फ़तेहपुर ज़िला उत्तर प्रदेश राज्य का एक ज़िला है जो कि पवित्र गंगा एवं यमुना नदी के किनारों पर बसा हुआ है। फ़तेहपुर का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। भिटौरा और असनी के घाट भी पुराणों में मिलते हैं। भिटौरा भृगु ऋषि की तपोस्थली थी। फ़तेहपुर ज़िला इलाहाबाद मण्डल का एक हिस्सा है।
ऐतिहासिक स्थल
बावनी इमली
यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल, 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगो का विश्वास है के उस पेड़ का विकास उस नरसंहार के बाद बंद हो गया है। यह जगह बिन्दकी उपखंड में खजुआ कस्बे के निकट है। बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम मुग़ल रोड स्थित शहीद स्मारक बावनी इमली स्वतंत्रता की जंग में अपना विशेष महत्त्व रखती है। शहीद स्थल में बूढ़े इमली के पेड़ में 28 अप्रैल, 1857 को रसूलपुर गांव के निवासी जोधा सिंह अटैया को उनके इक्यावन क्रांतिकारियों के साथ फाँसी पर लटका दिया गया था इन्हीं बावन शहीदों की स्मृति में इस वृक्ष को बावनी इमली कहा जाने लगा।
4 फ़रवरी, 1858 को जोधा सिंह अटैया पर ब्रिगेडियर करथ्यू ने असफल आक्रमण किया। साहसी जोधा सिंह अटैया को सरकारी कार्यालय लूटने एवं जलाये जाने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डकैत घोषित कर दिया। जोधा सिंह ने 27 अक्टूबर, 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा व एक अंग्रेज़ सिपाही को घेरकरमार डाला था। 7 दिसंबर, 1857 को गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला करएक अंग्रेज़ परस्त को भी मार डाला। इसी क्रांतिकारी गुट ने 9 दिसंबर को जहानाबाद में हंगामा काटा और छापा मारकर ढंग से तहसीलदार को बंदी बना लिया। जोधा सिंह ने दरियाव सिंह और शिवदयाल सिंह के साथ गोरिल्ला युद्ध की शुरुआत की थी। जोधा सिंह को 28 अप्रैल, 1858 को अपने इक्यावन साथियों के साथ लौट रहे थे तभी मुखबिर की सूचना पर कर्नल क्रिस्टाइल की सेना ने उन्हें सभी साथियों सहित बंदी बना लिया और सबको फाँसी दे दी गयी। बर्बरता की चरम सीमा यह रही कि शवों को पेड़ से उतारा भी नहीं गया। कई दिनों तक यह शव इसी पेड़ पर झूलते रहे। चार जून की रात अपने सशस्त्र साथियों के साथ महराज सिंह बावनी इमली आये और शवों को उतारकर शिवराजपुर में इन नरकंकालों की अंत्येष्टि की।
भिटौरा
इस मुख्यालय पवित्र गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। यहाँ सुप्रसिद्ध संत महर्षि भृगु लंबे समय तक पूजा का स्थान रहा है। यहाँ पर गंगा नदी प्रवाह उत्तर दिशा की ओर है। शहर मुख्यालय से उत्तर दिशा में बारह किलोमीटर दूर उत्तरवाहिनी भागीरथी के भिटौरा तट पर महर्षि भृगु मुनि ने तपस्या की थी। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भृगु मुनि की तपोस्थली में देवता भी परिक्रमा करने आए थे। पवित्र धाम गंगा महर्षि भृगु क्रोध में एक बार भगवान विष्णु की छाती पर लात भी मारी थी। यहाँ पर अन्य आधा दर्जन मन्दिर बने हुए हैं। स्वामी विज्ञानानंद जी ने महर्षि भृगु की तपोस्थली में भगवान शंकर की विशाल मूर्ति स्थापित कराई है, और नया पक्का घाट भी तैयार कराया है। भगवान शंकर की मूर्ति पर ॐ नमः शिवाय का बारह वर्षों से अनवरत पाठ चल रहा है। उत्तर वाहिनी गंगा पूरे भारत में मात्र तीन जगह है जिसमे हरिद्वार, काशी व भृगु धाम भिटौरा है।
