तुलसी का औषधीय महत्त्व
तुलसी का औषधीय महत्त्व
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जगत | पादप (Plantae) |
वर्ग | ऍस्टरिड्स (Asterids) |
गण | लैमिएल्स (Lamiales) |
कुल | लैमिएसी (Lamiaceae) |
जाति | ओसिमम (Ocimum) |
प्रजाति | O. tenuiflorum (टेनूईफ्लोरम) |
द्विपद नाम | ऑसीमम सैक्टम |
भारतीय संस्कृति और धर्म में तुलसी को उसके महान् गुणों के कारण ही सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। भारतीय संस्कृति में यह पूज्य है। तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन विज्ञान के दृष्टिकोण से तुलसी एक औषधि है। तुलसी को हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं। आयुर्वेद में तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान हैं। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना जाता है। आपके आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियो का इलाज करने के आश्चर्यजनक गुण लिए हुए होता हैं। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। हृदय रोग हो या सर्दी जुकाम, भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है। औषधि ये गुणों से परिपूर्ण पौराणिक काल से प्रसिद्ध पतीत पावन तुलसी के पत्तों का विधिपूर्वक नियमित औषधितुल्य सेवन करने से अनेकानेक बीमारियाँ ठीक हो जाती है। इसके प्रभाव से मानसिक शांति घर में सुख समृद्धि और जीवन में अपार सफलताओं का द्वार खुलता है। यह ऐसी रामबाण औषधी है जो हर प्रकार की बीमारियों में काम आती है जैसे - स्मरण शक्ति, हृदय रोग, कफ, श्वास के रोग, प्रतिश्याय, ख़ून की कमी, खॉसी, जुकाम, दमा, दंत रोग, धवल रोग आदि में चमत्कारी लाभ मिलता है। तुलसी एक प्रकार से सारे शरीर का शोधन करने वाली जीवन शक्ति संवर्धक औषधि है। वातावरण का भी शोधन करती है तथा पर्यावरण संतुलन बनाती है। इस औषधि के विषय में जितना लिखा जाए कम है। इन्हें भी देखें: तुलसी एवं तुलसी का धार्मिक महत्त्व
औषधीय गुण
- हिन्दू धर्म संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। अथर्ववेद (1-24) में वर्णन मिलता है - सरुपकृत त्वयोषधेसा सरुपमिद कृधि, श्यामा सरुप करणी पृथिव्यां अत्यदभुता। इदम् सुप्रसाधय पुना रुपाणि कल्पय॥ अर्थात् - श्यामा तुलसी मानव के स्वरूप को बनाती है, शरीर के ऊपर के सफेद धब्बे अथवा अन्य प्रकार के त्वचा संबंधी रोगों को नष्ट करने वाली अत्युत्तम महौषधि है।
- महर्षि चरक तुलसी के गुणों का वर्णन करते हुए लिखते हैं - हिक्काकासविषश्वास पार्श्वशूलविनाशनः । पित्तकृत् कफवातघ्न्रः सुरसः पूतिगन्धहाः॥ तुलसी हिचकी, खाँसी, विष, श्वांस रोग और पार्श्व शूल को नष्ट करती है। यह पित्त कारक, कफ-वातनाशक तथा शरीर एवं भोज्य पदार्थों की दुर्गन्ध को दूर करती है।
- सूत्र स्थान में वे लिखते हैं - गौरवे शिरसः शूलेपीनसे ह्यहिफेनके । क्रिमिव्याधवपस्मारे घ्राणनाशे प्रेमहेके॥ (2/5) सिर का भारी होना, पीनस, माथे का दर्द, आधा शीशी, मिरगी, नासिका रोग, कृमि रोग तुलसी से दूर होते हैं।
- सुश्रुत महर्षि का मत भी इससे अलग नहीं है। वे लिखते हैं - कफानिलविषश्वासकास दौर्गन्धनाशनः । पित्तकृतकफवातघ्नः सुरसः समुदाहृतः॥ (सूत्र-46) तुलसी, कफ, वात, विष विकार, श्वांस-खाँसी और दुर्गन्ध नाशक है। पित्त को उत्पन्न करती है तथा कफ और वायु को विशेष रूप से नष्ट करती है।
- भाव प्रकाश में उद्धरण है - तुलसी पित्तकृद वात कृमिर्दोर्गन्धनाशिनी। पार्श्वशूलारतिस्वास-कास हिक्काविकारजित॥ तुलसी पित्तनाशक, वात-कृमि तथा दुर्गन्ध नाशक है। पसली का दर्द, अरुचि, खाँसी, श्वांस, हिचकी आदि विकारों को जीतने वाली है। आगे वे लिखते हैं - यह हृदय के लिए हितकर, उष्ण तथा अग्निदीपक है एवं कुष्ट-मूत्र विकार, रक्त विकार, पार्श्वशूल को नष्ट करने वाली है। श्वेत तथा कृष्णा तुलसी दोनों ही गुणों में समान हैं।
