निर्मला शुक्ला

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निर्मला शुक्ला

निर्मला शुक्ला (अंग्रेज़ी: Nirmala Shukla) - की गणना छत्तीसगढ़ (भारत) की प्रतिभाशाली महिलाओं में होती है। उनका जन्म रायपुर के दीवान परिवार में हुआ था और विवाह 1957 में हुआ। अपनी जीविकोपार्जन हेतु निर्मला का परिवार 1974 में कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका में आकर बस गया था। यहाँ निर्मला ने अपने पति की प्रेरणा से एक संस्थान में कंप्यूटर-प्रशिक्षण के लिए प्रवेश ले लिया। यहाँ से कंप्यूटर-ट्रेनिंग पूरी कर उन्होंने डिप्लोमा हासिल किया। इसके कुछ समय बाद 1978 में उन्हें एक कंप्यूटर कम्पनी से 'सॉफ़्टवेयर इंजीनियर' के पद पर नौकरी का ऑफ़र मिला। अपनी इस सफलता के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और नई बुलन्दियों को छुआ। अपनी इन सफलताओं के साथ-साथ निर्मला शुक्ला अमेरिका में हिन्दी के प्रचार-प्रसार और कवि-सम्मेलनों के आयोजन में भी सक्रिय रूप से भाग लेती हैं।

विवाह तथा शिक्षा

महासमुंद, रायपुर के दीवान-परिवार में जन्मी निर्मला के हाईस्कूल पास होने के एक साल बाद ही उनका विवाह विद्यानगर, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के शुक्ला परिवार में जून, 1957 में हो गया था। उस ज़माने में लड़कियों की शादी जल्दी ही हो जाया करती थी। निर्मला में बचपन से ही आगे पढ़ने के लिए एक लगन व कुछ नया सीखने की तीव्र इच्छा थी, जो विवाहोपरांत व कालांतर में अमेरिका जाने के बाद भी जारी रही। अतः शादी के बाद उन्होंने 'रविशंकर विश्वविद्यालय', रायपुर से बी. ए. व 'गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय', हरिद्वार (वर्तमान उत्तराखंड) से हिंदी साहित्य में एम. ए. किया।

विदेश यात्रा तथा व्यवसाय

निर्मला की शादी के पांच वर्ष ही हुए थे कि उनके पति श्याम नारायण शुक्ल, जो उस समय रायपुर में असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे, 1962 में उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए कैनेडा चले गए। इसके एक साल बाद यानी 1963 में निर्मला भी अपने दो बच्चों के साथ पति के पास कैनेडा पहुँच गईं। विद्यार्थी पति के स्कालरशिप की रक़म से गृहस्थी और पढाई दोनों की गाड़ी न चलती थी। अतः निर्मला ने भी काम करने का निर्णय लिया और सौभाग्य से उन्हें पति की ही 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूब्रन्सविक फ़्रेडेरिक्टन' में लायब्रेरी-असिस्टेंट की नौकरी मिल गई। गृहस्थी, नौकरी और पति की डिग्री से सम्बंधित थीसिस को टाइप करना, ये सभी काम निर्मला ने कुशलता से किए। उनके पति ने 1964 में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होकर एम.एस-सी. इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। निर्मला अपने परिवार के साथ 1964 में कैनेडा से अमेरिका चली गईं, जब उनके पति को वहाँ 'ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी', कोलंबस में आर्थिक सहायता के साथ पी-एच.डी. की पढाई के लिए प्रवेश मिल गया। यहाँ भी वे यूनिवर्सिटी के स्पीच डिपार्टमेंट में नौकरी करती थीं। अपने पति के शोध-प्रबंध को यहाँ भी उन्होंने टाइप किया। उनके पति ने 1968 में सिविल इंजीनियरिंग में 'ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी' से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।

साफ्टवेयर इंजीनियर व मैनेजर का पद

1974 में निर्मला का परिवार जीविकोपार्जन के उद्देश्य से अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया प्रान्त में जा बसा। तब यहाँ के 'सिलिकॉन व्हेली' की कंप्यूटर कंपनियों में कंप्यूटर-विशेषज्ञों की जबरदस्त मांग थी। जैसा कि पहले बताया गया निर्मला में सदा से ही आगे पढ़ने और कुछ नया सीखने की ललक थी, इसीलिए अपने पति से प्रेरणा पाकर उन्होंने भी एक संस्थान (कालेज आफ अलामीडा)में कंप्यूटर-प्रशिक्षण के लिए प्रवेश ले लिया। निर्मला ने कंप्यूटर-ट्रेनिंग पूरी कर डिप्लोमा हासिल किया। भारत में सदैव हिन्दी माध्यम से पढ़ी निर्मला ने कंप्यूटर-साइंस की पढाई अंग्रेज़ी माध्यम से की और डिप्लोमा की परीक्षा में 'ए ग्रेड' (प्रथम श्रेणी) से पास हुईं। 1978 में एक दिन निर्मला और उनके परिवार के सदस्यों की ख़ुशी की सीमा न रही, जब उन्हें एक कंप्यूटर कम्पनी से 'सॉफ़्टवेयर इंजीनियर' के पद पर नौकरी का ऑफ़र मिला। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। निर्मला 'सिलिकॉन व्हेली'की प्रमुख हाईटेक कम्पनियों- टैन्डम, (एच.पी.),मैकडॉनल्ड डग्लस, नोवेल तथा सिस्को सिस्टम्स में नेटवर्किंग के क्षेत्र में 'सीनियर सॉफ़्टवेयर इंजीनियर एंड मैनेजर' के पद पर 25 वर्षों तक कार्यरत रहीं, जहाँ वे अपनी कार्यक्षमता के लिए अनेक बार सम्मानित हुईं। उनकी योग्यता को देखते हुए 'कंप्यूटर-क्लासेज़' पढाने के लिए अपनी कम्पनी की तरफ़ से उन्हें एक बार अमेरिका से लन्दन भी भेजा गया। निर्मला के पति डॉ. श्याम नारायण शुक्ल अमेरिका में सिविल इंजीनियरिंग के ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक, इंजीनियर व प्रोफ़ेसर रहे हैं। उन्होंने यहाँ के 'सैनहोज़े स्टेट यूनिवर्सिटी' व 'लारेंस लीव्हरमोर नैशनल लेबोर्टरी, यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया' में वर्षों काम किया।

हिन्दी प्रचार-प्रसार व रचनाएँ

निर्मला कैलिफ़ोर्निया की स्थानीय सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक संस्थाओं से भी जुड़ी हैं। अमेरिका में हिन्दी के प्रचार-प्रसार और कवि-सम्मेलनों के आयोजन में भी वे सक्रिय रहती हैं। अमेरिका से प्रकाशित होने वाले हिन्दी के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं- 'हिंदी जगत', 'विश्व विवेक', 'मानस भारती', 'ब्रह्मवाणी' तथा भारत के 'विवेक ज्योति' में उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं। 'स्मृतियाँ' नामक उनका एक काव्य-संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है। अमेरिका से प्रकाशित 'प्रवासिनी के बोल' नामक कविता-संग्रह में भी उनकी कुछ कविताएँ प्रकाशित हुई हैं तथा वे अमेरिका की एक लोकप्रिय हिंदी कवियित्री भी बन चुकी हैं। वे 'विश्व हिंदी न्यास' नामक संस्था से भी जुड़ी हैं।

कैलिफ़ोर्निया में उन्होंने चार वर्षों तक बच्चों को हिंदी पढ़ाने का सफल कार्य भी किया है। 1999 में लन्दन में हुए 'विश्व हिंदी सम्मलेन' में 'अमेरिका में हिंदी प्रशिक्षण' पर उन्होंने अपना एक पत्र भी प्रस्तुत किया था, जिसे काफ़ी सराहा गया। न्यूयार्क में 2007 में हुए 'विश्व हिंदी सम्मलेन' की 'स्मारिका पत्रिका' में भी उनका लेख 'अमेरिका में हिन्दी की स्थिति' प्रकाशित हुआ। उन्होंने अमेरिका से प्रकाशित 'ब्रह्म भारती' नामक एक पत्रिका का दो वर्षों तक कुशल संपादन भी किया।

परिवार

निर्मला-श्याम नारायण शुक्ल के तीन पुत्रियाँ व एक पुत्र हैं। उनकी बड़ी पुत्री आभा 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कले से शिक्षा प्राप्त मैकेनिकल इंजीनियर है। शेष दो पुत्रियाँ विभा व शुभा तथा पुत्र विवेक 'कैलिफ़ोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी' से कंप्यूटर साइंस, जिसे भारत सहित कुछ देशों में 'कंप्यूटर इंजीनियरिंग' भी कहते हैं, के ग्रेजुएट हैं। शुभा जर्मनी में तथा आभा, विभा व विवेक अमेरिका में ही कार्यरत हैं।

प्रेरणा स्रोत

चार दशक से भी अधिक लम्बे समय तक अमेरिका में रहने के बाद भी अंग्रेज़ी के साथ छत्तीसगढ़ी बोलीहिन्दी भाषा पर निर्मला का समान अधिकार है। छत्तीसगढ़, जिसे कभी भारत का सबसे पिछड़ा राज्य कहा जाता था, जहाँ लड़कियों की शादियाँ आज भी अक़्सर जल्दी हो जाती हैं और उनमें से बहुतों के उच्च शिक्षा प्राप्ति के अवसर बंद हो जाते हैं, उनके लिए विदुषी,विनम्र व मृदुभाषणी निर्मला शुक्ला एक प्रेरणा हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ


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