नियोग प्रथा
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नियोग | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- नियोग (बहुविकल्पी) |
मनुस्मृति में पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत आचरण प्रायश्चित् के भागी होते हैं। हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए। इसी विधि द्वारा महाभारत में वेद व्यास के नियोग से अम्बिका तथा अम्बालिका को क्रमशः धृतराष्ट्र तथा पाण्डु उत्पन्न हुये थे।
नियोग प्रथा के नियम
- कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए।
- नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका धर्म यही होगा कि वह उस स्त्री को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है।
- इस प्रथा से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा, नियुक्त व्यक्ति का नहीं।
- नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा।
- इस प्रथा का दुरूपयोग न हो, इसलिए पुरुष अपने जीवन काल में केवल तीन बार नियोग का पालन कर सकता है।
- इस कर्म को धर्म का पालन समझा जायेगा और इस कर्म को करते समय नियुक्त पुरुष और पत्नी के मन में केवल धर्म ही होना चाहिए, वासना और भोग-विलास नहीं। नियुक्त पुरुष धर्म और भगवान के नाम पर यह कर्म करेगा और पत्नी इसका पालन केवल अपने और अपने पति के लिए संतान पाने के लिए करेगी।
- नियोग में शरीर पर घी का लेप लगा देते हैं ताकि पत्नी और नियुक्त पुरुष के मन में वासना जागृत न हो।
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