होम्योपैथिक मत
भारतीय व यूरोपीय दोनों ही होम्योपैथ सिद्धान्त तुलसी को अमृतोपम मानते हैं। बंगाल के डॉ. विश्वास कहते हैं कि तुलसी अनेकानेक लक्षणों में लाभकारी औषधि है। सिर में दर्द, स्मरण शक्ति में कमी, बच्चों का चिड़चिड़ापन, आँखों की लाली, एलर्जी के कारण छीकें आना, नाक बहना, मुँह में छाले, गले में दर्द, पेशाब में जलन, दमा तथा जीर्ण ज्वर जैसे बहुत प्रकार के लक्षणों में तुलसी को होम्योपैथी में स्थान दिया गया है। इसकी 2, 3, 6, 30 तथा 200 वीं पोटेन्सी में प्रयोग कर इन सभी रोगों में लाभ पाए हैं। ब्राजील में तुलसी की ऑसीमम कैनन नामक जाति पायी जाती है। डॉ. भरे व बोरिक यह मानते हैं कि यह प्रजनन तथा मूत्रवाही संस्थान रोगों की श्रेष्ठ औषधि है।
यूनानी मत
इसके अनुसार तुलसी हृदयोत्तेजक, बलवर्धक तथा यकृत आमाशय बलदायक है। यह हृदय को बल देने वाली होने के कारण अनेक प्रकार के शोथ-विकारजन्य रोगों में आराम देती है। यह शिरःशूल की श्रेष्ठ औषधि है। पत्ते सूँघने से मूर्च्छा दूर होती है तथा चबाने से दुर्गन्ध। रस कान में टपकाने से कर्णशूल शान्त होता है।
आधुनिक मत एवं वैज्ञानिक प्रयोगों के निष्कर्ष
- इण्डियन ड्रग्स पत्रिका (अगस्त 1977) के अनुसार तुलसी में विद्यमान रसायन वस्तुतः उतने ही गुणकारी हैं, जितना वर्णन शास्रों में किया गया है। यह कीटनाशक है, कीट प्रतिकारक तथा प्रचण्ड जीवाणुनाशक है। विशेषकर एनांफिलिस जाति के मच्छरों के विरुद्ध इसका कीटनाशी प्रभाव उल्लेखनीय है। डॉ. पुष्पगंधन एवं सोबती ने अपने खोजपूर्ण लेख में बड़े विस्तार से विश्व में चल रहे प्रयासों की जानकारी दी है।
- 'एण्टीवायटिक्स एण्ड कीमोथेरेपी' पत्रिका के अनुसार तुलसी का ईथर निष्कर्ष टी.वी. के जीवाणु माइक्रोवैक्टीरियम ट्यूवर-कुलोसिस का बढ़ना रोक देता है। सभी आधुनिकतम औषधियों की तुलना में यह निष्कर्ष अधिक सान्द्रता में श्रेष्ठ ही बैठता है। श्री रामास्वामी एवं सिरसी द्वारा दिए गए शोध परिणामों (द इण्डियन जनरल ऑफ फार्मेसी मई-1967) के अनुसार तुलसी की टीबी नाशक क्षमता विलक्षण है इस जीवाणु के 'ह्यूमन स्ट्रेन की वृद्धि' को भी यह औषधि रोकती है।
- 'वेल्थ ऑफ इण्डिया' के अनुसार तुलसी का स्वरस तथा निष्कर्ष कई अन्य जीवाणुओं के विरुद्ध भी सक्रिय पाया गया है। इनमें प्रमुख हैं - स्टेफिलोकोकस आंरियस, साल्मोनेला टाइफोसा और एक्केरेशिया कोलाई। इसकी जीवाणु नाशी क्षमता कार्बोलिक अम्ल से 6 गुना अधिक है। नवीनतम शोधों में तुलसी की जीवाणुनाशी सक्रियता अन्यान्य जीवाणुओं के विरुद्ध भी सिद्ध की गई है। डॉ. कौल एवं डॉ. निगम (जनरल ऑफ रिसर्च इन इण्डियन मेडीसिन योगा एण्ड होम्योपैथी-12/1977) के अनुसार तुलसी का उत्पत तेल कल्वेसिला न्यूमोंनी, प्रोंटिस बलेगरिस केन्डीडां एल्बीकेन्स जैसे घातक रोगाणुओं के विरुद्ध भी सक्रिय पाया गया है।
- डॉ. भाट एवं बोरकर के शोध निष्कर्षों के अनुसार (जे.एस.आई.आर.) तुलसी के बीजों में एण्टोकोएगुलेस संघटक होता है, जो स्टेफिलोकोएगुलेस के रक्त में प्रभाव को निरस्त करता है। इनके अतिरिक्त तुलसी के मधुमेह प्रतिरोधी, गर्भ निरोध तथा ज्वरनाशी प्रभावों पर भी विस्तार से वैज्ञानिक अध्ययन चल रहा है। संभावना है कि शास्रोक्त सभी प्रभावों को अगले दिनों प्रयोगशाला में सिद्ध किया जा सकेगा।
- तुलसी एक राम बाण औषधि है। यह प्रकृति की अनूठी देन है। इसकी जड़, तना, पत्तियां तथा बीज उपयोगी होते हैं। रासायनिक द्रव्यों एवं गुणों से भरपूर, मानव हितकारी तुलसी रूखी गर्म उत्तेजक, रक्त शोधक, कफ व शोधहर चर्म रोग निवारक एवं बलदायक होती है। यह कुष्ठ रोग का शमन करती है। इसमें कीटाणुनाशक अपार शक्ति हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि तपेदिक, मलेरिया व प्लेग के कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता तुलसी में विद्यमान है। शरीर की रक्त शुद्धि, विभिन्न प्रकार के विषों की शामक, अग्निदीपक आदि गुणों से परिपूर्ण है तुलसी। इसको छू कर आने वाली वायु स्वच्छता दायक एवं स्वास्थ्य कारक होती है। घरों में हरे और काले पत्तों वाली तुलसी पाई जाती है। दोनों का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। एक वर्ष तक निरंतर इसका सेवन करने से सभी प्रकार के रोग दूर हो सकते हैं। तुलसी का पौधा जिस घर में हो वहा जीवाणु को पनपने नहीं देता, जो की स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते है।
तुलसी का तेल
जड़ सहित तुलसी का हरा भरा पौधा लेकर धो लें, इसे पीसकर इसका रस निकालें। आधा लीटर पानी- आधा लीटर तेल डालकर हल्की आंच पर पकाएं, जब तेल रह जाए तो छानकर शीशी में भर कर रख दें। तेल बन गया। इसे सफेद दाग़ पर लगाएं। इन सब इलाज के लिए धैर्य की ज़रूरत है। कारण ठीक होने में समय लगता है।
सामान्य प्रयोग
- तुलसी की पाँच पत्तियॉं, 2 नग काली मिर्च का चूर्ण, रात को पानी में भीगी हुई 2 नग बादाम का छिलका निकालकर फिर उसकी चटनी बनाकर एक चम्मच शहद के साथ सेवन करें एवं लगभग आधा घण्टा अन्न-जल ग्रहण ना करे।
- तुलसी के पत्तों को साफ़ पानी में उबाल ले उबाले जल को पीने में उपयोग करें। कुल्ला करने में भी इसका उपयोग कर सकते है।
- 2-3 पत्तिया ले और छाछ या दही के साथ सेवन करें। बहुत सारी आयुर्वेदिक कम्पनियां अपने जीवनदायी औषधीयों में तुलसी का उपयोग करती है।
व्यावहारिक प्रयोग
जड़, पत्र, बीज व पंचांग प्रयुक्त करते हैं। मात्रा - स्वरस- 10 से 20 ग्राम । बीज चूर्ण- 1 से 2 ग्राम । क्वाथ-1 से 2 औंस ।
तुलसी का रोगों में उपयोग
गले और साँस की समस्या
- खाँसी अथवा गला बैठने पर तुलसी की जड़ सुपारी की तरह चूसी जाती है।
- श्वांस रोगों में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपारी की तरह मुँह में रखने से आराम मिलता है।
- तुलसी की हरी पत्तियों को आग पर सेंक कर नमक के साथ खाने से खांसी तथा गला बैठना ठीक हो जाता है।
- तुलसी के पत्तों के साथ 4 भुनी लौंग चबाने से खांसी जाती है।
- तुलसी के कोमल पत्तों को चबाने से खांसी और नजले से राहत मिलती है।
- खांसी-जुकाम में - तुलसी के पत्ते, अदरक और काली मिर्च से तैयार की हुई चाय पीने से तुरंत लाभ पहुंचता है।
- 10-12 तुलसी के पत्ते तथा 8-10 काली मिर्च के चाय बनाकर पीने से खांसी जुकाम, बुखार ठीक होता है।
- फेफड़ों में खरखराहट की आवाज़ आने व खाँसी होने पर तुलसी की सूखी पत्तियाँ 4 ग्राम मिश्री के साथ देते हैं।
- काली तुलसी का स्वरस लगभग डेढ़ चम्मच काली मिर्च के साथ देने से खाँसी का वेग एकदम शान्त होता है।
- 10 ग्राम तुलसी के रस को 5 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से हिचकी, अस्थमा एवं श्वांस रोगों को ठीक किया जा सकता है।
- जुकाम में तुलसी का पंचांग व अदरक समान भाग लेकर क्वाथ बनाते हैं। इसे दिन में तीन बार लेते हैं।
- अदरक या सोंठ, तुलसी, कालीमिर्च, दालचीनी थोड़ा-थोडा सबको मिलाकर एक ग्लास पानी में उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो शक्कर नमक मिलाकर पी जाएं। इससे फ्लू, खांसी, सर्दी, जुकाम ठीक होता है।
- तुलसी के पत्ते 10, काली मिर्च 5 ग्राम, सोंठ 15 ग्राम, सिके चने का आटा 50 ग्राम और गुड़ 50 ग्राम, इन सबको पान व अदरक में घोंट लें तथा एक एक ग्राम की गोलियां बना लें।
- शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है।
- नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा में फौरन राहत देता है। जब भी खांसी हो सेवन करें।
- तुलसी व अदरक का रस एक एक चम्मच, शहद एक चम्मच, मुलेठी का चूर्ण एक चम्मच मिलाकर सुबह शाम चाटें, यह खांसी की अचूक दवा है।
- तुलसी के पत्तों का रस, शहद, प्याज का रस और अदरक का रस सभी चाय का एक-एक चम्मच भर लेकर मिला लें। इसे आवश्यकता के अनुसार दिन में तीन-चार बार लें। इससे बलगम बाहर निकल जाता है और रोग ठीक हो जाता है।
- तुलसी दमा टीबी में अत्यंत लाभकारी हैं। तुलसी के नियमित सेवन से दमा, टीबी नहीं होती हैं क्यूँकि यह बीमारी के जम्मेदार कारक जीवाणु को बढ़ने से रोकती हैं। चरक संहिता में तुलसी को दमा की औषधि बताया गया हैं।
- फ्लू रोग तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से ठीक होता है।
- क़रीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ़ करने में मदद करती हैं।
- तुलसी के सूखे पत्ते ना फेंके, ये कफ नाशक के रूप में काम में लाये जा सकते हैं।
ज्वर से जुड़ी समस्या
- ज्वर यदि विषम प्रकार का हो तो तुलसी पत्र का क्वाथ 3-3 घंटे पश्चात् सेवन करने का विधान है। अथवा 3 ग्राम स्वरस शहद के साथ 3-3 घंटे में लें।
- हल्के ज्वर में कब्ज भी साथ हो तो काली तुलसी का स्वरस (10 ग्राम) एवं गौ घृत (10 ग्राम) दोनों को एक कटोरी में गुनगुना करके इस पूरी मात्रा को दिन में 2 या 3 बार लेने से कब्ज भी मिटता है, ज्वर भी।
- तुलसी की जड़ का काढ़ा भी आधे औंस की मात्रा में दो बार लेने से ज्वर में लाभ पहुँचाता है।
- तुलसी के पत्ते का रस 1-2 ग्राम रोज पिएं, बुखार नहीं होगा।
- एक सामान्य नियम सभी प्रकार के ज्वरों के लिए यह है कि बीस तुलसी दल एवं दस काली मिर्च मिलाकर क्वाथ पिलाने से तुरन्त ज्वर उतर जाता है।
- मोतीझरा (टायफाइड) में 10 तुलसी पत्र 1 माशा जावित्री के साथ पानी में पीसकर शहद के साथ दिन में चार बार देते हैं।
- तुलसी, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग, अदरक कूटकर पीसकर एक ग्लास पानी में इतना उबालें कि आधा रह जाए तो उतार कर नमक चीनी में इच्छानुसार डालकर पीयें, फिर ओढ़कर सो जाएं।
- तुलसी सौंठ के साथ सेवन करने से लगातार आने वाला बुखार ठीक होता है।
- तुलसी, अदरक, मुलैठी सबको घोटकर शहद के साथ लेने से सर्दी के बुखार में आराम होता है।
- यदि तुलसी की 11 पत्तियों का 4 खड़ी कालीमिर्च के साथ सेवन किया जाए तो मलेरिया एवं मियादी बुखार ठीक किए जा सकते हैं।
त्वचा रोग से जुड़ी समस्या
- औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है। जिससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। इसकी पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नींबू का रस मिलायें और रात को चेहरे पर लगाये तो झाइयां नहीं रहती, फुंसियां ठीक होती है और चेहरे की रंगत में निखार आता है।
- दाद व एक्जिमा रोग में इसके पौधे की मिट्टी की पट्टी एक से डेढ़ घंटे तक बांधी जाती है।
- दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है।
- नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
- कुष्ठरोग में - तुलसी की जड़ को पीसकर, सोंठ मिलाकर जल के साथ प्रात: पीने से कुष्ठ रोग निवारण का लाभ मिलता है।
- कुष्ठ रोग या कोढ में तुलसी की पत्तियां रामबाण सा असर करती हैं। खायें तथा रस प्रभावित स्थान पर मलें भी।
- कुष्ठ रोग में तुलसी पत्र स्वरस प्रतिदिन प्रातः पीने से लाभ होता है।
- तुलसी के पत्तों का रस एक्जिमा पर लगाने, पीने से एक्जिमा में लाभ मिलता है।
- दाद, छाज व खाज में तुलसी पंचांग नींबू के रस में मिलाकर लेप करते हैं।