हथगाम
यह महान् स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री गणेश शंकर विद्यार्थी एवं उर्दू के शायर श्री इकबाल वर्मा का जन्म स्थान है। इस् स्थान पर राजा जयचंद की हथशाला थी। और सिखों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी की तपोस्थली होने का गौरव प्राप्त है।
रेन्ह्
यह महाभारत कालीन गाँव है और यमुना नदी के किनारे पर बसा हुआ है। दो दशकों पहले एक बहुत पुरानी भगवान विष्णु की कीमती मिश्र धातु की मूर्ति को इस इस गांव में पाया गया था। अब ये मूर्ति कीर्तिखेडा गांव में एक मंदिर में स्थित है और ये गांव बिन्दकी ललौली सड़क पर है। कहा जाता है कि यहां पर कृष्ण के बडे भाई बलराम की ससुराल है।
शिवराजपुर
यह गांव बिन्दकी के निकट गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। इस गांव में भगवान कृष्ण का एक बहुत पुराना मंदिर है। जो मीरा बाई का मंदिर के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि ये भगवान कृष्ण की मूर्ति को मीरा बाई जो की भगवान कृष्ण की एक प्रख्यात भक्त और मेवाड़ के शाही परिवार के एक सदस्य थी के द्वारा स्थापित किया गया था।
तेन्दुली
यह गांव चौड्गरा-बिन्दकी सडक पर है। ऐसा मानना है कि यहाँ सांप के शिकार / कुत्ता काटे बीमारों का ईलाज बाबा झामदास के मन्दिर में होता है।
बिन्दकी
यह बहुत ही पुराना शहर है जो कि मुख्यालय से लगभग 15 मील दूर है। बिन्दकी का नाम यहाँ के राजा वेनुकी के नाम पर पडा। यह बहुत ही धर्मनिरपेक्ष शहर है। यहाँ कि भूमि गंगा और यमुना नदी के बीच में होने के कारण बहुत ही उपजाऊ है। यह् उत्तर प्रदेश के राज्य में एक् एक सबसे पुराना तहसील है। शहीद जोधा सिंह अटैया और कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों और प्रसिद्ध हिन्दी कवि राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी की मात्रभूमि है।
खजुहा
आदि काल में खजुहा को खजुआ गढ के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का मुग़ल काल में बहुत ही महत्त्व था। औरंगजेब के समय पर यह इलाहाबाद मण्डल की मुख्य छावनी थी। खजुहा को भगवान शिव की नगरी के तौर पर भी जाना जाता है। इस छोटे से शहर में 118 अद्भुत शिव मंदिर है| खजुहा क़स्बा ऐतिहासिक घटनाओं और स्थानों को समेटे हुए है। कस्बे के मुग़ल रोड में विशालकाय फाटक और सरांय स्थित है। जो कस्बे की पहचान बना हुआ है। वहीं कस्बे के स्वर्णिम अतीत के वैभव की दास्तां बयां कर रहा है। मुग़ल रोड के उत्तर में रामजानकी मंदिर, तीन विशालकाय तालाब, बनारस की नगरी के समान प्रत्येक गली और कुँए अपनी भव्यता की कहानी कह रही है।
