प्रदूषण

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वायु प्रदूषण

प्रदूषण का अर्थ है- "प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य पदार्थ मिलना और न ही शांत वातावरण का मिलना। विज्ञान के इस युग में मानव को जहाँ कुछ वरदान मिले है, वहीं कुछ अभिशाप भी मिले हैं। 'प्रदूषण' एक ऐसा अभिशाप हैं, जो विज्ञान की गर्भ में से जन्मा हैं और आज जिसे सहने के लिए विश्व की अधिकांश जनता मजबूर हैं। पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया तथा आधुनिकता का महत्वपूर्ण योगदान है। यहाँ तक मानव की वे सामान्य गतिविधियाँ भी प्रदूषण कहलाती हैं, जिनसे नकारात्मक फल मिलते हैं। उदाहरण के लिए उद्योग द्वारा उत्पादित नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषक हैं। हालाँकि उसके तत्व प्रदूषक नहीं हैं। यह सूर्य की रोशनी की ऊर्जा है, जो कि उसे धुएँ और कोहरे के मिश्रण में बदल देती है।

व्याख्या

दूसरे शब्दों में प्रदूषण का अर्थ है, वातावरण में दूशकों का घुलना, चाहे उनका जो भी पूर्व-निर्धारित या परस्पर सहमत अनुपात या सन्दर्भ के प्रारूप रहे हों। ये प्रदूषक भौतिक प्रणाली या उनमें रहने वाले जीव-जन्तुओं में अस्थिरता, हानि और परेशानी उत्पन्न करते हैं। समाज के शैशव काल में मानव तथा प्रकृति के मध्य एकात्मकता थी। मानव पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर था और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति प्रकृति से करता था। उस समय प्रकृति मानव की मित्र थी और मानव प्रकृति का। जैसे-जैसे मनुष्य अपने तथा अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति को अपना दायित्व समझने लगा, उसने स्वयं के अस्तित्व के लिए दूसरों की उपेक्षा करना प्रारंभ किया, जिससे दुश्मनी, स्वार्थ, वैमनस्य तथा प्रलोभन ने उसके जीवन में प्रवेश किया। उसने भूख एवं आत्मरक्षा के लिए विभिन्न तरीके खोज निकाले। बाद के समय मे मानव भूख और आत्मरक्षा के अतिरिक्त सुख-सुविधा तथा आमोद प्रमोद के लिए भी प्रयत्न करने लगा। यहीं से उसके भ्रष्ट होने की शुरुआत हुई और वह प्रकृति तथा पर्यावरण की उपेक्षा करने लगा। अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए वह पर्यावरण को हानि पहुँचाने से भी नहीं झिझका, किन्तु उस दौर में भी मानव जो दूषित घटक पर्यावरण में छोड़ता था, वह उसकी आवश्यक प्रतिक्रिया थी। जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ, उसने आस-पास के वातावरण को प्रदूषित करने में कोई कमी नहीं की।

प्राकृतिक घटकों का निर्माण

19वीं शताब्दी के प्रथम चरण में सन 1928 में जब वोलर ने प्रयोगशाला में एक प्राकृतिक घटक यूरिया को रासायनिक क्रिया द्वारा उत्पन्न किया, तब से प्राकृतिक घटकों को प्रयोगशाला में उत्पन्न करने की होड़ शुरू हो गई। इन कृत्रिम रूप से उत्पन्न पदार्थों के प्रयोग से कुछ न कुछ हानिकारक विषैले पदार्थ उत्पन्न होते थे, जिनके प्राकृतिक स्रोत, जल तथा वायु में मिलने से जल तथा वायु प्रदूषित हुए। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में सर जेम्स वाट द्वारा वाष्प युग का सूत्रपात हुआ। मशीनीकरण से औद्यौगिक क्रान्ति हुई, जो प्रदूषण के लिए काफ़ी हद तक जिम्मेदार है।

प्रकार

प्रदूषण को सामान्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. भौतिक प्रदूषण या पर्यावरणीय प्रदूषण
  2. सामाजिक प्रदूषण