- उठते हुए फोड़ों में तुलसी के बीज एक माशा तथा दो गुलाब के फूल एक साथ पीसकर ठण्डाई बनाकर पीते है।
- पित्ती निकलने पर मंजरी व पुनर्नवा की पत्ती समान भाग लेकर क्वाथ बनाकर पिएँ।
- चेहरे के मुँहासों में तुलसी पत्र एवं संतरे का रस मिलाकर रात्रि को चेहरा धोकर अच्छी तरह से लेप करते है।
- व्रणों को शीघ्र भरने तथा संक्रमण ग्रस्त जख्मों को धोने के लिए तुलसी के पत्तों का क्वाथ बनाकर उसका ठण्डा लेप करते हैं।
- रक्त विकारों में तुलसी व गिलोय का तीन-तीन माशे की मात्रा में क्वाथ बनाकर दो बार मिश्री के साथ लेते हैं।
- तुलसी पत्रों को पीसकर चेहरे पर उबटन करने से चेहरे की आभा बढ़ती है।
वमन
- वमन की स्थिति में तुलसी पत्र स्वरस मधु के साथ प्रातःकाल व जब आवश्यकता हो पिलाते हैं। पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए, अपच रोगों के लिए तथा बालकों के यकृत प्लीहा संबंधी रोगों के लिए तुलसी के पत्रों का फाण्ट पिलाते हैं। छोटी इलायची, अदरक का रस व तुलसी के पत्र का स्वरस मिलाकर देने पर उल्टी की स्थिति को शान्त करते हैं। दस्त लगने पर तुलसी पत्र भुने जीरे के साथ मिलाकर (10 तुलसीदल + 1 माशा जीरा) शहद के साथ दिन में तीन बार चाटने से लाभ मिलता है।
- तुलसी के चार-पांच ग्राम बीजों का मिश्री युक्त शर्बत पीने से आंव ठीक रहता है। तुलसी के पत्तों को चाय की तरह पानी में उबाल कर पीने से आंव (पेचिस) ठीक होती है। अपच में मंजरी को काले नमक के साथ देते हैं। बवासीर रोग में तुलसी पत्र स्वरस मुँह से लेने पर तथा स्थानीय लेप रूप में तुरन्त लाभ करता है। अर्श में इसी चूर्ण को दही के साथ भी दिया जाता है।
संक्रामक अतिसार
बालकों के संक्रामक अतिसार रोगों में तुलसी के बीज पीसकर गौ दुग्ध में मिलाकर पीने से लाभ होता है। प्रवाहिका में मूत्र स्वरस 10 ग्राम प्रातः लेने पर रोग आगे नहीं बढ़ता। कृमि रोगों में तुलसी के पत्रों का फाण्ट सेवन करने से कृमिजन्य सभी उपद्रव शान्त हो जाते हैं। उदर शूल में तुलसी दलों को मिश्री के साथ देते हैं तथा संग्रहणी में बीज चूर्ण 3 ग्राम सुबह-शाम मिश्री के साथ। बच्चों में बुखार, खांसी और उल्टी जैसी सामान्य समस्याओं में तुलसी बहुत फ़ायदेमंद है।
सिर का दर्द
सिर के दर्द में प्रातः काल और शाम को एक चौथाई चम्मच भर तुलसी के पत्तों का रस, एक चम्मच शुद्ध शहद के साथ नित्य लेने से 15 दिनों में रोग पूरी तरह ठीक हो सकता है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है। मेधावर्धन हेतु तुलसी के पाँच पत्ते जल के साथ प्रतिदिन प्रातः निगलना चाहिए। असाध्य शिरोशूल में तुलसी पत्र रस कपूर मिलाकर सिर पर लेप करते हैं, तुरन्त आराम मिलता है।
आंखों की समस्या
तुलसी का रस आँखों के दर्द, रात्रि अंधता जो सामान्यतः विटामिन ‘ए‘ की कमी से होता है के लिए अत्यंत लाभदायक है। आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए। श्याम तुलसी (काली तुलसी) पत्तों का दो-दो बूंद रस 14 दिनों तक आंखों में डालने से रतौंधी ठीक होती है। आंखों का पीलापन ठीक होता है। आंखों की लाली दूर करता है। तुलसी के पत्तों का रस काजल की तरह आंख में लगाने से आंख की रोशनी बढ़ती है।
- तुलसी के हरे पत्तों का रस (बिना पानी में डाले) गर्म करके सुबह शाम कान में डालें, कम सुनना, कान का बहना, दर्द सब ठीक हो जाता है। तुलसी के रस में कपूर मिलाकर हल्का गर्म करके कान में डालने से कान का दर्द तुरंत ठीक हो जाता है। कनपटी के दर्द में तुलसी की पत्तियों का रस मलने से बहुत फ़ायदा होता है।
मुंह का संक्रमण
अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फ़ायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है। तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ़ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह ख़ासा कारगर साबित होती है। मुख रोगों व छालों में तुलसी क्वाथ से कुल्ला करें एवं दँतशूल में तुलसी की जड़ का क्वाथ बनाकर उसका कुल्ला करें।
- संधिशोध में अथवा गठिया के दर्द में तुलसी के पंचाग (जड़, पत्ती, डंठल, फल, बीज) का चूर्ण बनाएं। बराबर का पुराना गुड़ मिलाकर 12-12 ग्राम की गोलियां बना लें। सुबह शाम गौ दूध या बकरी के दूध से 1-12 गोली खालें। गठिया व जोड़ों का दर्द में लाभ होता है। सियाटिका रोग में तुलसी पत्र क्वाथ से रोग ग्रस्त वात नाड़ी का स्वेदन करते हैं। तुलसी व अदरक का रस 5-5 ग्राम की मात्रा मे सेवन करने से थोड़े ही दिनों में हड्डी में गैस की समस्या हल हो जाती है। जोड़ों में दर्द हो तो तुलसी का रस पियें। तुलसी के सेवन से टूटी हड्डियां शीघ्रता से जुड़ जाती हैं।
गुर्दे का रोग
मूत्रकृच्छ (डिसयूरिया-पेशाब में जलन, कठिनाई) में तुलसी बीज 6 ग्राम रात्रि 150 ग्राम जल में भिगोकर इस जल का प्रातः प्रयोग करते हैं। तुलसी स्वरस को मिश्री के साथ सुबह-शाम लेने से भी जलन में आराम मिलता है। तुलसी गुर्दे को मज़बूत बनाती है। किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया जूस (तुलसी के अर्क) शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाता है।
- धातु दौर्बल्य में तुलसी के बीज एक माशा, गाय के दूध के साथ प्रातः एवं रात्रि को देते हैं । ऐसा अनुभव है कि नपुसंकता में तुलसी बीज चूर्ण अथवा मूल सम भाग में पुराने गुड़ के साथ मिलाने पर तथा नित्य डेढ़ से तीन ग्राम की मात्रा में गाय के दूध के साथ 5-6 सप्ताह तक लेने से लाभ होता है।
स्त्री रोग
यदि मासिक धर्म ठीक से नहीं आता तो एक ग्लास पानी में तुलसी बीज को उबाले, आधा रह जाए तो इस काढ़े को पी जाएं, मासिक धर्म खुलकर होगा। मासिक धर्म के दौरान यदि कमर में दर्द भी हो रहा हो तो एक चम्मच तुलसी का रस लें। प्रदर रोग में अशोक पत्र के स्वरस के साथ मासिक धर्म की पीड़ा में बार-बार देने से लाभ होता है। तुलसी का रस 10 ग्राम चावल के माड़ के साथ पिए सात दिन। प्रदर रोग ठीक होगा। इस दौरान दूध भात ही खाएं। तुलसी के बीज पानी में रात को भिगो दें। सुबह मसलकर छानकर मिश्री में मिलाकर पी जाएं। प्रदर रोग ठीक होगा।
- विविध-विभिन्न प्रकार अर्बुदों में (कैंसर) तुलसी के प्रयोग किए गए हैं। 25 या इससे अधिक ताजे पत्ते पीसकर नित्य पिलाने पर उनकी वृद्धि की गति रुकती है। इस कथन की सत्यता की परीक्षा हेतु शोध अनिवार्य है।
हृदय रोग
जाड़ों में तुलसी के दस पत्ते, पांच काली मिर्च और चार बादाम गिरी सबको पीसकर आधा गिलास पानी में एक चम्मच शहद के साथ लेने से सभी प्रकार के हृदय रोग ठीक हो जाते हैं। तुलसी की 4-5 पत्तियां, नीम की दो पत्ती के रस को 2-4 चम्मच पानी में घोट कर पांच-सात दिन प्रातः ख़ाली पेट सेवन करें, उच्च रक्तचाप ठीक होता है। दिल की बीमारी में यह वरदान साबित होती है यह ख़ून में कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करता है।
घाव, चोट और फोङा-फुंसी
- तुलसी के पत्ते पीसकर जख्मों पर लगाने से रक्त मवाद बंद हो जाता है।
- तुलसी के रस को नारियल के तेल को समान भाग में लें और उन्हें एक साथ धीमी आंच पर पकाएं। जब तेल रह जाए तो इसे रख लें। इसे फोड़े, फुंसी पर लगाएं।
- तुलसी के बीजों को पीसकर गर्म करके घाव में भर दें लाभ होगा।
- तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण बना कर घाव में भर दें, कीड़े मर जाएंगे।
- छाया में सुखाई तुलसी की पत्तियां इसमें फिटकरी महीन पीस लें, कपड़े से छानकर ताजे घाव पर लगाएं, घाव शीघ्र भर जाएगा।