इस छोटे से कस्बे में क़रीब एक सौ अठारह शिवालय हैं। इसी क्रम में दशहरा मेले में होने वाली रामलीला के आयोजन में रावण पूजा भी अलौकिक और अनोखी मानी जाती है। यहां की रामलीला को देखने के लिए प्रदेश के कोने-कोने से श्रृद्धालु एकत्रित होते हैं। खजुहा कस्बे की रामलीला ज़िले में ही नहीं पूरे प्रदेश में ख्याति प्राप्त है। यहां पर दशहरा मेले पर अन्य स्थानों की तरह रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि रावण को पूजनीय मानकर हज़ारों दीपों की रोशनी के साथ पूजा अर्चना की जाती है। कस्बे के महिलाएं और बच्चे भी इस सामूहिक आरती और पूजन कार्य में हिस्सा लेते हैं। इस अजीब उत्सव को देखने के लिए दूरदराज़ से लोगों जमावड़ा लगता है। वहीं रावण के साथ अन्य पुतलों को नगर के मुख्य मार्गों में भ्रमण कराया जाता है। इस ऐतिहासिक मेले का शुभारम्भ भादों मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया (तीजा) के दिन तालाब से लाई गई मिट्टी एवं कांस से कुंभ निर्माण कर गणेश की प्रतिमा निर्माण कर दशहरा के दिन पूजा अर्चना की जाती है। खजुहा मेले में निर्मित होने वाले सभी स्वरूप नरई, पुआल आदि समान से बनाए जाते हैं। इन स्वरूपों के चेहरों की रंगाई का कार्य खजुहा के कुशल पेंटरों द्वारा किया जाता है। जबकि रावण का शीश तांबे से बनाया जाता है। दशमी के दिन से गणेश पूजन से शुरू होने वाली रामलीला परेवा द्वितीया के दिन राम रावण युद्ध के बाद इस ऐतिहासिक रामलीला की समाप्त हो जाती है। खजुहा की रामलीला का विशेष महत्त्व है। जहां रावण को जलाने के स्थान पर इस की पूजा की जाने की परंपरा है। तांबे के शीश वाले रावण के पुतले को हज़ारों दीपों की रोशनी प्रज्वलित करके सजाया जाता है। इसके बाद ठाकुर जी के पुजारी द्वारा श्रीराम के पहले रावण की पूजा की जाती है। जहां मेघनाद का 25 फिट ऊंचा लकड़ी के पुतले की सवारी कस्बे के मुख्य मार्गों में निकाली जाती है। वहीं 40 फुट लंबा कुम्भकर्ण व अन्य के पुतले तैयार किए जाते हैं।
हज़ारी लाल का फाटक
1857 से शुरू हुई आज़ादी की जंग के अंतिम मुकाम 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का केन्द्र बिन्दु शहर के चौक स्थित हज़ारी लाल का फाटक था। बलिया के कर्नल भगवान सिंह ने ज़िले के आठ सौ से अधिक देशभक्तों की फ़ौज की कमान संभाली थी। झंडा गीत के रचयिता श्याम लाल गुप्त पार्षद ने आज़ादी की इस चिंगारी को तेज़ करने का प्रयास किया। शिवराजपुर का जंगल क्रांतिकारियों की शरण स्थली था। बताते हैं कि यहीं पर गुप्त रणनीति तय होती थी और फिर अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ाने के लिये क्रांतिकारियों के दल निकल पड़ते थे।
9 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ज़िले की महती भूमिका होने पर 1942 की लड़ाई में पूर्वाचल के जनपदों सहित बांदा व हमीरपुर के क्रांतिकारियों ने ज़िले को ही रणभूमि के रूप में स्वीकारा तभी तो बलिया के कर्नल भगवान सिंह, चीतू पांडेय जैसे क्रांतिकारी यहां के देशभक्तों का साथ देकर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ाई को तेज़ किया। ज़िले के क्रांतिकारी गुरुप्रसाद पांडेय, बंशगोपाल, शिवदयाल उपाध्याय, दादा दीप नारायण, शिवराज बली, देवीदयाल, रघुनंदन पांडेय, यदुनंदन प्रसाद, वासुदेव दीक्षित भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व कर ज़िले में एक माहौल पैदा कर दिया तभी तो एक-एक करके लगभग आठ सौ से अधिक की फ़ौज क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों की सत्ता को हिला दिया। चौक स्थित हज़ारीलाल का फाटक क्रांतिकारियों के लिये गुप्तगू का मुख्य केन्द्र था। बताते हैं कि यहीं पर कानपुर व पूर्वाचल के क्रांतिकारी नेता आकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिये क्या करना है इसकी रणनीति बताते थे। अंग्रेज़ी शासकों को हज़ारी लाल फाटक की जानकारी हो गयी थी। कई बार यहां छापा मारकर क्रांतिकारियों को दबोचने के प्रयास किये गये। आखिर क्रांतिकारियों को गुप्त स्थान खोजना ही पड़ा। शिवराजपुर के जंगल में क्रांतिकारियों का मजमा लगता था। बताते हैं कि अस्सी हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में विस्तारित जंगल को ही क्रांतिकारियों ने अपना ठिकाना बनाया। 'भारत छोड़ो आंदोलन' की शुरुआत गोपालगंज के फसिहाबाद स्थल से की गयी। इसके अलावा खागा जीटी रोड को भी केन्द्र बिन्दु बनाया गया। जहानाबाद, हथगाम, खागा सहित दो दर्जन से अधिक स्थानों पर क्रांतिकारियों ने धरना-प्रदर्शन कर अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिये ललकारा। इस दरम्यान लगभग चार सौ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। नेतृत्व करने वाले आधे से अधिक नेता जब जेल चले गये तो अंगनू पांडेय, बद्री जैसे क्रांतिकारियों ने मोर्चा संभाला।
परिवहन
फ़तेहपुर ज़िला भली प्रकार से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है।
भारतीय रेल
भारतीय रेलवे की हावड़ा, अमृतसर मुख्य मार्ग पर फ़तेहपुर का पडाव स्थल है। यहाँ पर नई दिल्ली, जम्मू, हावड़ा, जोधपुर, [[फ़र्रुख़ाबाद]], कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी आदि के लिये मेल गाडी मिलती है। यहाँ से मिलने वाली कुछ गाडीयाँ नीचे दी है।
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सड़क मार्ग
फ़तेहपुर ज़िला भली प्रकार से सड़क मार्ग से अन्य शहरो से जुड़ा हुआ है। ग्रान्ट ट्रक रोड पर स्थित फ़तेहपुर ज़िला लगभग सभी शहरो से सीधे सम्पर्क में है। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का बस ठहराव स्थल भी यहाँ है। यहाँ से नियमित तौर पर दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, बाँदा, चित्रकूट, झाँसी, बरेली आदि शहरो के लिये बस सेवा उपलब्ध है।
बाज़ार
फ़तेहपुर का मुख्य बाज़ार चॉक है। शहर की अन्य जगह पर भी आपकी ज़रूरत का सामान मिल सकता है। उनमे से कुछ निम्न लिखित है।
- चौक (मुख्य बाज़ार)
- कटरा अब्दुल गनी
- अमरजई
- बाक़रगंज
- हरिहरगंज
- लाला बाज़ार
- महाजरी मोहल्ला
- काजियाना
- वर्मा चौराहा
- पटेल नगर
- पनी मोहल्ला
- कलक्टर गंज
- शादीपुर चौराहा
- मुराइन टोला
- सिविल लाइन्स
- जयराम नगर
- आबू नगर
- लाठी मोहाल
- पक्का तालाब
- देवीगंज
- पुलिस लाइन्स
- राधा नगर
- खेलदार
- शकुन नगर
- कृष्ण बिहारी नगर
- श्याम नगर
- चूडी वाली गली (महिला बाज़ार)
- मसवानी
- गौतम नगर
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- आधिकारिक वेबासाइट
- फ़तेहपुर से जुड़े लोगों का ब्लॉग, जहाँ पर फ़तेहपुर के इतिहास व संस्कृति के अलावा खबरें भी उपलब्ध हैं।
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