पर्यावरणीय प्रदूषण

1960 के दशक के पहले पर्यावरण में प्रदूषण की समस्या का महत्व न तो राष्ट्रीय स्तर और न ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर था, किंतु आज प्रदूषण की समस्या इतनी जटिल हो गयी है कि मनुष्य भविष्य में अपने अस्तित्व के लिए चिंतित है। ज्ञातव्य है कि सभी जीवधारी अपनी वृद्धि एवं विकास के लिए तथा सुव्यवस्थित रूप से अपना जीवन चक्र चलाने के लिए संतुलित पर्यावरण पर निर्भर करते हैं। संतुलित पर्यावरण में प्रत्येक घटक एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में उपस्थित होते हैं, परंतु कभी-कभी पर्यावरण में एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा या तो आवश्यकता से बहुत अधिक बढ़ जाती है अथवा पर्यावरण में हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है। इस स्थिति में पर्यावरण दूषित हो जाता है तथा जीवधारियों के लिए किसी न किसी रूप में हानिकारक सिद्ध होता है। पर्यावरण में इस अनचाहे परिवर्तन को पर्यावरणीय प्रदूषण कहते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण फैलाने वाले 10 देशों की सूची में भारत को भी शामिल किया गया है। ऑस्ट्रेलिया में तैयार की गई इस रिपोर्ट में भारत को सातवाँ स्थान दिया गया है, जबकि ब्राजील को प्रदूषण के मामले में पहले नंबर पर रखा गया है। ऑस्ट्रेलिया में 'एडिलेड विश्वविद्यालय' के पयार्वरण संस्थान के प्रोफेसर कोरी ब्रैडशॉ द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में भारत को सातवाँ स्थान दिया गया है जबकि ब्राजील के बाद कार्बन उत्सर्जन करने वाले अग्रणी देशों में अमेरिका एवं चीन शामिल हैं। नए अध्ययन के मुताबिक़ सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले देशों की सूची में ब्राजील, अमेरिका, चीन, इंडोनेशिया, जापान, मेक्सिको, भारत, रूस, ऑस्ट्रेलिया और पेरु शामिल हैं। जल प्रदूषण, कार्बन उत्सर्जन और जीव-जंतुओं को खतरा जैसे प्रमुख मुद्दों को शामिल कर इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। अध्ययन को विज्ञान की एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। ब्रैडशॉ के मुताबिक़ प्रदूषण फैलाने वाले 10 देशों में अमेरिका और चीन का शामिल होना आश्चर्यजनक बात नहीं है। फिर भी इस बात को लेकर लोग आश्चर्यचकित थे कि सामान्य तौर पर एक ग़रीब देश ब्राजील ने इस रिपोर्ट में शीर्ष स्थान हासिल किया है। उन्होंने कहा कि आप जितना ही धनी होंगे, पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुँचाएंगे। यह सिर्फ मानव का स्वभाव मात्र है।[1]

भौतिक या पर्यावरणीय प्रदूषण के प्रकार

जल प्रदूषण

जल प्रदूषण

जल में किसी बाहरी पदार्थ की उपस्थिति, जो जल के स्वाभाविक गुणों को इस प्रकार परिवर्तित कर दे कि जल स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो जाए या उसकी उपयोगिता कम हो जाए जल प्रदूषण कहलाता है। अन्य शब्दों में ऐसे जल को नुकसानदेह तथा लोक स्वास्थ्य को या लोक सुरक्षा को या घरेलू, व्यापारिक, औद्योगिक, कृषीय या अन्य वैद्यपूर्ण उपयोग को या पशु या पौधों के स्वास्थ्य तथा जीव-जन्तु को या जलीय जीवन को क्षतिग्रस्त करें, जल प्रदूषण कहलाता है। जो वस्तुएं एवं पदार्थ जल की शुद्धता एवं गुणों को नष्ट करते हों, प्रदूषक कहलाते हैं। कभी-कभी भूस्खलन के दौरान खनिज पदार्थ, पेड़-पौधों की पत्तियाँ जल में मिलती है। जिससे जल प्रदूषण होता है। इसके अतिरिक्त नदियाँ, झरनों, कुओं, तालाबों का जल जिन स्थानों से बहकर आता है या इकठ्ठा रहता है, वहाँ की भूमि में यदि खनिज की मात्रा है तो वह जल में मिल जाती है। वैसे तो इसका कोई गम्भीर प्रभाव नहीं होता परंतु यदि जल में इसकी मात्रा बढ़ जाती है तो नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। यही कारण है कि किसी क्षेत्र विशेष में एक बीमारी से बहुत से लोग पीड़ित होते हैं क्योंकि उस क्षेत्र विशेष के लोग एक जैसे प्राकृतिक रूप से प्रदूषित जल का उपयोग करते हैं।

वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण

वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है, जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.03 प्रतिशत कार्बन डाइ ऑक्साइड पाया जाता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, आर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओज़ोन तथा जल वाष्प होती है। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्रा उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अन्तर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन ज़रूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है, तो ऐसी वायु को प्रदूषित वायु तथा इस प्रकार के प्रदूषण को वायु प्रदूषण कहते हैं।

ध्वनि प्रदूषण

जब ध्वनि की तीव्रता अधिक हो जाती है तो वह कानों को अप्रिय लगने लगती है। इस अवांछनीय अथवा उच्च तीव्रता वाली ध्वनि को शोर कहते हैं। शोर से मनुष्यों में अशान्ति तथा बेचैनी उत्पन्न होती है। साथ ही साथ कार्यक्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः शोर वह अवांक्षनीय ध्वनि है जो मनुष्य को अप्रिय लगे तथा उसमें बेचैनी तथा उद्विग्नता पैदा करती हो। पृथक-पृथक् व्यक्तियों में उद्विग्नता पैदा करने वाली ध्वनि की तीव्रता अलग-अलग हो सकती है। वायुमंडल में अवांछनीय ध्वनि की मौजूदगी को ही 'ध्वनि प्रदूषण' कहा जाता है। ध्वनि प्रदूषण (शोर) का मानव जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। लगातार शोर में रहने पर मानसिक तनाव, कुंठा, चिड़चिड़ापन, बोलने में व्यवधान, बैचैनी, नींद की कमी आदि समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जो मानव जीवन को प्रभावित करती हैं। जिन मज़दूरों को अधिक शोर मे काम करना होता है वे हृदय रोग, शारीरिक शिथिलता, रक्तचाप आदि अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते है। शोर से हार्मोन सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं जिनसे शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन हो जाते हैं।

भूमि प्रदूषण

भूमि प्रदूषण

भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में कोई ऐसा अवांछनीय परिवर्तन जिसका प्रभाव मानव तथा अन्य जीवों पर पड़े या जिससे भूमि की गुणवत्त तथा उपयोगित नष्ट हो, 'भूमि प्रदूषण' कहलाता है। इसके अन्तर्गत घरों के कूड़ा-करकट के अन्तर्गत झाड़न-बुहारन से निकली धूल, रद्दी, काँच की शीशीयाँ, पालीथीन की थैलियाँ, प्लास्टिक के डिब्बे, अधजली लकड़ी, चूल्हे की राख, बुझे हुए, अंगारे आदि शामिल हैं। रसोईधरो के अपशिष्टों में सब्जियों एवं दालों के छिलके आदि शामिल हैं। घरेलू अपशिष्टों मे पालीथीन आजकल भूमि प्रदूषण का मुख्य कारण बन गई है। इसका वैज्ञानिक नाम पॉली एथिलीन है जो छोटे-छोटे अणुओ कड़ियों से बनी विशाल संरचना है। इन अणुओं के बंधन इतने जटिल हैं कि ये बड़ी मुश्किल से टूटते हैं। इस कारण पालीथीन मिट्टी के नीचे दबने के बाद भी वर्षों तक विघटित नहीं होती है। पालीथीन बैगों को जानवरों द्वारा खा लिए जाने के कारण यह उनकी आंतों में फँस जाता है तथा उनकी मृत्यु का कारण बनता है। पालीथीन को जलाकर नष्ट किया जाना भी मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है, क्योंकि जलाने पर इससे जहरीली गैस निकलती है।