- तुलसी तथा कपूर का चूर्ण घाव में लगाने से घाव शीघ्र सूख जाता है।
- यदि अधिक चोट लगी हो और अधिक ख़ून बह रहा हो तो तुलसी के 20 पत्तों को पीसकर एक चम्मच शहद में मिलाकर चाटने से बहता ख़ून रुक जाता है।
ज़हरीले जीव से जुड़ी समस्या
- ज़हरीले जीव सांप, ततैया, बिच्छू के काटने पर तुलसी पत्तों का रस उस स्थान पर लगाने से आराम मिलता है।
- तुलसी का रस शरीर पर मलकर सोयें, मच्छरों से छुटकारा मिलेगा। मलेरिया मच्छर का दुश्मन है तुलसी का रस।
- तुलसी के बीज खाने से विष का असर नहीं होता।
- तुलसी की पत्तियां अफीम के साथ खरल करके चूहे के काटे स्थान पर लगाने से चूहे का विष उतर जाता है।
- किसी के पेट में यदि विष चला गया हो तो तुलसी का पत्र जितना पी सके पिये, विष दोष शांत हो जाता है।
- तुलसी के प्रत्येक हिस्से को सर्प विष में उपयोगी पाया गया है। सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति को यदि समय पर तुलसी का सेवन कराया जाए तो उसकी जान बच सकती है। जिस स्थान पर काटा हो उस पर तुलसी की जड़ को मक्खन या घी में घिसकर उस पर लेप कर देना चाहिए जैसे-जैसे ज़हर खिंचता चला जाता है इस लेप का रंग सफ़ेद से काला हो जाता है। काली परत को हटाकर फिर ताजा लेप कर देना चाहिए।
- बिच्छूदंश में तुलसी स्वरस सिर की तरफ से पैर की तरफ मलने से तथा तुलसी पत्र को चौगुने जल में घोंटकर पाँच-पाँच मिनट में पिलाने से पीड़ा शान्त होती है।
- तुलसी के पौधों से प्रभावित क्षेत्र से विषकारक कीड़े-मकोड़े दूर भागते हैं।
अन्य समस्या में लाभ
- प्रातःकाल ख़ाली पेट 2-3 चम्मच तुलसी के रस का सेवन करें तो शारीरिक बल एवं स्मरण शक्ति में वृद्धि के साथ-साथ आपका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होगा।
- शरीर के वजन को नियंत्रित रखने हेतु तुलसी अत्यंत गुणकारी है। इसके नियमित सेवन से भारी व्यक्ति का वजन घटता है एवं पतले व्यक्ति का वजन बढ़ता है यानी तुलसी शरीर का वजन आनुपातिक रूप से नियंत्रित करती है।
- तुलसी के रस की कुछ बूँदों में थोड़ा-सा नमक मिलाकर बेहोश व्यक्ति की नाक में डालने से उसे शीघ्र होश आ जाता है।
- चाय बनाते समय तुलसी के कुछ पत्ते साथ में उबाल लिए जाएँ तो सर्दी, बुखार एवं मांसपेशियों के दर्द में राहत मिलती है।
- तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। हाल में हुए शोधों से पता चला है कि तुलसी तनाव से बचाती है। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।
- कभी-कभी किसी व्यक्ति में अधिक उत्तेजन (पागलपन) आ जाता है, ऐसे में लगातार तुलसी की पत्तियां सूंघे, मसलकर चबाएं, इसके रस को लें, सारे शरीर पर लगाएं, इससे पागलपन की उत्तेजना ठीक होने में लाभ मिलता है।
- प्रदूषण में तुलसी सेवन करने से छुटकारा मिलता है। यह प्रदूषण जन्य रोगों से सुरक्षित रखती है।
- तुलसी की माला पहनने से टांसिल नहीं होता।
- तुलसी के रस में शहद मिलाकर नियमित थोड़े दिनों तक लेते रहने से मेधा शक्ति बढ़ती है, यह एक प्रकार का टॉनिक है।
- तुलसी की पिसी पत्तियों में एक चम्मच शहद मिलाकर नित्य एक बार पीने से आप निरोगी रहेंगे, गालों में चमक आएगी।
- तुलसी के पत्तों का दो तीन चम्मच रस प्रातः ख़ाली पेट लेने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
- पानी में तुलसी के पत्ते डालकर रखने से यह पानी टॉनिक का काम करता है।
- जब दूषित पानी पीने से पेट में कृमि हो जाये तो जल की शुद्धता के लिए तुलसी के पत्ते जल पात्र में डालिए और कम से कम एक सवा घंटे रखिए। कपड़े से पात्र के जल को छानते हुए जल में डाले गये पत्तों को भी छान लीजिए तब यह पानी पीने लायक़ शुध्द हो जाता है।
