प्रवासी भारतीय
प्रवासी भारतीय
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विवरण | 'प्रवासी भारतीय दिवस' या 'अनिवासी भारतीय दिवस' 9 जनवरी को पूरे भारत में मनाया जाता है। |
शुरुआत | 2003 |
कार्यक्रम | प्रवासी भारतीय दिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिसमें उन भारतीयों को सम्मानित किया जाता है जिन्होंने विदेश में जाकर भारतवर्ष का नाम ऊँचा किया है। |
संबंधित लेख | प्रवासी भारतीय दिवस |
अन्य जानकारी | 9 जनवरी, 1915 को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मान्यता दी गई है क्योंकि इसी दिन महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और अंततः दुनिया भर में प्रवासी भारतीयों और औपनिवेशिक शासन के तहत लोगों के लिए और भारत के सफल स्वतंत्रता संघर्ष के लिए प्रेरणा बने। |
अद्यतन | 14:58, 9 जनवरी 2014 (IST)
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प्रवासी भारतीय वे लोग हैं जो भारत छोड़कर विश्व के दूसरे देशों में जा बसे हैं। ये दनिया के अनेक देशों में फैले हुए हैं। 48 देशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों की जनसंख्या क़रीब 2 करोड़ है। इनमें से 11 देशों में 5 लाख से ज्यादा प्रवासी भारतीय वहां की औसत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं और वहां की आर्थिक व राजनीतिक दशा व दिशा को तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां उनकी आर्थिक, शैक्षणिक व व्यावसायिक दक्षता का आधार काफ़ी मजबूत है। वे विभिन्न देशों में रहते हैं, अलग भाषा बोलते हैं परंतु वहां के विभिन्न क्रियाकलापों में अपनी महती भूमिका निभाते हैं। प्रवासी भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने के कारण ही साझा पहचान मिली है और यही कारण है जो उन्हें भारत से गहरे जोड़ता है।
आर्थिक महाशक्ति बनता 'भारत'
जहां-जहां प्रवासी भारतीय बसे वहां उन्होंने आर्थिक तंत्र को मजबूती प्रदान की और बहुत कम समय में अपना स्थान बना लिया। वे मज़दूर, व्यापारी, शिक्षक अनुसंधानकर्ता, खोजकर्ता, डाक्टर, वकील, इंजीनियर, प्रबंधक, प्रशासक आदि के रूप में दुनियाभर में स्वीकार किए गए। प्रवासियों की सफलता का श्रेय उनकी परंपरागत सोच, सांस्कृतिक मूल्यों और शैक्षणिक योग्यता को दिया जा सकता है। कई देशों में वहां के मूल निवासियों की अपेक्षा भारतवंशियों की प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है। वैश्विक स्तर पर सूचना तकनीक के क्षेत्र में क्रांति में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसके कारण भारत की विदेशों में छवि निखरी है। प्रवासी भारतीयों की सफलता के कारण भी आज भारत आर्थिक विश्व में आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है।
भारत के पांच हजार से भी पुराने महान् इतिहास में इस देश में विश्व के विभिन्न भागों से हर तरह के हमलावर एवं आगंतुक आते रहे हैं। इस प्रक्रिया में, अपने इतिहास के दौरान भारत ने अनेक संस्कृतियों एवं सभ्यताओं को समाहित किया है तथा सभी हमलावरों ने अंतत: भारत को अपने घर के रूप में अपनाया है। भारत में विदेशियों के आने का सिलसिला आर्यों से शुरू हुआ जो मध्य एशिया ये यहां आए थे तथा यह सिलसिला अंग्रेजों के समय तक चलता रहा जिन्होंने हमारे पहले अनिवासी भारतीय - मोहनदास करमचंद गांधी के नेतृत्व में महान् स्वतंत्रता संघर्ष के कारण भारत छोड़ा।
प्रवासियों का इतिहास
- जो भारतीय सबसे पहले विदेश गए वे सम्राट अशोक के दूत थे जो ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का प्रसार करने के लिए गए थे। इसके बाद चोल वंश ने अपनी शाखाओं को सुदूर पूर्व में फैलाया। ऐसा कहा जाता है कि भारत के व्यापारियों ने अपने खुद के पोतों का निर्माण किया था तथा वे कारोबार की तलाश में रोम एवं चीन तक जा पहुंचे थे।
