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फैसिएनिडी परिवार (गुण गैलीफॉर्मीज़) का कोई भी पक्षी, जो बटेर या चकोर से बड़ा होता है। अपने अन्य रिश्तेदारों (चकोर, बटेर, फ्रैंकोलिन, ग्राउज़ और टर्की) के साथ इसे अक्सर शिकारी पक्षी भी कहा जाता है और ये आर्थिक महत्त्व वाले पक्षी समूह का निर्माण करते हैं, जिसका मनुष्यों के साथ निकट संबंध रहा है। फ़ेज़ेंट मध्यम आकार के पक्षियों का समूह है, जो स्वभावत: भूमिचर होते हैं, इनका सिर अपेक्षाकृत छोटा, नथुने ढंके हुए, मज़बूत पंखविहिन पैर, जिसमें चार उंगलियाँ होती हैं, तीन सामने और एक छोटी पीछे की ओर। लिंग के आधार पर नर-मादा के आकार-प्रकार में स्पष्ट भेद होते हैं, हल्के रंग वाली मादा के मुकाबले नर भड़कीले रंगों से युक्त होते हैं। फ़ेज़ेंटों में इथाजिनिस (लाल फ़ीज़ेंट) और ट्रैगोपॉन को छोड़कर अन्य सभी में पंख केंद्राभिमुख तरीक़े से झड़ते हैं (लंबी पूंछ का सबसे बाहरी पंख पहले और क्रमश: अंदर के पंख झड़ते हैं)। फ़ेज़ेंट उड़ने में माहिर नहीं होते हैं और ज़्यादातर उड़ने की बजाय हवा में तैरते हैं।
फ़ेज़ेंट रंगीन पक्षी होते हैं और इनके रंग कई रंगो के धातुई मिश्रण, जैसे मोनल में चमकदार रक्ताभ लाल रंग पर सफ़ेद धब्बे, जैसे ट्रौगोपॉन में या मोर और मयूर फ़ेज़ेंट के नेत्रवत नमूनों से युक्त पंख जैसे हो जाते हैं। मोर की लंबी पूंछ विख्यात है। औसत रंगीन प्रजातियाँ हैं- ह्यूमस फ़ेज़ेंट (सिरैमेटिकस), चीअर (कट्रेअस) और चमकदार काला फ़ेज़ेंट (कालिज)। जहाँ भी फ़ेज़ेंट की आँखों के चारों ओर नग्न त्वचा होती है और विशेषतया प्रजनन काल में यह चमकदार रंगों से युक्त होती है। कुछ नर फ़ेज़ेंटों में कलगी (मोर, हिमालयी मोनल, चीअर और कालिज) और मांसल उभार (सींग और ललरी) होते हैं, जो प्रजनन काल में प्रदर्शन के दौरान अधिक विकसित हो जाते हैं। नरों से ये सभी शारीरिक लक्षण साथी के चुनाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
फ़ेज़ेंट एशियाई मूल के पक्षी हैं और एक को छोड़कर सबका एशिया में ही उद्भव हुआ है। एकमात्र ग़ैर एशियाई प्रजाति अफ़्रीका में पाया जाने वाला कांगो मोर (अफ़ोपैवो कॅनजेनेसिस) है।
भारत में फ़ेज़ेंट
पूर्वी हिमालय एक उद्भव केंद्र है, जहाँ से फ़ेज़ेंट सभी दिशाओं में फैले हैं। विश्व में फ़ेज़ेंट की 51 ज्ञात प्रजातियाँ हैं, जिनमें से 21 दक्षिण एशिया में पाई जाती हैं, ये 21 प्रजातियाँ 12 वंशों में समाहित हैं, जिनमें से दो सुपरिचित हैं- मोर (पैवो) और जंगली मुर्गी (गैलस), लाल जंगली मुर्ग़ी (गैलस गैलस) को सभी घरेलू मुर्ग़ियों का पूर्वज माना जाता है।
अवास
कुछ अपवादों को छोड़कर फ़ेज़ेंट सामान्यत: वनवासी होते हैं, ये विभिन्न प्रकार के आवास क्षेत्रों में पाए जाते हैं। जैसे निचले क्षेत्रों के पतझड़ वाले जंगलों में (स्लेटी जंगली मुर्ग़ी, लाल जंगली मुर्ग़ी), उपोष्ण कटिबंधीय वनों में (कॉलिन, मोर), शीतोष्ण वनों (ट्रैगोपॉन, कोकलास) और उपआल्पीय या आल्पीय वनों में (मोनल और लाल फ़ेज़ेंट)। चीअर जैसी कुछ प्रजातियाँ पर्वतीय घास के मैदानों में भी पाई जाती हैं। मूलत: भूमिचर होने के कारण अधिकार फ़ेज़ेंट घनी झाड़ियों वाला क्षेत्र पसंद करते हैं जहाँ वे छिप सकें और आश्रय ले सकें, अधिकांश फ़ेज़ेंट पेड़ों पर विश्राम करते है।
आहार