- तुलसी भोजन को शुद्ध करती है, इसी कारण ग्रहण लगने के पहले भोजन में डाल देते हैं जिससे सूर्य या चंद्र की विकृत किरणों का प्रभाव भोजन पर नहीं पड़ता।
- खाना बनाते समय सब्जी पुलाव आदि में तुलसी के रस का छींटा देने से खाने की पौष्टिकता व महक दस गुना बढ़ जाती है।
- तुलसी रक्त अल्पता के लिए रामबाण दवा है। नियमित सेवन से हीमोग्लोबीन तेज़ीसे बढ़ता है, स्फूर्ति बनी रहती है।
- तुलसी की सेवा अपने हाथों से करें, कभी चर्म रोग नहीं होगा।
- ज्वर व वमन में - तुलसी पत्र कालीमिर्च के साथ पीसकर पिलाने से वमन तथा ज्वर में शीघ्र आसान होता है।
- इसके पत्तों को या किसी भी अंग को सुखाना हो तो छाया में सुखाएं।
- तुलसी वातावरण को भी स्वच्छ बनने में भी मदद करती हैं। तुलसी के रस में प्रोटोजोवा और मच्छर को नष्ट करने की शक्ति पाई जाती हैं। हमें अपने घर के आगे एक तुलसी का पौधा अवश्य लगाने चाहिए। ताकि वहॉ मच्छर न हो और हमें रोगों का सामना न करना पड़े।
- बच्चों की आम बीमारियों जैसे सर्दी, बुखार, उल्टी दस्त आदि में तुलसी का रस लाभदायक है। यदि चिकनपॉक्स (माता) हो गया हो तो केसर के साथ तुलसी पत्र लेने से शीघ्र आराम मिलता है।
- बच्चों के रोग- तुलसी के पत्तों से रस निकाल लें और उसमें मिश्री घोलकर रोज सुबह दें। इससे बच्चों को उल्टी, दस्त, खांसी, जुकाम, सर्दी आदि रोगों से आराम मिलता है।
- पक्षाघात (लकवा) - आवश्यकतानुसार तुलसी के पत्ते और थोड़ा सा सेंधा नमक पीस लें। इसे दही में भली प्रकार मिलाएं और रोगग्रस्त अंग पर लेप करें। जल में तुलसी के पत्ते (एक बार में 25) उबालें और रोगग्रस्त अंग को उसकी भाप दें।
- तुलसी के बीज (मंजरी) पीसकर खाने से स्तम्भन होता है और पौष्टिकता प्राप्त होती है।
- एक छोटा पौधा जिसे वैष्णव धर्मावलंबी अत्यंत पवित्र मानते और पूजा में इसकी पत्तियों का उपयोग करते हैं।
- प्रात:काल इसमें जल चढ़ाते और सायं काल इसके नीचे दिया जलाते हैं।
- वह अपने पतिव्रत धर्म के कारण विष्णु के लिए भी वंदनीय थी।
उपयोग में सावधानियाँ
- तुलसी की प्रकृति गर्म है, इसलिए गर्मी निकालने के लिये इसे दही या छाछ के साथ लें, इसकी उष्ण गुण हल्के हो जाते हैं।
- तुलसी अंधेरे में ना तोड़ें, शरीर में विकार आ सकते हैं। कारण अंधेरे में इसकी विद्युत लहरें प्रखर हो जाती हैं।
- तुलसी के सेवन के बाद दूध भूलकर भी ना पियें, चर्म रोग हो सकता है।
- तुलसी रस को अगर गर्म करना हो तो शहद साथ में ना लें। कारण गर्म वस्तु के साथ शहद विष तुल्य हो जाता है।
- तुलसी के साथ दूध, मूली, नमक, प्याज, लहसुन, मांसाहार, खट्टे फल ये सभी का सेवन करना हानिकारक है।
- तुलसी के पत्ते दांतो से चबाकर ना खायें, अगर खायें हैं तो तुरंत कुल्ला कर लें। कारण इसका अम्ल दांतों के एनेमल को ख़राब कर देता है।
- फायदे को देखते हुए एक साथ अधिक मात्रा में ना लें।
- बिना उपयोग तुलसी के पत्तों को तोड़ना उसे नष्ट करने के बराबर है।
प्राकृतिक महत्त्व
जिस घर में तुलसी का पौधा लहलहा रहा हों वहां आकाशीय बिजली का प्रकोप नहीं होता। घर बनाते समय नींव में घड़े में हल्दी से रंगे कपड़े में तुलसी की जड़ रखने से उस घर पर बिजली गिरने का डर नहीं होता। तुलसी का पौधा जहां लगा हो वहा आसपास सांप बिच्छू जैसे ज़हरीले जीव नहीं आते। तुलसी का पौधा दिन रात आक्सीजन देता है, प्रदूषण दूर करता है। तुलसी के पौधे का वातावरण में अनुकूल प्रभाव पड़ता है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि प्रत्येक घर में एक तुलसी का पौधा ज़रूर हो समाजसेवा का इससे अच्छा, सुलभता, सुगमता और निशुल्क उपलब्ध होने वाला और क्या उपाय हो सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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