- 19वीं शताब्दी के दौरान तथा भारत में ब्रिटिश शासन की समाप्ति तक, भारत के लोग क़रारनामा प्रणाली के अंतर्गत अंग्रेजों के अन्य उपनिवेशों - मॉरीशस, गुयाना, कैरेबियन, फिजी एवं पूर्वी अफ्रीका में गए। इसी अवधि में गुजराती एवं सिंधी सौदागर अडेन, ओमान, बहरीन, दुबई, दक्षिण अफ्रीका एवं पूर्वी अफ्रीका, जिसमें से अधिकांश पर अंग्रेजों का शासन था, में जा कर बस गए।
- नवीनतम अनुसंधान के निष्कर्षों के अनुसार, ऐसा माना जा रहा है कि भारतीय जिप्सी लगभग 1500 साल पहले यूरोप में गए थे। संयुक्त राज्य अमरीका में वे इसके बाद पहुंचे थे। 2 जुलाई 1946 को राष्ट्रपति हैरी ट्रूमन द्वारा ल्यूस - सेलर अधिनियम, 1946 पर हस्ताक्षर किया गया जिसके अनुसार 100 फिलिपिनोस तथा 100 भारतीयों को हर साल संयुक्त राज्य अमरीका में प्रवेश करने का कोटा निर्धारित किया गया। आज संयुक्त राज्य अमरीका में 3 मिलियन से अधिक भारतीय अमेरिकन हैं जिसमें वैज्ञानिक, इंजीनियर एवं प्रोफेसर शामिल हैं। इनमें से कुछ व्यवसाय जगत् के टाइकून एवं राजनीतिक नेता भी बन गए हैं।
भारतीयों के प्रवासन
भारतीयों के प्रवासन की दो लहरें चली थी।
- पहला, यह निर्माण बूम था जो तेल की कीमतों में वृद्धि के बाद खाड़ी के देशों में 1970 के दशक में शुरू हुआ जिसकी वजह से भारत से कुशल एवं अकुशल दोनों प्रकार के श्रमिक वहां जाने के लिए आकृष्ट हुए। खाड़ी के देशों ने भारी संख्या में भारत के लोगों को आकर्षित करना जारी रखा है।
- 1990 के दशक में दूसरी लहर में, संयुक्त राज्य अमरीका तथा बाद में यूरोप एवं अन्य देशों ने आई.टी. एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में नौकरी करने के लिए युवा भारतीय कोड लेखकों को आकर्षित किया।
हमारी बहुमूल्य परिसंपत्ति
इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कि अनिवासी भारतीय तथा भारतीय मूल के लोग विदेशों में हमारी बहुमूल्य परिसंपत्ति हैं, भारत सरकार ने 2004 में भारतीय डायसपोरा के मुद्दों एवं सरोकारों के समाधान के लिए प्रवासी भारतीय मामले मंत्रालय (एम ओ आई ए) का गठन किया। यह मंत्रालय विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर काम करता है तथा भारतीय डायसपोरा, जिसकी अनुमानित संख्या लगभग 28 मिलियन है, के कल्याण एवं देखभाल के लिए एकल बिंदु सेवा केन्द्र के रूप में काम करता है। भारत सरकार ने हाल के वर्षों में अनेक पहलों की शुरूआत की है तथा प्रवासी भारतीयों का जीवन सरल बनाने के लिए नवाचार करना जारी रखा है। प्रवासी भारतीय दिवस एक वार्षिक कार्यक्रम है जिसमें प्रवासी भारतीयों की समस्याओं पर विचार - विमर्श किया जाता है तथा भारत के प्रधान मंत्री जी द्वारा महत्वपूर्ण प्रवासी भारतीयों को सम्मानित किया जाता है।
भारतीय प्रवासी समुदाय
भारतीय डायसपोरा में तीन प्रकार के लोग हैं।
- पहली श्रेणी में वे लोग आते हैं जो बहुत पहले परदेश जाकर बस गए तथा आज अपने मेजबान देशों के स्थाई नागरिक हैं। ये मुख्य रूप से पश्चिम अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में हैं।
- दूसरी श्रेणी उन लोगों की है वे अपने-अपने मेजबान देशों के नागरिक बनने वाले हैं तथा कथित ग्रीन कार्ड एवं निवास परमिट धारक हैं तथा ये भी मुख्य रूप से पश्चिमी देशों में हैं। इन श्रेणियों के भारतीय आमतौर पर उच्च अर्हता प्राप्त हैं जिसमें डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर, प्रोफेसर एवं उद्यमी शामिल हैं।