सामाजिक प्रदूषण

सामाजिक प्रदूषण का उद्भव भौतिक एवं सामाजिक कारणों से होता है। इसे निम्न उपभागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. जनसंख्या प्रस्फोट
  2. सामाजिक प्रदूषण (जैसे सामाजिक एवं शैक्षिक पिछड़ापन, अपराध, झगड़ा फसाद, चोरी, डकैती आदि।)
  3. सांस्कृतिक प्रदूषण
  4. आर्थिक प्रदूषण (जैसे ग़रीबी)

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • वायुमण्डल में कार्बन डाई ऑक्साइड का होना भी प्रदूषण का एक बड़ा कारण है, यदि वह धरती के पर्यावरण में अनुचित अन्तर पैदा करता है।
  • 'ग्रीन हाउस' प्रभाव पैदा करने वाली गैसों में वृद्धि के कारण भू-मण्डल का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है, जिससे हिमखण्डों के पिघलने की दर में वृद्धि होगी तथा समुद्री जलस्तर बढ़ने से तटवर्ती क्षेत्र, जलमग्न हो जायेंगे। हालाँकि इन शोधों को पश्चिमी देश विशेषकर अमेरिका स्वीकार नहीं कर रहा है।
  • प्रदूषण के मायने अलग-अलग सन्दर्भों से निर्धारित होते हैं। परम्परागत रूप से प्रदूषण में वायु, जल, रेडियोधर्मिता आदि आते हैं। यदि इनका वैश्विक स्तर पर विश्लेषण किया जाये तो इसमें ध्वनि, प्रकाश आदि के प्रदूषण भी सम्मिलित हो जाते हैं।
  • गम्भीर प्रदूषण उत्पन्न करने वाले मुख्य स्रोत हैं- रासायनिक उद्योग, तेल रिफायनरीज़, आणविक अपशिष्ट स्थल, कूड़ा घर, प्लास्टिक उद्योग, कार उद्योग, पशुगृह, दाहगृह आदि।
  • आणविक संस्थान, तेल टैंक, दुर्घटना होने पर बहुत गम्भीर प्रदूषण पैदा करते हैं।
  • कुछ प्रमुख प्रदूषक क्लोरीनेटेड, हाइड्रोकार्बन्स, भारी तत्व लैड, कैडमियम, क्रोमियम, जिंक, आर्सेनिक, बैनजीन आदि भी प्रमुख प्रदूषक तत्व हैं।
  • प्राकृतिक आपदाओं के पश्चात् भी प्रदूषण उत्पन्न हो जाता है। बड़े-बड़े समुद्री तूफानों के पश्चात् जब लहरें वापिस लौटती हैं तो कचरे, कूड़े, टूटी नाव-कारें, समुद्र तट सहित तेल कारखानों के अपशिष्ट म्यूनिसपैल्टी का कचरा आदि बहाकर ले जाती हैं। समुद्र में आने वाली 'सुनामी' के पश्चात् किये गये अध्ययन से पता चलता है कि तटवर्ती मछलियों में भारी तत्वों का प्रतिशत बहुत बढ़ गया था।
  • प्रदूषक विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं। जैसे कैंसर, इलर्जी, अस्थमा, प्रतिरोधक बीमारियाँ आदि। जहाँ तक कि कुछ बीमारियों को उन्हें पैदा करने वाले प्रदूषक का ही नाम दे दिया गया है, जैसे- मरकरी यौगिक से उत्पन्न बीमारी को 'मिनामटा' कहा जाता है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जलवायु प्रदूषण फैलाने वाले 10 देशों में भारत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 अक्टूबर, 2013।
  2. प्रदूषण क्या है? (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 अक्टूबर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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