जॉन गिलक्राइस्ट

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हिन्दी भाषा और फ़ारसी लिपि का घालमेल फोर्ट विलियम कॉलेज (1800-54) की देन थी। फोर्ट विलियम कॉलेज के हिन्दुस्तानी विभाग के सर्वप्रथम अध्यक्ष जॉन गिलक्राइस्ट थे। उनके अनुसार हिन्दुस्तानी की तीन शैलियाँ थीं—

  1. दरबारी या फ़ारसी शैली
  2. हिन्दुस्तानी शैली
  3. हिन्दवी शैली।

गिलक्राइस्ट फ़ारसी शैली को दुरूह तथा हिन्दवी शैली को गँवारू मानते थे। इसलिए उन्होंने हिन्दुस्तानी शैली को प्राथमिकता दी। उन्होंने हिन्दुस्तानी के जिस रूप को बढ़ावा दिया, उसका मूलाधार तो हिन्दी ही था, किन्तु उसमें अरबी–फ़ारसी शब्दों की बहुलता थी और वह फ़ारसी लिपि में लिखी जाती थी। गिलक्राइस्ट ने हिन्दुस्तानी के नाम पर असल में उर्दू का ही प्रचार किया।

परिचय

गिलक्राइस्ट का जन्म सन् 1759 में एडिनबरा में हुआ था। उन्होंने एडिनबरा के जार्ज हेरियट्स अस्पताल में चिकित्सा संबंधी शिक्षा ग्रहण की। चिकित्सीय शिक्षा प्राप्त कर वे अप्रैल 1783 को ईस्ट इंडिया कंपनी में एक चिकित्सक के रूप में कलकत्ता भारत आए जहाँ 21 अक्टूबर सन् 1794 को सर्जन का पद दिया गया। तब तक शासन कार्य फारसी में होता था। जॉन गिलक्राइस्ट ने फारसी के स्थान पर शासनकार्य को हिंदुस्तानी के माध्यम से चलाने की बात सोची। वे स्वयं अध्ययन करते रहे और दूसरों को भी इस बात के लिए प्रेरणा देते रहे।

रचनाएँ

यहाँ उन्होंने हिन्दुस्तानी के अध्ययन के लिए विशेष प्रयत्न किया और ए डिक्शनरी ऑफ़ इंगलिश एण्ड हिन्दुस्तानी, दो भाग (1787-1790) ए ग्रामर ऑफ़ हिन्दुस्तानी लैंवेज (1793), दी ओरियंटल लिग्विस्टिक (1798) की रचना की। फोर्ट विलियम कॉलेज में[1] अध्यक्ष नियुक्त हुए जिसके बाद अनेक पाठ्य पुस्तकों का सम्पादन किया, जैसे- द एंटीजार्गोनिस्ट[2], द स्ट्रेंजर्स. ईस्ट इंडिया कम्पनी गाइड टू द हिन्दुस्तानी[3] द्वितीय संस्करण लंदन से 1808 में, तृतीय संस्करण 1820 में, द हिन्दी स्टोरी टेलर[4], ए कलैक्शन ऑफ़ डायलॉग्स इंगलिश एण्ड हिन्दुस्तानी[5] एडिनबरा से द्वितीय संस्करण 1820 में, द हिन्दी मॉरेल प्रीसेप्टर[6], द ओरियंटल फैब्यूलिस्ट[7] आदि।

डिक्शनरी इंग्लिश ऐण्ड हिंदुस्तानी

डिक्शनरी के लिए सामग्री जुटाने के लिए उन्होंने गाजीपुर में 1787 से 1794 तक नील की खेती और अफीम का कार्य शुरू किया। इसी सिलसिले में वे कुछ दिन बनारस में भी रहे और इस प्रकार गहन अध्यवसाय के बाद 1787-1790 ई. में 'डिक्शनरी इंग्लिश ऐण्ड हिंदुस्तानी' के दो भाग प्रकाशित किये।

कलकत्ता निवास

1774 में वे कलकत्ता में निवास करने लगे। वहीं उन्होंने 'हिंदुस्तानी ग्रामर'[8] तथा 'ओरियण्टल लिंग्विस्ट' 1798 ई. में लिखा।

