धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी। बेद तत्त्व नृप तव सुत चारी॥ |
- भावार्थ-
गुरु ने हृदय में विचार कर ये नाम रखे (और कहा -) हे राजन! तुम्हारे चारों पुत्र वेद के तत्त्व (साक्षात परात्पर भगवान) हैं। जो मुनियों के धन, भक्तों के सर्वस्व और शिव के प्राण हैं, उन्होंने (इस समय तुम लोगों के प्रेमवश) बाल लीला के रस में सुख माना है।
धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख