पूर्वसागर
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पूर्वसागर प्राचीन भारतीय साहित्य में या तो 'बंगाल की खाड़ी' का नाम है या वर्तमान 'प्रशांत सागर' का। बंगाल की खाड़ी का समुद्र तीन ओर से भूमि द्वारा परिवृत्त होने के कारण सामान्यत:[1] शांत और अक्षुब्ध रहता है और प्रशांत महासागर को तो प्रशांत कहते ही हैं।
- यह तथ्य बड़ा मनोरंजक है कि महाभारत के एक उल्लेख में पूर्वसागर को शान्ति और अक्षोभ का उपमान माना गया है-
'नाभ्यगच्छत् प्रहर्ष ता: स पश्यन् सुमहातपा:, इंद्रियाणि वशेकृत्वा पूर्वसागरसन्निभ:'[2]
अर्थात् वे तपस्वी उन अप्सराओं को देखकर भी विकारवान् न हुए वरन् इंद्रियों को वश में करके पूर्वसागर के समान (अविचलित) रहे। *कालिदास ने पूर्वसागर का रघु की दिग्विजय के प्रसंग में वर्णन किया है-
'स सेनां महतीं कर्षन् पूर्वसागरगामिनीम्, बभौ हरजटाभ्रष्टां गंगामित्र भगीरथ:'[3]
- इस उद्धरण में पूर्वसागर निश्चय रूप से बंगाल की खाड़ी का नाम है, क्योंकि गंगा को इसी समुद्र की ओर जाती हुई कहा गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 576 |
- ↑ मानसून के समय को छोड़कर
- ↑ महाभारत, उद्योगपर्व 9, 16, 17
- ↑ रघु. 4, 32.