध हैं, लेह के निकट चुमथंग में और नोबरा व पूगा (चागथंग) में स्थित है, पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
- कश्मीर घाटी को पृथ्वी का स्वर्ग माना जाता है। कश्मीर घाटी में चश्मेशाही झरना, शालीमार बाग, डल झील, गुलमर्ग, पहलगाम, सोनमर्ग और अमरनाथ की पर्वत गुफा तथा जम्मू के निकट वैष्णो देवी मंदिर, पटनी टाप राज्य के प्रमुख पर्यटन केंद्र हैं। जून सिंधु दर्शन प्रसिद्ध त्योहार हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Indian Census
- ↑ Population density
- ↑ https://jk.gov.in/jammukashmir/ आधिकारिक वेबसाइट
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