यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त

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यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त
यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त
यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त
पूरा नाम यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त
अन्य नाम देशप्रिय, जे. एम. सेनगुप्त
जन्म 22 फ़रवरी, 1885
जन्म भूमि चटगांव (अब बांग्लादेश में)
मृत्यु 22 जुलाई, 1933
मृत्यु स्थान रांची
पति/पत्नी नेली सेनगुप्त
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
धर्म हिंदू
आंदोलन असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन

यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त (अंग्रेज़ी: Jatindra Mohan Sengupta, जन्म: 22 फ़रवरी, 1885; मृत्यु: 22 जुलाई, 1933)[1] भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख नायकों में से एक थे। इन्होंने 1909 ई. में इंग्लैंड से अपनी बैरिस्टरी पूर्ण की थी। इन्होंने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की और साथ ही मज़दूरों के हित के लिए सदैव कार्य करते रहे। यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त को पाँच बार कोलकाता का मेयर चुना गया था। इन्होंने एक अंग्रेज़ युवती नेली सेनगुप्त से विवाह किया था, जिसने देश को स्वाधीन कराने के लिए अपने पति के समान ही जेल की सजाएँ भोगीं।

जीवन परिचय

जतीन्द्र मोहन सेनगुप्त का जन्म चटगांव (अब बांग्लादेश में) के विख्यात सेनगुप्ता परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन एक वकील के रूप में प्रारम्भ किया था, किन्तु बाद में वे इसे त्यागकर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े। वे मज़दूर हित समर्थक थे तथा असम-बंगाल रेलवे की हड़ताल का संयोजन किया। इसके बाद वे बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भी उन्होंने सक्रिय नेतृत्व किया। वे 1931 ई. में प्रथम गोलमेज सम्मेलन प्रारम्भ होने पर इंग्लैण्ड गए थे। वे जनवरी, 1932 ई. में बन्दी बना लिये गए तथा उन्हें पूना, दार्जिलिंगराँची में कैद रखा गया। उनकी 1933 ई. में 48 वर्ष की अल्पायु में मृत्यु हो गई। उन्होंने जीवनभर राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया। वे ‘देशप्रिय’ उपनाम से विख्यात हैं।[2]

जन्म तथा शिक्षा

स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख नायक यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त का जन्म 22 फ़रवरी, 1885 ई. को चटगांव में हुआ था। उनके पिता जात्रमोहन सेनगुप्त बड़े लोकप्रिय व्यक्ति तथा बंगाल विधान परिषद के सदस्य थे। यतीन्द्र मोहन बंगाल में शिक्षा पूरी करने के बाद 1904 ई. में इंग्लैंड गए और 1909 ई. में बैरिस्टर बनकर स्वदेश वापस आए। भारत आने से पहले उन्होंने 'नेल्ली ग्रे' नाम की एक अंग्रेज़ लड़की से विवाह कर लिया था। समय आने पर श्रीमती नेल्ली सेनगुप्त ने भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भाग लिया।[3]

व्यावसायिक जीवन

यतीन्द्र मोहन ने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत और रिपन लॉ कॉलेज में अध्यापक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरम्भ किया। 1911 में वे कांग्रेस में सम्मिलित हुए। यह सम्पर्क बढ़ता गया। 1920 की कोलकाता कांग्रेस में उन्होंने प्रमुख रूप से भाग लिया। किसानों और मज़दूरों को संगठित करने की ओर उनका ध्यान विशेष रूप से था।

जेल यात्राएँ

1921 में सिलहट में चाय बाग़ानों के मज़दूरों के शोषण के विरुद्ध यतीन्द्र मोहन के प्रयत्न से बाग़ानों के साथ-साथ रेलवे और जहाज़ों में भी हड़ताल हो गई थी। इस पर उन्हें गिररफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। स्वराज पार्टी बनने पर यतीन्द्र उसकी ओर से बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए। 1925 में उन्होंने कोलकाता के मेयर का पद सम्भाला। अपने जनहित के कार्यों से वे इतने लोकप्रिय बन गये थे कि उन्हें पांच बार कोलकाता का मेयर चुना गया। पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए 1928 के कोलकाता अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त ही थे। रंगून (अब यांगून) में उन्होंने बर्मा (अब म्यांमार) को भारत से अलग करने के सरकारी प्रस्ताव के विरोध में एक भाषण दिया तो राजद्रोह का आरोप लगाकर वे फिर से गिरफ़्तार कर लिये गए।[3]

कांग्रेस अध्यक्ष का पद

सम्मान में जारी डाक टिकट

1930 में कांग्रेस को सरकार ने गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया। यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष चुने गए। लेकिन सरकार ने उन्हें पहले ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। उनकी पत्नी नेली सेनगुप्त भी गिरफ़्तार की गईं। 1931 में उनका नाम पुन: अध्यक्ष पद के लिए लिया गया था, किन्तु उन्होंने सरदार पटेल के पक्ष में कराची कांग्रेस की अध्यक्षता से अपना नाम वापस ले लिया। 1931 में वे स्वास्थ्य सुधार के लिए विदेश गए, लेकिन 1932 में स्वदेश लौटते ही पुन: गिरफ़्तार कर लिये गए।[3]

कांग्रेस अधिवेशन

1933 में कोलकाता में कांग्रेस का अधिवेशन प्रस्तावित था, जिसकी अध्यक्षता महामना मदन मोहन मालवीय जी को करनी थी, लेकिन अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें मार्ग में ही गिरफ़्तार कर लिया और कोलकाता जाने से रोक दिया। इसके बाद पुलिस के सारे बन्धनों को तोड़ते हुए श्रीमती नेल्ली सेनगुप्त ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की। परन्तु वे अपने भाषण के कुछ शब्द ही बोल पाई थीं कि उन्हें भी गिरफ़्तार कर लिया गया।

निधन

यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त को अस्वस्थ अवस्था में ही जेल में बन्द रखा गया था। 22 जुलाई, 1933 को रांची में उनका निधन हो गया। 


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कई स्रोतों पर इनका नाम 'यतीन्द्र मोहन सेनगुप्ता' भी मिलता है और कई स्रोत इन्हें 'जतीन्द्र मोहन सेनगुप्त' भी कहते हैं।
  2. नागोरी, डॉ. एस.एल. “खण्ड 3”, स्वतंत्रता सेनानी कोश (गाँधीयुगीन), 2011 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: गीतांजलि प्रकाशन, जयपुर, पृष्ठ सं 169।
  3. 3.0 3.1 3.2 भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 669 |

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