- तीसरी श्रेणी हमारे ऐसे समुदाय की है जो मुख्य रूप से खाड़ी के देशों में संकेन्द्रित है जो गैर अरबों को नागरिकता नहीं देते हैं। खाड़ी के देशों में रहने वाले हमारे प्रवासी, जिनकी संख्या 6.5 मिलियन के आसपास है, कुशल एवं अर्ध कुशल कामगार हैं तथा वे कार्यालयों, दुकानों, स्कूलों एवं कारखानों के साथ साथ परिवारों में भी नौकरी करते हैं। पिछले कुछ दशकों में, उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत, मिलनसार स्वभाव तथा गैर राजनीतिक दृष्टिकोण के बल पर अपने-अपने मेजबानों के लिए अपनी अपरिहार्यता को साबित किया है। तथापि, वे अपने मेजबान देशों में परदेशी बने रहते हैं, वहां तब तक रुकते हैं और काम करते हैं जब तक उनका वीज़ा ऐसा करने की अनुमति देता है और अंत में अपने देश को लौट आते हैं।
अनिवासी भारतीय का कार्यकाल
भारत सरकार का मानना है कि अनिवासी भारतीय के कार्यकाल में तीन चरण होते हैं।
- पहला चरण तैयारी अवधि होती है जब किसी संभावित परदेशी को भर्ती करने वाले एजेंट के प्रत्यय पत्र की अवश्य पुष्टि करनी चाहिए, कार्य संविदा की शर्तों एवं निबंधनों को समझना चाहिए तथा यह अध्ययन करना चाहिए कि मेजबान देश में क्या किया जा सकता है और क्या नहीं किया जा सकता है तथा पुष्टि करनी चाहिए कि संविदा की एक प्रति संबंधित 'भारतीय मिशन' को सौंप दी गई है।
- दूसरा चरण वह होता है जब कामगार अपने मेजबान देश में पहुंच जाता है तथा प्रायोजक के साथ काम करना शुरू कर देता है। प्रायोजक एवं प्रायोजित को अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि वे दोनों ही संविदा की शर्तों एवं निबंधनों का पालन करते हैं। यदि उनमें से कोई भी संविदा की प्रतिबद्धताओं से पीछे हटता है, तो सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए उस पर ध्यान देने की ज़रूरत होती है। यदि कोई समाधान नहीं हो पाता है, तो नजदीकी भारतीय मिशन की 24X7 हेल्प लाइन द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए मामले को अपने हाथ में लिया जाता है कि या तो किसी उपयुक्त समाधान पर सहमति हो जाए या फिर स्थानीय प्राधिकारियों के माध्यम से एग्ज़िट परमिट की व्यवस्था की जाए ताकि कामगार की घर वापसी में सुविधा प्रदान की जा सके।
- तीसरा चरण वह होता है जब एन.आर.आई. अंतत: अपने देश लौट आता है। इस चरण पर, वह या तो स्थाई रूप से अपने देश में बस जाना चाहेगा या फिर खाड़ी के किसी दूसरे देश में जाने का प्रयास करेगा। यदि वह भारत में रुकना चाहता है तो उसे अपने कौशल के आधार पर उपयुक्त पुन: प्रशिक्षण एवं पुनर्वास के माध्यम से हमारे देश की अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा से जुड़ने की ज़रूरत होती है। यदि वह कुछ धन बचाने में समर्थ होता है, तो उसे उद्यमी बनने के लिए भी प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
- खाड़ी के देशों के एन.आर.आई. का महत्व निम्नलिखित महत्वपूर्ण तथ्यों की वजह से है-
- यदि कोई भारतीय कामगार विदेश में काम करने के लिए अपना घर छोड़कर जाता है तो वह स्वत: ही अपने पीछे एक नौकरी छोड़ जाता है जो भारत में किसी दूसरे भारतीय के लिए उपलब्ध हो जाती है।
- विदेश में कामगार के रूप में अपने कार्यकाल के बाद गल्फ एन.आर.आई. अपने देश में वापस आ जाता है तथा उसके लिए अपने मेजबान खाड़ी देश का नागरिक बनने की कोई गुंजाइश नहीं होती है।
- खाड़ी देश के कामगार अपनी लगभग पूरी आय अपने देश भेजते हैं तथा उनका परिवार अपनी जीविका के लिए इसी धन पर पूरी तरह निभर्र होता है। इस प्रकार खाड़ी देशों में काम करने वाले 6.5 मिलियन कामगार अपने देश में 40 से 50 मिलियन अन्य परिवार सदस्यों के जीवन यापन में सहायता करते हैं।
- जब खाड़ी के देशों में काम करने वाला कोई एन आर आई अपनी कड़ी मेहनत से अर्जित आय को भारत में अपने परिवार के पास भेजता है, तो वह भारत सरकार के लिए बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी प्रदान करता है।
- विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि 2012 में भारत में विदेशों से 70 बिलियन अमरीकी डॉलर भेजा गया जो चीन को प्राप्त 66 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक है। विश्व बैंक ने यह भी कहा कि भारत भेजे जाने वाले धन में भारी वृद्धि खाड़ी देशों से भेजे वाले धन के कारण है।
- यह नोट करना बड़ा रोचक है कि हमारे यहां विदेशों से आने वाला धन अधिकांशत: खाड़ी देशों से आता है तथा यह केरल के सकल घरेलू उत्पाद, जो अनुमानत: 69 बिलियन अमरीकी डॉलर है, से 11 बिलियन अमरीकी डॉलर अधिक है।
नये रुझान
- खाड़ी के देशों में केरल समेत दक्षिण भारत के राज्यों में रहने वाले भारतीयों की संख्या धीरे-धीरे घट रही है तथा भारत के अन्य भागों का प्रतिनिधित्व धीरे-धीरे बढ़ रहा है। यह आर्थिक सीढ़ी में दक्षिण भारत से पिछले परदेशियों की आवाजाही में वृद्धि का द्योतक है।
- खाड़ी के देशों में कुशल कामगारों की संख्या में मूक किन्तु अडिग रूप से वृद्धि हो रही है। अधिक संख्या में इंजीनियर, शिक्षक, डॉक्टर, नर्स एवं व्यापारी खाड़ी के देशों में जा रहे हैं। इस समय खाड़ी के देशों में कुछ ऐसे एन.आर.आई. व्यावसायिक घराने हैं जो अच्छा काम कर रहे हैं।
- श्रमिकों का निर्यात करने वाले अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा तीव्र होती जा रही है। इन देशों ने अपने लोगों को नर्स एवं अस्पताल परिचर, होटल एवं आतिथ्य विशेषज्ञ, शॉपिंग एवं फुटकर सहायक, औद्योगिक कामगार आदि के रूप में काम करने के लिए विशिष्ट कौशल प्रदान करना शुरू कर दिया है तथा इन देशों के प्रशिक्षित व्यक्ति अधिकाधिक मात्रा में भारत समेत अन्य देशों के अप्रक्षिशित एवं कम दक्ष कामगारों का स्थान लेते जा रहे हैं।
हमें अपने कामगारों की शिक्षा एवं प्रशिक्षण की दिशा में युद्ध स्तर पर काम करना जारी रखना चाहिए ताकि स्वदेश वापसी पर लौटने वाले कामगारों के अबाध पुन: एकीकरण का सुनिश्चिय हो सके तथा उन्हें प्रेरित किया जा सके जो अपने देश में वापस आकर उद्यमी बनना चाहते हैं तथा ऐसी क्षमता रखते हैं। [1]
समाचार
अपनी मेहनत से अमेरिकियों की सोच बदली भारतीयों ने
- रविवार, 11 सितंबर, 2011
अमेरिका में आतंकी हमले के बाद दस साल से वहाँ रह रहे भारतीय अमेरिकियों ने अपने आप को मज़बूती से खड़ा किया है। 9 / 11 की घटना के बाद एशियाई लोगों को संदेह की नजर से देखा जा रहा था, लेकिन भारतीय मूल के लोगों के बारे में अमेरिकियों की सोच बिल्कुल बदल गई है। इसका कारण भारतीयों की प्रतिभा और परिश्रम है। भारतीय मूल के लोगों के विश्व संगठन (जीओपीआइओ) के पूर्व चेयरमैन व संस्थापक अध्यक्ष थॉमस अब्राहम ने आइएनएस को बताया कि भारतीय अमेरिकी समुदाय राजनीतिक रूप से बहुत ही सक्रिय है। भारतीय मूल के अमेरिका में दो गर्वनर हैं। देश, राज्य व शहर स्तर पर दर्जन भर जनप्रतिनिधि हैं। इसके अलावा प्रशासन में अनेक लोग हैं। भारतीय अमेरिकी समुदाय के लिए यह बड़ी उपलब्धि है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्रवासी भारतीय दिवस 2013 के अवसर पर विदेश राज्य मंत्री श्री ई अहमद द्वारा भाषण (हिंदी) विदेश मंत्रालय, भारत सरकार। अभिगमन तिथि: 3 जनवरी, 2014।
- ↑ आभार- दैनिक जागरण दिनांक- 11 सितंबर, 2011 पृष्ठ संख्या- 24
बाहरी कड़ियाँ
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