ज़िम्मेदारी -लाल बहादुर शास्त्री
ज़िम्मेदारी -लाल बहादुर शास्त्री
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विवरण | लाल बहादुर शास्त्री |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | लाल बहादुर शास्त्री के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
छह साल का एक लड़का अपने दोस्तों के साथ एक बग़ीचे में फूल तोड़ने के लिए घुस गया। उसके दोस्तों ने बहुत सारे फूल तोड़कर अपनी झोलियाँ भर लीं। वह लड़का सबसे छोटा और कमज़ोर होने के कारण सबसे पिछड़ गया। उसने पहला फूल तोड़ा ही था कि बग़ीचे का माली आ पहुँचा। दूसरे लड़के भागने में सफल हो गए लेकिन छोटा लड़का माली के हत्थे चढ़ गया।
बहुत सारे फूलों के टूट जाने और दूसरे लड़कों के भाग जाने के कारण माली बहुत ग़ुस्से में था। उसने अपना सारा क्रोध उस छह साल के बालक पर निकाला और उसे पीट दिया।
नन्हे बच्चे ने माली से कहा – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं क्योंकि मेरे पिता नहीं हैं!”
यह सुनकर माली का क्रोध जाता रहा। वह बोला– “बेटे, पिता के न होने पर तो तुम्हारी ज़िम्मेदारी और अधिक हो जाती है।”
माली की मार खाने पर तो उस बच्चे ने एक आंसू भी नहीं बहाया था लेकिन यह सुनकर बच्चा बिलखकर रो पड़ा। यह बात उसके दिल में घर कर गई और उसने इसे जीवन भर नहीं भुलाया।
उसी दिन से बच्चे ने अपने हृदय में यह निश्चय कर लिया कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे किसी का कोई नुक़सान हो।
बड़ा होने पर वही बालक भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के आन्दोलन में कूद पड़ा। एक दिन उसने लाल बहादुर शास्त्री के नाम से देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया।
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