हिंदुस्तानी भाषा के विभागाध्यक्ष

इन्हीं दिनों कम्पनी के विदेशी कर्मचारियों को फारसी और हिंदुस्तानी सिखाने की एक योजना तैयार की गयी। 1778 से परीक्षाएँ भी आरम्भ कर दी गयीं। 'ओरियण्टल सेमिनरी' नामक एक सरकारी संस्था का भी जन्मा हुआ। लार्ड वेलेजली के आने पर फोर्ट विलियम कॉलेज में जॉन गिलक्राइस्ट हिंदुस्तानी भाषा के विभागाध्यक्ष हो गये।

कार्य
  • 1800 ई. में 'ओरियण्टल लिंग्विस्ट' का संक्षिप्त संस्करण निकला।
  • 1802 ई. में 'हिंदुस्तानी टेल्स एण्ड प्रिंसिपल्स', 'पालिग्लॉट' और 'गुलिस्ताँ' के अनुवाद प्रकाशित हुए।
  • 1803 ई. में 'द हिंदी मारल प्रेसेप्ट्र्र' लिखा।
  • 1804 में 'ए कलेक्शन ऑफ़ डायलाग्स' की रचना की। इसी बीच लल्लूलाल और सदल मिश्र को वे फोर्ट विलियम कॉलेज में हिंदुस्तानी पढ़ाने के लिए ले गये।
  • 1804 ई. में वे यूरोप चले गये। उनका कार्यक्षेत्र प्रायः लंदन रहा। उन्हें एडिनबरा से एल-एल.डी. की उपाधि मिली। यूरोप में रहकर वे कोई रचना प्रकाशित न कर सके। निजी रूप से वे 1816-26 तक पढ़ाते रहे। पहले वे 'ओरियण्ट्ल इंस्ट्रक्टर' रहे, फिर हिंदुस्तानी की कक्षाएँ लेने लगे।
  • 'डिक्शनरी इंग्लिश ऐण्ड हिंदुस्तानी' में अधिकांश शब्द अरबी फारसी के हैं। इसमें शब्द फारसी लिपि में हैं।
  • 'हिंदुस्तानी ग्रामर' में फारसी छन्दों के उदाहरण हैं। पारिभाषित शब्दावली अरबी फारसी की है। उद्धरण उर्दू साहित्य से भी दिये गये हैं, जैसे वली, दर्द, ताबाँ, अफजल, जुरअत, मीर, सौदा, बेदार आदि।
  • 'मिलिट्री-टर्म्स', 'आर्टिकिल्स ऑफ़ वार', टेल्स ऐण्ड एनेक्डोट्स', 'ओड्स', 'स्ट्रेंजर्स गाइड', 'हिंदी डिक्शनरी' (1802) भी हिंदुस्तानी व्याकरण हैं।
  • 'हिंदी मैनुअल' मौलिक रचना नहीं, संग्रह है। इसमें अपने विभाग के अध्यापकों की कृतियों से विचित्र शैलियों के नमूने चुने गये हैं।
  • 'हिंदी स्टोरी टेलर' इनकी मौलिक रचना है।
  • 'हिंदी मॉरल प्रेसेप्टर' हिंदी से फारसी और फारसी से हिन्दी का व्याकरण है। यह भी मौलिक नहीं है।
  • 'हिंदी रोमन आन ग्रैफिकल अल्टीमेट्म' में रोमन लिपि की श्रेष्ठता प्रमाणित की गयी है। यह भी मौलिक कृति है।
हिंदुस्तानी भाषा

जॉन गिलक्राइस्ट की दृष्टि में 'हिंदुस्तानी' दरबारी भाषा है। उन्होंने इसे हिंदी, उर्दू, और रेखता भी कहा है। हिंदवी को वे केवल हिंदुओं की भाषा मानते थे। इसे गँवारूँ कहते थे। शैली के लिए फारसी भाषा और लिपि का ज्ञान अनिवार्य मानते थे। उन्हीं के शब्दों में हिंदुस्तानी हिंदी, अरबी, और फारसी का मिश्रित रूप है। वह भाषा आया, मुंशी और खानसामा की भाषा है।

महत्त्व

जॉन गिलक्राइस्ट के भाषा और लिपि संबंधी दृष्टिकोणों से आज असहमति हो सकती है, किंतु साहित्य के इतिहास में खड़ी बोली के आधुनिक गद्य के उन्नायक के रूप में उनका नाम सदाश्यता से लिया जायेगा।



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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1800
  2. द ओरियंटल लिग्विस्टिक का संक्षिप्त संस्करण (1800)
  3. 1802
  4. 1802
  5. 1904
  6. 1803
  7. 1803
  8. 1796-98

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 132, 217।

बाहरी कड़ियाँ

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