जयशंकर प्रसाद का उपन्यास, जो 1934 ई. में प्रकाशित हुआ। 'तितली', ग्राम्यजीवन से सम्बद्ध उपन्यास है, यद्यपि कथानक के आगे बढ़ने पर उसमें कलकत्ता आदि महानगरों के छाया संकेत भी मिल जाते हैं।
- कथा
इसकी कथा धामपुर नामक गाँव के चारों ओर परिक्रमा करती है। इसके ज़मींदार इन्द्रदेव हैं, जो विलायत से अपने साथ शैला नामक विदेशी युवती को ले आये हैं। इस विदेशी बाला का सम्बन्ध प्रसाद ने भारत से स्थापित कर दिया है, क्योंकि उसका जन्म यहीं हुआ था। धामपुर का प्रमुख पात्र मधुबन अथवा मधुआ है, जिसके पिता कभी शेरकोट दुर्ग के स्वामी थे। गाँव में भारतीय संस्कृति और दर्शन की सक्षात मूर्ति बाबा रामनाथ हैं, जिनकी पालिता कन्या बंजो अथवा तितली है। इसी तितली से मधुआ का विवाह होता है मधुआ की विधवा बहिन राजकुमारी के शरीर से धामपुर का महंत खेलना चाहता है। मधुआ उसका गला दबाकर भाग निकलता है। यहीं से उसका जीवन-संघर्ष आरम्भ हो जाता है। कलकत्ते में वह गिरहकटों के साथ रहता है। फिर रिक्शा चलाते हुए पकड़ा जाता है। आठ वर्ष जेल में रहकर घर वापस आता है। महुआ के जीवन के अतिरिक्त इन्द्रदेव और उसके परिवार की कथा है, जिसमें एक धनी परिवार की पारिवारिक समस्याएँ अंकित हैं।
- ग्राम्य जीवन
'तितली' में प्रमुख रूप से ग्राम्य जीवन के चित्र और समस्याओं का समावेश किया गया है। भारतीय ग्रामों में आज भी संस्कृति के मूल तत्त्व विद्यमान हैं, यद्यपि वातावरण पर्याप्त विकृत और दूषित हो गया है। एक ओर इन्द्रदेव को लेकर और महुआ ग्रामीण जीवन का प्रकाशन करते हैं। भूमिहीन किसानों में क्रांति-विद्रोह का जो भाव है, वह मधुबन में स्पष्ट है। ग्राम्य-जीवन के उद्धार का प्रयत्न इन्द्रदेव और शैला करते हैं। बैंक, अस्पताल, ग्रामसुधार आदि की योजनाएँ उन्हीं के द्वारा कर्यांवित होती हैं। मिटती हुई सामंतवादी प्रथा की सूचना 'तितली' में मिलती है। महाजनों का शोषण, महंतों का पाखण्ड इसमें अंकित है। 'गोदान' जैसी विशाल आधारभूमि 'तितली' को नहीं प्राप्त हो सकी है, पर समस्याएँ उसी तरह की हैं। शैला रामनाथ से तर्क करती है और अंत में भारतीय संस्कृति की उच्चता स्वीकार कर लेती है। बाबा रामनाथ भारतीय उदार मानवीयता के प्रतिनिधि पात्र हैं, जिन्हें कृषि परम्परा का आधुनिक प्रतीक कहा जायगा। पारिवारिक विषमता के कारण टूटती हुई संयुक्त कुटुम्ब व्यवस्था इन्द्रदेव के परिवार में स्पष्ट है। यद्यपि उपन्यास की अधिकांश कथा ग्रामीण जीवन की है पर नगर-सभ्यता के संकेत भी मिल जाते हैं, जैसे कलकत्ता नगरी के जीवन में।
- भाषा शैली
'तितली' का कथानक अधिक सम्बद्ध और संग्रथित है। दोनों कथाओं को (महुआ और इन्द्रदेव) इस प्रकार संग्रथित कर दिया गया है कि उनमें अलगाव नहीं रह जाता। कतिपय अविश्वसनीय कथा-प्रसंगों को छोड़कर अधिकांश घटनाएँ स्वाभाविक हैं। कवि का रूप भाषा और शैली दोनों में झलक आया है। अनेक स्थलों पर कवि प्रसाद की भाषा जाग उठी है और 'तितली' का अंत इसी काव्यमय शैली में होता है। 'कंकाल' नगर जीवन से सम्बद्ध है तथा 'तितली' ग्रामीण जीवन से। एक में यदि नग्न यथार्थ हैं तो दूसरे में अपेक्षाकृत प्रक्षिप्त और इस दृष्टि से 'कंकाल' और 'तितली' दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 231।