फ़ेज़ेंट का आहार अलग-अलग तरह का होता है, लेकिन ये अधिकांशत: शाकाहारी होते हैं। आहार का एक छोटा हिस्सा अकशेरुकी प्राणियों का भी हो सकता है और बड़ी प्रजातियाँ छिपकली तथा छोटे सांपों का भी शिकार कर लेती हैं।
फ़ेज़ेंट (मोनल) कंदमूल के लिए अपनी चोंच से ज़मीन खोदते हैं या वनस्पति और कचरे को कुरेदते (जंगली मुर्ग़ी और कालिज) हैं। अधिकांश भोजन मौसमी उपलब्धता के अनुसार तय होता है और उनके आहार में कई तरह के पौधों से पता चलता है कि वे कई प्रकार के आहारों में से चुनाव कर सकते हैं। चूज़ों को उनके जन्म के बाद कुछ सप्ताह तक जंतु-प्रोटीन की ज़रूरत होती है और इसीलिए उनके आहार का बड़ा अनुपात जंतुओं का होता है, अंडों से चूज़ों के निकलने का समय आमतौर पर उनके आवास में अकशेरुकी प्राणियों की अधिकता के समय होता है, जिससे उनके जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।
प्रजनन
फ़ेज़ेंट कई प्रकार की सहवास पद्धतियों का उपयोग करते हैं, जैसे एकगामी (चीअर) से बहुगामी (मोनल, लाल जंगली मुर्ग़ी) और लेक्किंग (मोर) तक। अधिकांश मामलों में नर मादा को रिझाने के लिए प्रदर्शन करता है, साथी के चुनाव के बाद कुछ प्रजातियां साथ-साथ (चीअर, ट्रैगोपॉन) अपने क्षेत्रों की रक्षा करती हैं, जो मुख्यत: आवाज़े निकालकर या कभी-कभी युद्ध द्वारा की जाती है। घोंसले साधारण होते हैं और ज़मीन के गड्ढों में कुछ टहनियाँ और घास डालकर बनाए जाते हैं। कुछ प्रजातियों (ट्रैगोपॉन) में पेड़ों पर भी घोसले बनाये जाते है। हिमालय पर मिलने वाली प्रजातियाँ अप्रैल से जून के बीच और निम्न इलाक़ों की प्रजातियाँ इससे पहले ही अंडे देती हैं, अंडों की संख्या प्रजाति के अनुसार 3 से 14 तक हो सकती हैं। प्रजाति तथा अंडों के आकार पर निर्भर चूज़े तीन से चार सप्ताह में बाहर आ जाते हैं।
जन्म के तुरंत बाद बच्चे घोंसले से बाहर चले जाते हैं। वयस्कों के समान पंख निकलने में चूज़ों को एक साल (मादा) या इससे अधिक समय भी (नर) लग सकता है।
ख़तरे
भारत में विभिन्न कारणों से इनकी 13 प्रजातियों के विलुप्त होने का ख़तरा है। आकार में बड़े और स्पष्ट रूप से सुंदर होने के कारण फ़ेज़ेंट मनुष्यों द्वारा मारे जाते हैं। फ़ेज़ेंटों को अधिकांश ख़तरा मनुष्यों की निरंतर बढ़ती हुई आबादी से है, फ़ेज़ेंटों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। भूमि के वैकल्पिक उपयोग, कृषि योग्य भूमि के अनियोजित विस्तार और वाणिज्यिक या स्थानीय उपभोग के लिए जंगलों की कटाई से पहाड़ों और मौदानों में स्थित इनका आवास क्षेत्र सिकुड़ गया है। फ़ेज़ेंटों की संख्या पर शिकार पर भी असर पड़ा है। हालांकि यह मूलत: गुज़ारे के लिए किया जाता है, लेकिन बड़े पैमाने पर ऐसा करने से प्रजातियों के विलुप्त होने का भी ख़तरा पैदा हो जाता है। फ़ेज़ेंटों की मोर, भूरी जंगली मुर्ग़ी और विशेषकर हिमालयी मोनल प्रजाति का रंगीन पंखों के लिए शिकार किया जाता है जिसका पंखे, मछली पकड़ने की नक़ली मक्खी बनाने और टोपी में सजावट करने में उपयोग होता है। अन्य ख़तरे हैं- कृषि क्षेत्रों के आसपास रहने वाली प्रजाति (मोर) को कीटनाशकों से विषाक्तता और आनुवांशिक प्रदुषण (लाल जंगली मुर्ग़ी का घरेलू प्रजाति से संकरण), जो इनके संरक्षण के लिए बड़ी चुनौती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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