शाक द्वीप
पुराणों के अनुसार सात द्वीपों में से एक, जो चारों ओर क्षीर समुद्र से घिरा हुआ है और इसमें शाक (शाल) का बहुत बड़ा पेड़ है। इसमें ऋतु व्रत, सत्य व्रत अथवा अनुतप्ता नाम की सात नदियाँ हैं।
- प्रियव्रत के पुत्र मेधादिति ने इस द्वीप को सात वर्षों, देशों में विभाजित करके अपने सात पुत्रों में बाँट दिया था। इन वर्षों के सीमा रूप ईशान, उरु, श्रृंग, बलभद्र, शतकेसर, देवपालन, महानश आदि पर्वत हैं।
- यह जम्बूद्वीप से दुगुना और क्षीर सागर से घिरा है।
- यहाँ मेरु, मलय, जलधार, रैवतक, श्याम, दुर्गशैल तथा केशरी नामक मणिविभूषित विस्तृत पर्वत हैं।
- पुण्यतोया गंगा, कावेरका, महानदी, मणिजला, इक्षुवर्धनिका नदियाँ हैं।
- लोकसम्मत-मग, मशक, मानक, मंदक चार जनपद हैं।
- यहाँ मृत्यु भय नहीं है।
- दुर्भिक्ष नहीं पड़ता।
- यहाँ तेजस्वी, क्षमाशील लोग हैं।
- यहाँ सिद्ध, चारण और देवगणों का वास है।
- एन.एल. डे ने इसे शकदेश बताया है, जिसमें तुर्किस्तान सम्मिलित है।
- ग्रीक भूवेत्ताओं ने इसे समरकंद और बुखारा के मध्य बताया है।
कूर्म पुराण के अनुसार
कूर्म पुराण के अनुसार सात वर्ष, सात कुल पर्वत और सात नदियों वाला शाक द्वीप क्रौंच से दुगने आकार का तथा दधि सागर से घिरा हुआ है। सात पर्वत इस प्रकार हैं - उदय, रैवत, श्याम, काष्ठगिरि, अम्बिकेय, रम्य तथा केसरी। सुकुमारी, कुमारी, नलिनी, वेणुका, इक्षुका, धेनुका तथा गमस्ति नाम की ये सात नदियाँ हैं। इन नदियों का जल पीने के कारण यहाँ के लोग रोग-शोक, राग-द्वेष, दु:ख-ताप तथ्हा भय-आतंक से सदैव मुक्त रहते हैं। यहाँ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को क्रमश: भृग, मगध, मानस और मंदग नामों से जाना जाता है। ये लोग व्रत, उपवास, होम आदि के द्वारा भुवन भास्कर भगवान सूर्यदेव का पूजन- आराधन करके उनके आशीर्वाद से अपने दोनों लोक को सुखी बनाते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कूर्म पुराण, पृष्ठ- 79 (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 22 अप्रॅल, 2012।
प्रो.देवेंद्र मिश्र “भाग चतुर्थ”, भारतीय संस्कृति कोश (हिंदी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, 896।
बाहरी कड़ियाँ
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